कबीरदास जी के भजन "गुरु कृपा जन पायो मेरे भाई" का मूल सन्देश यह है कि हमें एक योग्य गुरु की खोज करनी चाहिए, जो हमें ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति का मार्ग दिखा सकता है। जब हम ईश्वर को प्राप्त कर लेते हैं, तो हम सभी दुखों से मुक्त हो जाते हैं और वास्तविक सुख और आनंद का अनुभव करते हैं।
कबीरदास जी कहते हैं कि उन्होंने एक योग्य गुरु पाया है, जिसने उन्हें ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति का मार्ग दिखाया है। इस गुरु के कारण, वे अब ईश्वर को ही सब कुछ मानते हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर सभी के भीतर मौजूद हैं, और हमें अपने मन को शांत करके उनका अनुभव करना चाहिए। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम ईश्वर को हर जगह देख सकते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने गुरु के प्रति प्रेम और भक्ति रखनी चाहिए, क्योंकि गुरु हमें ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलने में मदद कर सकते हैं।
गुरु कृपा जन पायो मेरे भाई लिरिक्स Gurukripa Jan Payo Mere Bhai
गुरु कृपा जन पायो मेरे भाई, रामबिना कछु जानत नाहीं,
अंतर रामही, बाहिर रामही, जंह देखों तहं रामही रामही, जागत रामही, सोवत रामही, सपने में देखूं, राजा रामही, एक जनार्दनीं, भावही नीका, जो देखो वो, राम सरीका,
गुरु कृपा जन पायो मेरे भाई, रामबिना कछु जानत नाहीं,
हिंदू धर्म में, "गुरुकृपा" एक ऐसा शब्द है जो गुरु की कृपा या आशीर्वाद को संदर्भित करता है, जिसे आध्यात्मिक प्रगति और मुक्ति (मोक्ष) की प्राप्ति के लिए आवश्यक माना जाता है। "गुरुकृपा" शब्द का शाब्दिक अर्थ है "गुरु की कृपा" या "गुरु का आशीर्वाद।" यह माना जाता है कि जब सच्चाई का एक ईमानदार साधक एक अच्छा गुरु को पाता है और विनम्रता, भक्ति और शुद्ध हृदय के साथ उसका मार्गदर्शन मांगता है, तो गुरु की कृपा साधक को बाधाओं को दूर करने और आध्यात्मिक पथ पर तेजी से प्रगति करने में मदद कर सकती है। एक गुरु के आशीर्वाद को एक पवित्र और शक्तिशाली शक्ति माना जाता है जो शिष्य के जीवन को बदल सकता है और उसे आत्म-साक्षात्कार के अंतिम लक्ष्य तक ले जा सकता है। हिंदू धर्म में, एक "गुरु" एक आध्यात्मिक शिक्षक या मार्गदर्शक होता है जो शिष्यों / अनुयाइयों को उनके आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद करता है। "गुरु" शब्द संस्कृत भाषा से आया है और इसका अर्थ है "वह जो अंधकार या अज्ञान को दूर करता है।" एक गुरु वह होता है जिसने आध्यात्मिक ज्ञान और बोध प्राप्त किया है और शिक्षाओं, मार्गदर्शन और व्यक्तिगत उदाहरण के माध्यम से दूसरों को वह ज्ञान प्रदान करने में सक्षम है। गुरु-शिष्य संबंध को एक पवित्र बंधन माना जाता है, और शिष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह श्रद्धा, विनम्रता और आध्यात्मिक विकास की सच्ची इच्छा के साथ गुरु के पास जाए। गुरु को प्रेरणा, ज्ञान और आशीर्वाद के स्रोत के रूप में माना जाता है, और एक मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है जो शिष्य को बाधाओं को दूर करने और मुक्ति (मोक्ष) के अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद कर सकता है।
कबीरदास जी के भजन "गुरु कृपा जन पायो मेरे भाई" में, वे अपने भक्तों को यह बताते हैं कि कैसे उन्हें एक योग्य गुरु मिला, जिसने उन्हें ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति का मार्ग दिखाया। भजन के पहले दो लाइन में, कबीरदास जी कहते हैं कि उन्होंने एक योग्य गुरु पाया है, जिसने उन्हें ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति का मार्ग दिखाया है। इस गुरु के कारण, वे अब ईश्वर को ही सब कुछ मानते हैं।