श्री पार्श्वनाथ जिन चालीसा (अहिच्छत्र) लिरिक्स Parshwanath Jin Chalisa Lyrics

श्री पार्श्वनाथ जिन चालीसा (अहिच्छत्र) लिरिक्स Parshwanath Jin Chalisa Lyrics,  Shri Parshvanath Jin Chalisa (Ahicchatra)

 
श्री पार्श्वनाथ जिन चालीसा (अहिच्छत्र) लिरिक्स Parshwanath Jin Chalisa Lyrics

श्री पार्श्वनाथ जिन चालीसा (अहिच्छत्र)
(दोहा)
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम ।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ।।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन-मंदिर सुखकार ।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन-मंदिर में धार ।।
(चौपाइ छन्द)
पार्श्वनाथ जगत्-हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी ।
सुर-नर-असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा ।।१।।
तुमसे करम-शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा ।
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा की आँखों के तारे ।।२।।
काशी जी के स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाये ।
इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुँचे ।।३।।
हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जगंल में गर्इ सवारी ।
एक तपस्वी देख वहाँ पर, उससे बोले वचन सुनाकर ।।४।।
तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते ।
तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया ।।५।।
निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे ।
रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र-नवकार सुनाया ।।६।।
मरकर वो पाताल सिधाये, पद्मावति-धरणेन्द्र कहाये ।
तपसी मरकर देव कहाया, नाम ‘कमठ’ ग्रन्थों में गाया ।।७।।
एक समय श्री पारस स्वामी, राज छोड़कर वन की ठानी ।
तप करते थे ध्यान लगाये, इक-दिन ‘कमठ’ वहाँ पर आये ।।८।।
फौरन ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना ।
बहुत अधिक बारिश बरसार्इ, बादल गरजे बिजली गिरार्इ ।।९।।
बहुत अधिक पत्थर बरसाये, स्वामी तन को नहीं हिलाये ।
पद्मावती-धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा में चित लाए ।।१०।।
धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया ।
पद्मावति ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया ।।११।।
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोसरण देवेन्द्र रचाया ।
यही जगह ‘अहिच्छत्र‘ कहाये, पात्रकेशरी जहाँ पर आये ।।१२।।
शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना ।
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया, सबने जैन-धरम अपनाया ।।१३।।
‘अहिच्छत्र‘ श्री सुन्दर नगरी, जहाँ सुखी थी परजा सगरी ।
राजा श्री वसुपाल कहाये, वो इक जिन-मंदिर बनवाये ।।१४।।
प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया ।
वह मिस्तरी माँस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता ।।१५।।
मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस-दर्शन-व्रत दिलवाया ।
मिस्त्री ने व्रत-पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना ।।१६।।
गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है ।
वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुएँ के अंदर ।।१७।।
उस पानी का अतिशय-भारी, दूर होय सारी बीमारी ।
जो अहिच्छत्र हृदय से ध्यावे, सो नर उत्तम-पदवी पावे ।।१८।।
पुत्र-संपदा की बढ़ती हो, पापों की इकदम घटती हो ।
है तहसील आँवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी ।।१९।।
रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी-नर ।
चालीसे को ‘चंद्र’ बनाये, हाथ जोड़कर शीश नवाये ।।२०।।
(सोरठा)
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन ।
खेय सुगंध अपार, अहिच्छत्र में आय के ।।
होय कुबेर-समान, जन्म-दरिद्री होय जो ।
जिसके नहिं संतान, नाम-वंश जग में चले ।। 
 
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