कर गुजरान फकीरी में साधो भाई लिरिक्स Kar Gujaran Fakeeri Me Sadhu Bhai Lyrics

कर गुजरान फकीरी में साधो भाई लिरिक्स Kar Gujaran Fakeeri Me Sadhu Bhai Lyrics

 
कर गुजरान फकीरी में साधो भाई लिरिक्स Kar Gujaran Fakeeri Me Sadhu Bhai Lyrics

कर गुजरान फकीरी में साधो भाई,
मगरूरी क्यों करता,
जोगी होकर जटा बढ़ावे,
नंगे पाँव क्यों फिरता है रे भाई,
गठरी बाँध सर ऊपर धर ले,
योँ क्या मालिक मिलता है रे भाई,

मुल्ला होकर बाँग पुकारे,
क्या तेरा साहिब बहरा है रे भाई,
चींटी के पाँव, नेवर बाजें,
सो भी साहिब सुनता है रे भाई,

धरती आकाश गुफ़ा के अंदर,
पुरुष वहाँ एक रहता है रे भाई,
हाथ ना पाँव, रूप नहीं रेखा,
नंगा होकर फिरता है रे भाई,

जो तेरे घट में, जो मेरे घट में,
जो सबके घट में एक है रे भाई,
कहें कबीर सुनों भाई साधो,
हर जैसे को तैसा है रे भाई,
 
इस भजन के बारे में : साहेब के समय / तात्कालिक सामजिक और धार्मिक परिस्थितियों को चित्रित करता हुआ और समाज में कुरूतियों के सन्दर्भ में यह भजन जीव को चेताता है की धार्मिक ढकोसलों से इश्वर की प्राप्त संभव नहीं है। वर्तमान सन्दर्भ में भी यह भजन उतना ही प्रासंगिक जान पड़ता है। आज भी लाउड स्पीकरों से इश्वर को पुकारा जाता है चाहे वह मंदिर हो या फिर मस्जिद। जबकि इश्वर को चींटी के पैरों की आवाज भी सुन लेता है तो फिर उसे सुनाने के लिए जोर से आवाज लगाने की क्या आवश्यकता है ? इश्वर ना तो किसी तीर्थ में है, ना किसी मंदिर मस्जिद में है और ना ही जंगल में ही है। उसे प्राप्त करने के लिए भगवा पहनने, माला तिलक और छद्म आवरण की नहीं बल्कि सद्मार्ग पर चलते हुए, मानवता को अपनाते हुए, दया को आचरण में शामिल करके स्वंय के घट से ही प्राप्त किया जा सकता है।

बाहर का यह भटकाव क्या है ? यह भटकाव है क्योंकि आत्मा पाप औरअनैतिक कार्यों के बोझ के तले दब चुकी है, उसके अन्दर जाने के रास्तों पर माया ने रुकावटें पैदा कर दी हैं, अन्दर रौशनी नहीं है, यह रौशनी किसी दीपक की तो नहीं हो सकती है, यह रौशनी पैदा तब होगी जब सद्कार्यों, सत्य के मार्ग का अनुसरण किया जाएगा। हिन्दू जटा बढ़ा लेते हैं (बाल बढ़ा लेते हैं ), तिलक लगाते हैं, भगवा पहन लेते हैं, हाथों की माला फेरते हैं, मूर्तियों में भगवान् को ढूढ़ते हैं, जिसे किसी को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यदि इनके साथ सद्मार्ग, सदाचरण, दया भाव, दान, पुन्य आदि का अभाव है तो कैसे किसी को मालिक मिलेगा ? यह तो उसके मन का भ्रम है की उसने फला कार्य कर लिया है, कर्मकांड कर लिया है और इश्वर प्रशन्न हो जाएगा, जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है। ऐसे ही मुस्लिम धर्म के अनुयाई भी अपने मालिक को आवाज लगाते हैं, जोर जोर से पुकारने की यह प्रथा आज लाउड स्पीकर के रूप में है, तो क्या मालिक को सुनाई नहीं देता है ? देता है, उसे सब सुनाई देता है, यहाँ तक की चींटी के पैरों की आवाज भी। यह भटकाव भी इसीलिए है की जीव स्वंय के कार्यों का विश्लेष्ण करना ही नहीं चाहता है, वह सोचता है की उसने जो किया वह सही है।

"तेरे घट मेंबिराजे भगवान मंदिर में काई ढूंढती (सुरता) डोले"
थारा घट में विराजे भगवान्
मंदिर में काई ढूंढती डोले
कोरी मूरत धरी मंदिर में
वो ना मुख से बोले
दरवाजे दरबान खड़ा है
हुकुम करे जद खोले रे
मंदिर में काई ढूंढती डोले
थारा घट में विराजे भगवान्
मंदिर में काई ढूंढती डोले
गगन मंडल से गंगा उतरी
पांचू कपड़ा धो ले
बिन साबन थारो मैल कटे
काया तू निर्मल हो ले रे

मंदिर में काई ढूंढती डोले
थारा घट में विराजे भगवान्
मंदिर में काई ढूंढती डोले
नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा
घट का पर्दा खोले
भानी नाथ शरण सत गुरु की
राई सूं पर्वत ओले रे
मंदिर में काई ढूंढती डोले
थारा घट में विराजे भगवान् 
 
मंदिर में काई ढूंढती डोले वह कण कण में है, सभी के हृदय में है, यदि उससे साक्षात्कार करना है, मिलना है तो सत्य के मार्ग पर चलो, अच्छे और भलाई के कार्य करो, किसी का बुरा मत करो, मानवता को समझो, माया जनित भ्रम से दूर रहो और जहां भी रहो अपने मालिक का सुमिरन करो, उसे सब सुनाई और दिखाई देता है। जब समस्त श्रष्टि उस मालिक ने बनाई है तो क्या मंदिर और क्या मस्जिद ? क्या कासी और क्या वृन्दावन, वह तो कण कण में है, मेरे और आपके घट में है, हर जगह उसी का वास है। उसे समझने और प्राप्त करने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी है, स्वंय के काया को कष्ट नहीं पहुंचाना है, सहज रूप से उसे याद करना है, साथ ही आचरण की शुद्धता को अपनाना है और माया जनित विकारों को समझ कर उससे दूर रहना है, यही सरलता है साहेब की वाणी की जिसे समझने की आवश्यकता है।


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2 टिप्पणियां

  1. nice
  2. कृपया इस पेज पर लिरिकल भजन की विडियो दाल दें |
    https://www.youtube.com/watch?v=8tj-JiSPs-4