इन कबीर के दोहों से मिलती है सीख पढ़ें

इन कबीर के दोहों से मिलती है सीख पढ़ें

कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi दोहावली

कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार ।
साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार ॥

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय ।
यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय ॥

मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय ।
मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय ॥

सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप ।
यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप ॥

अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक साथ ।
मानुष से पशुआ करे दाय, गाँठ से खात ॥

बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ ।
नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ ॥

अटकी भाल शरीर में तीर रहा है टूट ।
चुम्बक बिना निकले नहीं कोटि पटन को फ़ूट ॥

कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय ।
ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय ॥

पतिवृता मैली, काली कुचल कुरूप ।
पतिवृता के रूप पर, वारो कोटि सरूप ॥

बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥

हर चाले तो मानव, बेहद चले सो साध ।
हद बेहद दोनों तजे, ताको भता अगाध ॥

राम रहे बन भीतरे गुरु की पूजा ना आस ।
रहे कबीर पाखण्ड सब, झूठे सदा निराश ॥ 
 
कबीर दास जी के निम्नलिखित दोहों के सरल हिंदी में अर्थ इस प्रकार हैं:

कुटिल वचन सबसे बुरा, जारि कर तन हार। साधु वचन जल रूप, बरसे अमृत धार॥
अर्थ: कटु वचन सबसे बुरे होते हैं, जो शरीर और मन को जलाते हैं। वहीं, साधुजन के वचन जल के समान होते हैं, जो अमृत की धारा की तरह शीतलता प्रदान करते हैं।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय। यह आपा तो ड़ाल दे, दया करे सब कोय॥
अर्थ: यदि मन शांत और शीतल हो, तो संसार में कोई भी शत्रु नहीं होता। अपने अहंकार को त्याग दें, तो सभी पर दया भाव उत्पन्न होगा।

मैं रोऊँ जब जगत को, मोको रोवे न होय। मोको रोबे सोचना, जो शब्द बोय की होय॥
अर्थ: जब मैं संसार के लिए रोता हूँ, तो कोई मेरे लिए नहीं रोता। इसलिए मुझे यह सोचना चाहिए कि मैंने अपने शब्दों से क्या बोया है, जो अब फल के रूप में मिल रहा है।

सोवा साधु जगाइए, करे नाम का जाप। यह तीनों सोते भले, साकित सिंह और साँप॥

अर्थ: यदि कोई साधु सो रहा हो, तो उसे जगाकर नाम जप करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। लेकिन सांसारिक व्यक्ति, सिंह और साँप को सोते ही रहने देना बेहतर है, क्योंकि उनके जागने से हानि हो सकती है।

अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक साथ। मानुष से पशुआ करे दाय, गाँठ से खात॥

अर्थ: शराब के अवगुण यह हैं कि यह अहंकार और मूर्खता को साथ लाती है। यह मनुष्य को पशु समान बना देती है और उसकी संपत्ति को नष्ट करती है।

बाजीगर का बांदरा, ऐसा जीव मन के साथ। नाना नाच दिखाय कर, राखे अपने साथ॥

अर्थ: जैसे बाजीगर का बंदर विभिन्न नृत्य दिखाता है, वैसे ही जीवात्मा मन के साथ अनेक क्रीड़ाएँ करती है, लेकिन अंततः उसे अपने साथ ही रखती है।

अटकी भाल शरीर में तीर रहा है टूट। चुम्बक बिना निकले नहीं कोटि पटन को फ़ूट॥
अर्थ: यदि शरीर में तीर टूटकर फँस जाए, तो वह चुम्बक के बिना नहीं निकलता, चाहे कितने ही उपाय क्यों न कर लें। इसी प्रकार, मन के विकार गुरु के बिना दूर नहीं होते।

कबीरा जपना काठ की, क्या दिख्लावे मोय। ह्रदय नाम न जपेगा, यह जपनी क्या होय॥
अर्थ: यदि हृदय में सच्चा नाम स्मरण नहीं है, तो हाथ में माला फेरने का क्या लाभ? बाहरी दिखावा व्यर्थ है यदि भीतर भक्ति नहीं है।

पतिवृता मैली, काली कुचल कुरूप। पतिवृता के रूप पर, वारो कोटि सरूप॥
अर्थ: भले ही पतिव्रता स्त्री मैली, काली, कुचली और कुरूप हो, लेकिन उसके पतिव्रत धर्म के रूप पर करोड़ों सुंदरताएँ न्योछावर हैं।

बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार। एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार॥
अर्थ: वैद्य मर गया, रोगी मर गया, और सारा संसार भी नश्वर है। लेकिन कबीर नहीं मरे, क्योंकि उनके पास राम का आधार है।

हर चाले तो मानव, बेहद चले सो साध। हद बेहद दोनों तजे, ताको भता अगाध॥
अर्थ: जो सीमित मार्ग पर चलता है, वह मानव है; जो असीमित मार्ग पर चलता है, वह साधु है। लेकिन जो सीमित और असीमित दोनों को त्याग देता है, उसकी भक्ति अगाध है।

राम रहे बन भीतरे गुरु की पूजा ना आस। रहे कबीर पाखण्ड सब, झूठे सदा निराश॥
अर्थ: यदि राम वन में रहकर भी गुरु की पूजा नहीं करते, तो कबीर कहते हैं कि वह पाखंड है, और ऐसे झूठे लोग सदा निराश रहते हैं।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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