कबीर के दोहे सरल हिंदी में अर्थ जानिये
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख ॥
जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग ।
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग ॥
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय ।
भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥
आया था किस काम को, तु सोया चादर तान ।
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान ॥
क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह ।
साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह ॥
गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच ।
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच ॥
दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय ।
बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय ॥
दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर ।
अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥
दस द्वारे का पिंजरा, तामें पंछी का कौन ।
रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन ॥
ऐसी वाणी बोलेए, मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ॥
हीरा वहाँ न खोलिये, जहाँ कुंजड़ों की हाट ।
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट ॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥
अर्थ: जो काम कल करना है, उसे आज करो, और जो आज करना है, उसे अभी करो। समय अनिश्चित है; पल भर में प्रलय हो सकती है, फिर तुम अपने कार्य कब करोगे?
माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख।
माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख॥
अर्थ: माँगना मृत्यु के समान है; इसलिए किसी से भीख मत माँगो। माँगने से मर जाना बेहतर है; यही सतगुरु की शिक्षा है।
जहाँ आपा तहाँ आपदां, जहाँ संशय तहाँ रोग।
कह कबीर यह क्यों मिटे, चारों धीरज रोग॥
अर्थ: जहाँ अहंकार है, वहाँ आपदाएँ हैं; जहाँ संशय है, वहाँ रोग हैं। कबीर कहते हैं, यह कैसे मिटे? ये चारों धीरज के रोग हैं।
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय।
भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय॥
अर्थ: माया और छाया एक समान हैं, यह बिरले ही समझते हैं। माया भक्तों के पीछे लगती है, लेकिन सामने से भागती है।
आया था किस काम को, तु सोया चादर तान।
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान॥
अर्थ: तुम किस कार्य के लिए आए थे, और अब चादर तानकर सो रहे हो। हे गाफिल, अपनी चेतना संभालो और अपने आप को पहचानो।
क्या भरोसा देह का, बिनस जात छिन मांह।
साँस-सांस सुमिरन करो और यतन कुछ नांह॥
अर्थ: इस शरीर का क्या भरोसा? यह पल भर में नष्ट हो जाता है। हर सांस में सुमिरन करो, और कोई उपाय नहीं है।
गारी ही सों ऊपजे, कलह कष्ट और मींच।
हारि चले सो साधु है, लागि चले सो नींच॥
अर्थ: गाली से कलह, कष्ट और दुश्मनी उत्पन्न होती है। जो हार मानकर चला जाए, वह साधु है; जो उलझे, वह नीच है।
दुर्बल को न सताइए, जाकि मोटी हाय।
बिना जीव की हाय से, लोहा भस्म हो जाय॥
अर्थ: दुर्बल को मत सताओ, उसकी गहरी आह से बचो। बिना जीव की आह से भी लोहा भस्म हो जाता है।
दान दिए धन ना घटे, नदी न घटे नीर।
अपनी आँखों देख लो, यों कहे कबीर॥
अर्थ: दान देने से धन नहीं घटता, जैसे नदी का जल देने से वह घटती नहीं। अपनी आँखों से देख लो, कबीर ऐसा कहते हैं।
दस द्वारे का पिंजरा, तामें पंछी का कौन।
रहे को अचरज है, गए अचम्भा कौन॥
अर्थ: यह शरीर दस द्वारों का पिंजरा है, इसमें पंछी (आत्मा) कौन है? जो रहता है, वह अचरज है; जो चला गया, वह अचम्भा कौन है?
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय॥
अर्थ: ऐसी वाणी बोलो, जिससे मन का अहंकार दूर हो। जो दूसरों को शीतलता दे, और स्वयं भी शीतल हो।
हीरा वहाँ न खोलिए, जहाँ कुंजड़ों की हाट।
बांधो चुप की पोटरी, लागहु अपनी बाट॥
अर्थ: हीरा वहाँ मत खोलो, जहाँ कुंजड़ों (सस्ता सामान बेचने वालों) की बाजार हो। चुप्पी की पोटली बांधो, और अपने मार्ग पर चलो।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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