कबीर के दोहे हिंदी में जानिये अर्थ

कबीर के दोहे हिंदी में जानिये अर्थ

 
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जाके जिव्या बन्धन नहीं, ह्र्दय में नहीं साँच ।
वाके संग न लागिये, खाले वटिया काँच ॥

तीरथ गये ते एक फल, सन्त मिले फल चार ।
सत्गुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार ॥

सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन ।
प्राण तजे बिन बिछड़े, सन्त कबीर कह दीन ॥

समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय ।
मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ॥

हंसा मोती विण्न्या, कुञ्च्न थार भराय ।
जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय ॥

कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय ।
एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय ॥

वस्तु है ग्राहक नहीं, वस्तु सागर अनमोल ।
बिना करम का मानव, फिरैं डांवाडोल ॥

कली खोटा जग आंधरा, शब्द न माने कोय ।
चाहे कहँ सत आइना, जो जग बैरी होय ॥

कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय ।
भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥

जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय ।
सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय ॥

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय ।
सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय ॥

लागी लगन छूटे नाहिं, जीभ चोंच जरि जाय ।
मीठा कहा अंगार में, जाहि चकोर चबाय ॥  
 
कबीर दास जी के निम्नलिखित दोहों के सरल हिंदी में अर्थ इस प्रकार हैं:

जाके जिव्या बन्धन नहीं, ह्र्दय में नहीं साँच । वाके संग न लागिये, खाले वटिया काँच ॥

अर्थ: जिस व्यक्ति की जीभ पर संयम नहीं है और जिसके हृदय में सच्चाई नहीं है, ऐसे व्यक्ति की संगति नहीं करनी चाहिए। उसकी संगति काँच के बर्तन की तरह है, जो दिखने में सुंदर लेकिन अंदर से खोखला होता है।

तीरथ गये ते एक फल, सन्त मिले फल चार । सत्गुरु मिले अनेक फल, कहें कबीर विचार ॥

अर्थ: तीर्थ यात्रा करने से एक पुण्य मिलता है, संतों की संगति से चार गुना पुण्य मिलता है, लेकिन सच्चे गुरु की प्राप्ति से अनगिनत पुण्य मिलते हैं।

सुमरण से मन लाइए, जैसे पानी बिन मीन । प्राण तजे बिन बिछड़े, सन्त कबीर कह दीन ॥

अर्थ: जैसे मछली पानी के बिना जीवित नहीं रह सकती, वैसे ही मनुष्य को ईश्वर के सुमिरन (स्मरण) में मन लगाना चाहिए। ईश्वर से बिछड़कर जीवन व्यर्थ है।

समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय । मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ॥

अर्थ: समझाने पर भी जो नहीं समझता और पराई बातों में फँस जाता है, ऐसे व्यक्ति को मैं सही मार्ग पर लाने की कोशिश करता हूँ, लेकिन वह अपने कर्मों से नरक की ओर बढ़ता जाता है।

हंसा मोती विण्न्या, कुञ्च्न थार भराय । जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय ॥

अर्थ: हंस मोती चुनता है, जबकि कौआ कूड़ा-करकट से पेट भरता है। जो व्यक्ति सही मार्ग नहीं जानता, वह अपने जीवन को व्यर्थ की चीजों में ही उलझाए रखता है।

कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय । एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय ॥

अर्थ: जो कहना था, वह कह दिया; अब और कुछ नहीं कहा जा सकता। एक (जीवात्मा) शेष रहा, दूसरा (अहंकार) चला गया, जैसे नदी की लहरें समुद्र में समा जाती हैं।

वस्तु है ग्राहक नहीं, वस्तु सागर अनमोल । बिना करम का मानव, फिरैं डांवाडोल ॥

अर्थ: अनमोल वस्तु (सत्य) तो समुद्र के समान है, लेकिन उसे ग्रहण करने वाला कोई नहीं है। बिना सही कर्म के मनुष्य जीवन में अस्थिरता रहती है।

कली खोटा जग आंधरा, शब्द न माने कोय । चाहे कहँ सत आइना, जो जग बैरी होय ॥

अर्थ: यह संसार अंधा है और लोगों की बुद्धि भ्रष्ट है; वे सच्चे शब्दों को नहीं मानते। चाहे सत्य का आईना उनके सामने रख दो, फिर भी वे शत्रुता ही करेंगे।

कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय । भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥


अर्थ: काम, क्रोध और लोभ से ग्रस्त व्यक्ति भक्ति नहीं कर सकता। सच्ची भक्ति वही कर सकता है, जो वीर हो और जाति, वर्ण, कुल आदि के भेदभाव से ऊपर उठ चुका हो।

जागन में सोवन करे, साधन में लौ लाय । सूरत डोर लागी रहे, तार टूट नाहिं जाय ॥

अर्थ: जो जागते हुए भी सोने जैसा शांत रहता है और साधना में मन लगाता है, उसकी आत्मा की डोर ईश्वर से जुड़ी रहती है और वह संबंध कभी टूटता नहीं।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय । सार-सार को गहि रहे, थोथ देइ उड़ाय ॥

अर्थ: साधु (सज्जन व्यक्ति) ऐसा होना चाहिए, जो सूप (अनाज फटकने वाला) की तरह हो; जो सार्थक को ग्रहण करे और निरर्थक को छोड़ दे।

लागी लगन छूटे नाहिं, जीभ चोंच जरि जाय । मीठा कहा अंगार में, जाहि चकोर चबाय ॥

अर्थ: जिसे सच्ची लगन लग जाती है, वह कभी नहीं छूटती, चाहे जीभ और चोंच जल जाए। जैसे चकोर पक्षी अंगारे को मीठा समझकर चबाता है, वैसे ही सच्चा प्रेमी कठिनाइयों के बावजूद अपने प्रेम से विमुख नहीं होता।

इन दोहों में कबीर दास जी ने सच्ची संगति, गुरु की महिमा, ईश्वर स्मरण, आत्मचिंतन, सच्ची भक्ति, और जीवन के सार को सरल शब्दों में समझाया है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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