झूमत राधा संग गिरिधर झूमत राधा संग

झूमत राधा संग गिरिधर झूमत राधा संग

झूमत राधा संग गिरिधर, झूमत राधा संग
अबीर, गुलाल की धूम मचाई, उड़त सुगंधित रंग
लाल भई वृन्दावन-जमुना, भीज गये सब अंग
नाचत लाल और ब्रजनारी, धीमी बजत मृदंग
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, छाई बिरज उमंग
 



मीरा की भक्ति : विरह वेदना और अनंत प्रेम की प्रतिक हैं कृष्णा। कृष्णा की प्रेम दीवानी है मीरा की भक्ति जो दैहिक नहीं आध्यात्मिक भक्ति है। मीरा ने अपने भजनों में कृष्ण को अपना पति तक मान लिया है। यह भक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा है। मीरा की यह भक्ति उनके बालयकाल से ही थी। मीरा की भक्ति कृष्ण की रंग में रंगी है। मीरा की भक्ति में नारी की पराधीनता की एक कसक है जो भक्ति के रंग में और गहरी हो गयी है। मीरा ने कृष्ण को अपना पति मान लिया और अपना मन और तन कृष्ण को समर्पित कर दिया। मीरा की एक एक भावनाएं भी कृष्ण के रंग में रंगी थी। मीरा पद और रचनाएँ राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं और मीरा के पद हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीराबाई के पद अनमोल संपत्ति हैं। मीरा के पदों में अहम् को समाप्त करके स्वयं को ईश्वर के प्रति पूर्णतया मिलाप है। कृष्ण के प्रति उनका इतना समर्पण है की संसार की समस्त शक्तियां उसे विचलित नहीं कर सकती है। मीरा की कृष्ण भक्ति एक मिशाल है जो स्त्री प्रधान भक्ति भावना का उद्वेलित रूप है। 

राधारानी और श्रीकृष्णजी का संग वृंदावन में ऐसा रंग बिखेरता है, जैसे होली की मस्ती में सारा संसार डूब जाए। अबीर और गुलाल की सुगंध हवा में तैरती है, मानो हर कण में प्रेम की खुशबू समा गई हो। जमुना का किनारा लाल रंग से सराबोर है, जैसे भक्ति का रंग हर दिल को भिगो दे। मृदंग की धीमी थाप पर नाचते हुए, राधारानी और श्रीकृष्णजी का प्रेम हर मन को झंकृत करता है। मीराबाई की तरह यह प्रेम ही जीवन को उमंग से भर देता है, जैसे कोई फूल अपनी महक से बगीचे को जगा दे। यह भक्ति का उल्लास ही है, जो मन को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर श्रीकृष्णजी के चरणों तक ले जाता है।
 
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