मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे भजन

मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे भजन

 
मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे लिरिक्स Main Jagu Mhara Satguru Jage Lyrics

मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे,
आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे,
मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे,
आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे,

एक तो जागे है जंगल का मिरगवा,
भटक भटक निंदरा खोवे,
खोवे, खोवे,
मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे,
आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे,

एक तो जागे है बालक की माता,
अपनी सूरत बालक में लावे,
लावे, लावे,
मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे,
आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे,

एक तो जागे है जंगल का राजा,
अपनी सूरत राज में लावे,
लावे, लावे,
मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे,
आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे,

एक तो जागे है जंगल का साधू,
अपनी सूरत आप में लावे,
लावे, लावे,
मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे,
आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे,
मैं जागूँ म्हारां सतगुरु जागे,
आलम सारी सोवे, सोवे, सोवें,
मैं जागू म्हारां सतगुरु जागे,
आलम सारी सोवे, सोवे, सोवे,
सोवे, सोवे, सोवे,सोवे, सोवे, सोवे,

इस भजन के विषय में : साहेब स्वंय जाग्रत अवस्था में है और सभी को जागने के लिए पुकारते हैं, लेकिन लोगों के इर्द गिर्द माया ने अपना जाल फैला कर एक आवरण तैयार कर रखा है जिसमें उन्हें ऐसा प्रतीत होता है की वे जो कर रहे हैं वह सही है। साहेब को इस पर दुःख होता है की कितने जतन के बाद ये मनुष्य जीवन मिला है जिसे जीव व्यर्थ में ऐसे ही खो रहा है, जो इसे सार्थक बनाना चाहते हैं वे सद्गुरु के अभाव में, ज्ञान के अभाव में आडम्बरों के चक्कर में फँस कर रह गए हैं और उन्हें सत्य की राह दिखाई ही नहीं देती है। वस्तुतः जाग कौन रहा है, जागने से तात्पर्य है की माया के भ्रम को पहचान लेना और उससे बाहर निकलना जो आसान नहीं है, भक्ति मार्ग भी कोई आसान राह नहीं है। जहाँ सांसारिक लोग अपने को जाग्रत कहते हैं वह सत्य नहीं है, जैसे बालक की माता जाग्रत है लेकिन वह अपने पुत्र को ही सब कुछ मान बैठती है। साधू का जागना सार्थक है क्योंकि वह स्वंय को स्वंय में ही देखता है, पैदा करता है। स्वंय को पहचानना ही सही अर्थों में वैराग्य है। जब स्वंय को पहचान लिया जाता है तब जीव को आभास हो जाता है की उसे कौनसी राह पर जाना है।


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जब सारा संसार माया की नींद में डूबा है, तब सतगुरु की कृपा मन को झकझोर कर जगाती है, जैसे सुबह की किरण सोए हुए को पुकारे। जंगल का मृग भटकता है, नींद खोकर भी राह नहीं पाता, क्योंकि उसका जागना अधूरा है। माँ अपने बच्चे में खोई रहती है, मानो वही उसकी दुनिया हो, पर यह जागृति भी सतही है। राजा अपनी सत्ता में जागता है, मगर वह भी माया के बंधन में बँधा है। साधु का जागना ही सच्चा है, जो अपने भीतर की सैर करता है और श्रीकृष्णजी के दर्शन पाता है। यह वैराग्य ही मन को माया के जाल से मुक्त करता है, जैसे कोई नदी अपने किनारों को तोड़कर सागर से मिले। सतगुरु का साथ वह दीया है, जो अंधेरे में भी सही रास्ता दिखाता है, और मन को समझ आता है कि भक्ति ही वह पथ है, जो जीवन को सार्थक बनाता है।

Kabir Bhajan | मैं जागूं मारा सतगुरू जागे | Shabnam Virmani | Jashn-e-Rekhta
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