जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता। गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता।। पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोइ। जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोइ।।
जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा। अबिगत गोतीतं चरित पुनीतं मायारहित मुकुंदा।। जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिबृंदा। निसि बासर ध्यावहिं गुनगन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।।
"हे प्रभु! आपने बिना किसी सहायता के तीनों लोकों की सृष्टि की है। हम आपकी भक्ति और पूजा करना नहीं जानते, फिर भी हमारी चिंताओं को दूर करें। आप संसार के भय को हरने वाले, मुनियों के मन को आनंदित करने वाले और विपत्तियों को नष्ट करने वाले हैं। हम सभी देवता मन, वचन और कर्म से चतुराई छोड़कर आपकी शरण में आए हैं।"
इस प्रार्थना में देवता भगवान से उनकी कृपा और संरक्षण की याचना कर रहे हैं, यह स्वीकार करते हुए कि वे भक्ति और पूजा की विधियों से अनभिज्ञ हैं, लेकिन पूर्ण समर्पण के साथ उनकी शरण में हैं।
Ram Bhajan Lyrics in Hindi RaamBhajanLyrics
जेहिं सृष्टि उपाई त्रिबिध बनाई संग सहाय न दूजा। सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति न पूजा।। जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा। मन बच क्रम बानी छाङि सयानी सरन सकल सूरजूथा।।
सारद श्रुति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना। जेहिं दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवहु सो श्रीभगवउाना।। भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा। मुनि सिध्द सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कंजा।।
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता। हे देवताओं के स्वामी, सेवकों को सुख देनेवाले, शरणागत की रक्षा करने वाले भगवान! आपकी जय हो! जय हो!!
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता। हे गो-ब्राह्मणों का हित करने वाले, असुरों का विनाश करने वाले, समुद्र की कन्या (लक्ष्मी) के प्रिय स्वामी! आपकी जय हो!
पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई। हे देवता और पृथ्वी का पालन करने वाले! आपकी लीला अद्भुत है, उसका भेद कोई नहीं जानता।
जो सहज कृपाला दीनदयाला करउ अनुग्रह सोई। ऐसे जो स्वभाव से ही कृपालु और दीनदयालु हैं, वे ही हम पर कृपा करें।
भावार्थ: यह भजन तुलसीदास रचित रामचरित मानस के बालकाण्ड से लिया गया है। इस भजन में भगवान विष्णु की स्तुति की गई है। प्रथम श्लोक में भगवान विष्णु को देवताओं का स्वामी, सेवकों को सुख देनेवाला और शरणागत की रक्षा करने वाला बताया गया है। दूसरे श्लोक में भगवान विष्णु को गो-ब्राह्मणों का हित करनेवाला, असुरों का विनाश करनेवाला और समुद्र की कन्या (लक्ष्मी) का प्रिय स्वामी बताया गया है। तीसरे श्लोक में भगवान विष्णु की लीला को अद्भुत बताया गया है, जिसे कोई नहीं जानता। चौथे श्लोक में भगवान विष्णु से प्रार्थना की गई है कि वे स्वभाव से ही कृपालु और दीनदयालु हैं, इसलिए वे हमारे ऊपर कृपा करें।