दोहे दोहावली कबीर दास के दोहे हिन्दी
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग ।
और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग ॥
जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल ।
तोकू फूल के फूल है, बाकू है त्रिशूल ॥
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार ।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार ॥
आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
अर्थ: हे मन, सब कुछ धीरे-धीरे होता है। माली चाहे सौ घड़े पानी से सींचे, लेकिन फल तो ऋतु आने पर ही लगते हैं। इसलिए धैर्य रखना चाहिए।
कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥
अर्थ: कबीर कहते हैं, वे लोग अंधे हैं जो गुरु को अन्य किसी के समान मानते हैं। यदि भगवान रूठ जाएँ तो गुरु सहारा देते हैं, लेकिन यदि गुरु रूठ जाएँ तो कोई सहारा नहीं होता।
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय।
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय॥
अर्थ: यदि व्यक्ति पाँच पहर काम में और तीन पहर सोने में बिताता है, और एक पहर भी हरि नाम के बिना गुजरता है, तो मुक्ति कैसे मिलेगी?
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान॥
अर्थ: कबीर कहते हैं, जो व्यक्ति सोकर भगवान का भजन नहीं करता, जब यमदूत उसे ले जाएंगे, तो यह शरीर (म्यान) यहीं पड़ा रह जाएगा।
शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन॥
अर्थ: शिष्टाचार सबसे बड़ा गुण है, यह सभी रत्नों की खान है। तीनों लोकों की संपदा भी शील (शिष्टाचार) में समाहित है।
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥
अर्थ: कबीर कहते हैं, न तो माया मरी है, न मन मरा है। शरीर बार-बार मरता है, लेकिन आशा और तृष्णा नहीं मरती।
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय॥
अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है, तू मुझे क्या रौंदता है? एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुझे रौंदूंगी, अर्थात् मृत्यु के बाद तू मिट्टी में मिल जाएगा।
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय॥
अर्थ: रात सोने में और दिन खाने में गंवा दिया। यह अनमोल हीरे जैसा जीवन व्यर्थ के कामों में बर्बाद हो गया।
नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग।
और रसायन छांड़ि के, नाम रसायन लाग॥
अर्थ: नींद मृत्यु की निशानी है, कबीर कहते हैं, उठो और जागो। अन्य सभी उपाय छोड़कर भगवान के नाम रूपी अमृत का सेवन करो।
जो तोकु कांटा बुवे, ताहि बोय तू फूल।
तोकू फूल के फूल हैं, बाकू है त्रिशूल॥
अर्थ: जो तुम्हारे लिए कांटे बोए, तुम उसके लिए फूल बोओ। तुम्हें फूल मिलेंगे और उसे त्रिशूल (कांटे) मिलेंगे।
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि न लागे डार॥
अर्थ: मनुष्य जन्म दुर्लभ है, यह शरीर बार-बार नहीं मिलता। जैसे पेड़ से पत्ती गिरने के बाद फिर से शाख पर नहीं लगती।
आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर॥
अर्थ: जो इस संसार में आया है, वह जाएगा, चाहे राजा हो, गरीब हो या फकीर। कोई सिंहासन पर चढ़कर जाता है, तो कोई जंजीरों में बंधकर।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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