हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा भजन
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा भजन
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा,मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो ग़र मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।
जितने भी अपने थे वो सारे पराए हैंं,
हार के बाबा तेरी शरण में आए हैंं,
तेरा ही सहारा हैंं तू ही तो हमारा हैंं,
अपनो को ऐसे तरसाओ ना बाबा।
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो ग़र मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।
तेरी दातारि बाबा बड़ी मशहूर हैंं,
खाटु नग़रिया बाबा बड़ी ही दूर हैंं,
पहली बार आया हूँ आस लेकर आया हूँ,
हालत पे मेरी तरस खाओ ना बाबा।
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो ग़र मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।
हार के जो भी आया फिर नही हारा हैंं,
सांवरे सलोने तूने जीवन सँवारा हैंं,
कुछ नही मेरा हैंं कन्हैंंया भी तेरा हैंं,
पकड़ा जो हाथ छुड़ाओ ना बाबा।
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो ग़र मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा,
मुझको भी गले से लगाओ ना बाबा,
देने हो ग़र मुझे बाद में आँसू,
पहले मुझे हंसाओ ना बाबा,
हारा हूँ साथ निभाओ ना बाबा।
Hara Hu Sath Nibhao Na Baba - Kanhiya Mittal Superhit Bhajan | Most Popular Khatu Shyam Baba Bhajan
श्याम बाबा का करुणामय स्वरूप उस हारे हुए भक्त का सहारा बनता है, जो संसार की ठोकरों से टूटकर उनकी शरण में आता है। उनका दरबार वह पवित्र स्थल है, जहाँ हर भक्त को अपने दुखों से मुक्ति और प्रेम भरा आलिंगन मिलता है। जब सारे अपने पराए हो जाते हैं, तब श्याम ही वह सच्चा साथी है, जो भक्त को गले लगाकर उसके आँसुओं को हँसी में बदल देता है। उनकी दातारी की महिमा ऐसी है कि खाटू नगरिया की राह भले ही दूर हो, पर जो भी सच्चे मन से उनकी शरण में आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं लौटता। श्याम की कृपा भक्त के जीवन को सँवार देती है, और उसे यह विश्वास दिलाती है कि वह सदा उसका साथ निभाएंगे।
खाटू श्याम जी को “हारे का सहारा” कहा जाता है, जिसका अर्थ है—जो हार चुके, निराश, दुखी या असहाय लोगों का भी अंतिम सहारा हैं। यह उपाधि उनके जीवन और बलिदान से जुड़ी है। खाटू श्याम जी का वास्तविक नाम बर्बरीक था, जो महाभारत के वीर योद्धा घटोत्कच (भीम के पुत्र) के बेटे थे। बर्बरीक ने प्रतिज्ञा की थी कि वे युद्ध में हमेशा हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। जब महाभारत युद्ध में वे शामिल होने आए, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे उनका शीश (सिर) दान में माँगा। बर्बरीक ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना शीश दान कर दिया। उनके इस महान त्याग, दानशीलता और निस्वार्थ प्रेम से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में तुम मेरे नाम “श्याम” से पूजे जाओगे और हर उस व्यक्ति का सहारा बनोगे, जो जीवन में हार गया हो, दुखी हो या जिसे कोई आशा न बची हो
जीवन की पथरीली राहों में जब मनुष्य थककर चूर हो जाता है, जब संसार के सभी सहारे टूट चुके होते हैं, तब वह परमात्मा की शरण में आता है। यह कोई साधारण पुकार नहीं, बल्कि हृदय की वह गहरी व्यथा है जहाँ आत्मा अपने सृजनहार से सीधा संवाद स्थापित करती है। जब मनुष्य कहता है कि "पहले मुझे हँसाओ, फिर आँसू देना", तो यह उसकी अटूट आस्था का प्रमाण है - वह ईश्वर से इतना निकट का सम्बन्ध मानता है कि उससे बालक की तरह निश्छल माँग कर सकता है। यहाँ भक्ति का भाव दास्य नहीं, बल्कि एक अद्भुत आत्मीयता है जहाँ परमपिता और जीव के बीच कोई दूरी नहीं रह जाती।
खाटू श्याम जी को ‘हारे का सहारा’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे उन लोगों का सहारा और आश्रय माने जाते हैं, जो जीवन में हार, निराशा या कठिनाई का सामना कर रहे होते हैं। इसका मूल कारण महाभारत की कथा में छिपा है। खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक था, जो भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया था कि वे महाभारत के युद्ध में उसी पक्ष का साथ देंगे जो युद्ध में हार रहा होगा या कमजोर पड़ रहा होगा।