कबीर के दोहे दोहावली सरल अर्थ में जानिये

कबीर के दोहे दोहावली सरल अर्थ में जानिये

कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi दोहावली कबीर दास के दोहे हिन्दी


दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय ॥

तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय ।
कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय ॥

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय ॥

बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया करत न लागी बार ॥

कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥

सुख में सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥

जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप ॥
 

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय॥
अर्थ: दुःख के समय सभी भगवान को याद करते हैं, लेकिन सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान को याद किया जाए, तो दुःख क्यों होगा।

तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय। कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय॥
अर्थ: कभी भी पैरों के नीचे पड़े तिनके की निंदा न करें, क्योंकि यदि वह उड़कर आँख में गिर जाए, तो बहुत पीड़ा होती है।


माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर॥
अर्थ: हाथों से माला फेरते हुए युग बीत गए, लेकिन मन का भाव नहीं बदला। हाथ की माला छोड़कर मन की माला फेरो।

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय। बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥
अर्थ: गुरु और भगवान दोनों सामने खड़े हैं, मैं किसके चरण स्पर्श करूं? मैं अपने गुरु को नमन करता हूँ, जिन्होंने मुझे भगवान के बारे में बताया।

बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार। मानुष से देवत किया, करत न लागी बार॥
अर्थ: मैं अपने गुरु पर बार-बार बलिहारी जाता हूँ, जिन्होंने मुझे मनुष्य से देवता बना दिया, और इसमें समय भी नहीं लगा।

कबिरा माला मनहि की, और संसारी भीख। माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख॥
अर्थ: कबीर कहते हैं, माला मन की होती है, बाकी सब दुनियादारी की भीख है। यदि माला फेरने से भगवान मिलते, तो गले में पड़ी रहट (पानी खींचने का उपकरण) को देखो।

सुख में सुमिरन ना किया, दुःख में किया याद। कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद॥
अर्थ: सुख में भगवान को याद नहीं किया, दुःख में याद किया। कबीर कहते हैं, ऐसे व्यक्ति की फरियाद कौन सुनेगा?

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥
अर्थ: हे भगवान, मुझे इतना दीजिए कि मेरा परिवार समा जाए। मैं भी भूखा न रहूँ, और साधु भी भूखा न जाए।

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट। पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट॥
अर्थ: यदि राम नाम का लाभ उठा सकते हो, तो उठा लो। बाद में पछताओगे, जब प्राण निकल जाएंगे।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
अर्थ: साधु की जाति मत पूछो, उसका ज्ञान पूछो। तलवार का मूल्य करो, म्यान को पड़ा रहने दो।

जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप। जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप॥
अर्थ: जहाँ दया है, वहाँ धर्म है; जहाँ लोभ है, वहाँ पाप है। जहाँ क्रोध है, वहाँ पाप है; जहाँ क्षमा है, वहाँ आप (स्वयं) हैं।

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