त्वमेव माता च पिता त्वमेव मीनिंग Twameva Mata Cha Pita Twameva
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम् देव देव ||
माता तू ही गुरु दाता तू ही, मित्र भ्राता तू ही धन-धान्य भंडारो |
ईश तू ही जगदीश तू ही, मम शीश तू ही प्रभु राखनहारो |
राव तू ही उमराव तू ही, सत्य-भाव तू ही मम नैन को तारो |
सार तू ही करतार तू ही, घर-द्वार तू ही परिवार हमारो |
सोम तू ही और व्योम तू ही, निज ओम तू ही मम प्राण अधारो ॥
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम् देव देव ||
माता तू ही गुरु दाता तू ही, मित्र भ्राता तू ही धन-धान्य भंडारो |
ईश तू ही जगदीश तू ही, मम शीश तू ही प्रभु राखनहारो |
राव तू ही उमराव तू ही, सत्य-भाव तू ही मम नैन को तारो |
सार तू ही करतार तू ही, घर-द्वार तू ही परिवार हमारो |
सोम तू ही और व्योम तू ही, निज ओम तू ही मम प्राण अधारो ॥
Tvamev Maata Ch Pita Tvamev, Tvamev Bandhushch Sakha Tvamev
Tvamev Vidya Dravidam Tvamev, Tvamev Sarvam Mam Dev Dev ||
Maata Too Hee Guru Daata Too Hee, Mitr Bhraata Too Hee Dhan-dhaany Bhandaaro |
Eesh Too Hee Jagadeesh Too Hee, Mam Sheesh Too Hee Prabhu Raakhanahaaro |
Raav Too Hee Umaraav Too Hee, Saty-bhaav Too Hee Mam Nain Ko Taaro |
Saar Too Hee Karataar Too Hee, Ghar-dvaar Too Hee Parivaar Hamaaro |
Som Too Hee Aur Vyom Too Hee, Nij Om Too Hee Mam Praan Adhaaro .
त्वमेव माता च पिता त्वमेव मीनिंग इन हिंदी Twameva Mata Cha Pita Twameva Lyrics
(हे गुरुदेव) आप मेरे माता और पिता के समान है; आप मेरे भाई और साथी है; आप ही अकेले ज्ञान और धन है. प्रभु, आप सब कुछ हैं|
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
हे प्रभु तुम ही मेरी माँ हो और तुम ही मेरे पिता हो। तुम ही मेरी माँ, पिता और उनके पूर्वज हो। जीवन के आरंभ होने से पहले तो शिशु और माँ एक ही शरीर में निवास करते हैं। शिशु जब बोलना आरंभ करता है तो अधिकांशतः वह पहला शब्द माँ ही बोलता है, क्योंकि उसके लिए माँ, और “मैं” एक ही है। जन्म के समय से चलने, इधर-उधर जाने के लिए दूसरों पर आधारित होता है। परंतु उसकी यह अपेक्षा अन्य लोगों से उसी समय उपजती है, जब उसकी माँ कहीं आस-पास नहीं होती। अन्यथा, सबसे पहले वह माँ से ही यह अपेक्षा करती है कि माँ ही उसे इधर-उधर ले जायेगी। इस तरह शिशु के लिए माँ और आयु बढ़ने पर वयस्क व्यक्ति के लिए भी, माँ अपना स्वयं का ही एक अंग अथवा वह स्वयं माँ का ही एक अंश स्वरूप होती है। हे प्रभु तुम ही माँ को यह सामर्थ्य देते हो कि वह मुझे जीवन दे और माँ के माध्यम से मुझे जीवन दे। इस प्रकार मेरे लिए तुम सर्वप्रथम माँ और जीवन पर्यंत माँ रूपी भगवान् हो। इसी प्रकार जीवन धारण करने के कुछ दिनों बाद, माँ के माध्यम से ही हम पिता के बारे में जानते हैं, तब हे प्रभु आप ही हमारे पिता के रूप में हमारी देख-भाल करते हो। जीवन में हमारे विकास और सुरक्षा का महत्वपूर्ण कार्य तुम मेरे पिता के रूप में करते हो। अतः हे भगवन् मेरे लिए तो सर्वप्रथम तुम ही मेरी माँ हो और तुम ही मेरे पिता हो।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
हे प्रभु तुम ही मेरे सगे भाई, सौतेले भाई, चचेरे भाई, ममेरे भाई, मौसेरे भाई और फूफेरे भाई अर्थात् मेरे सब प्रकार के सम्बन्धों के भाई हो। इसी प्रकार मेरे मोहल्ले के मित्र, विद्यालय के मित्र, महाविद्यालय के मित्र, कार्यालय के मित्र, समाज के मित्र, पुरुष मित्र और महिला मित्र सभी प्रकार के मित्र हो। इस प्रकार मेरे सभी मित्रों में तुम ही हो।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव
हे प्रभु तुम ही विद्या हो। संस्कृत की विद् धातु का प्रयोग ज्ञान, अनुभव, वाचन, वदन आदि क्रियाओं वाले शब्दों में किया जाता है। ज्ञान के पर्याय विद्या को प्रमुखतः दो भागों में बाँटा जा सकता है। सामान्यतः प्रचलित अर्थ में सभी प्रकार की भौतिक विद्यायें आती है, जैसे भाषा, संगीत, कला, विज्ञान, चिकित्सा, मनोविज्ञान, व्यापार, अर्थ और तकनीकी आदि। इन सभी विद्याओँ को भौतिक विद्या कहा जाता है क्योंकि ये सभी विद्यायें इस सृष्टि के व्यक्त/अभिव्यक्त रूप का ज्ञान कराती हैं। इन सभी भौतिक विद्याओँ से भिन्न विद्या को आध्यात्मिक विद्या कहा जाता है। अध्यात्म का अर्थ है स्वयं का अध्ययन, इस प्रकार यह विद्या अभौतिक जगत् का ज्ञान करवाती है। हे प्रभु तुम भौतिक और अभौतिक दोनों प्रकार की विद्या हो।
द्रविणम् के कई अर्थ होते हैं, सामान्यतः प्रचलित अर्थ में द्रविणम् को द्रव्य अथवा चल सम्पत्ति के रूप में भी जाना जाना जाता है। इसी प्रकार द्रविणम् के कुछ अन्य अर्थ हैं जैसे सार, आधार अथवा शक्ति। प्रभु तुम द्रविणम् के ये सभी अर्थ हो। तुम इस जगत् में द्रव्य हो, इस जीवन का सार हो, तुम ही इसका आधार हो। तुम ही इस जगत् में शक्ति हो।
त्वमेव सर्वम् मम देव देव
देवता जैसे अग्नि, वरुण, वायु, सूर्य, इन्द्र (मेघराज) आदि अपनी इन भिन्न-भिन्न शक्तियों से पृथ्वी पर व्याप्त इस जगत् को आधार देते हैं। यदि इनमें से एक भी देवता अपना कार्य न करे तो सभी प्राणियों का जीवन कुछ ही समय में समाप्त हो जायेगा। इस प्रकार ये सभी देवता अपनी शक्तियाँ का प्रसाद देकर हमारा जीवन यापन करते हैं। हे प्रभु इन सभी देवों को इनकी शक्तियाँ आप ही देते हैं। इस प्रकार इन सभी देवताओं के भी स्वामी हे प्रभु तुम ही मेरे लिए सर्वस्य हो।
(हे गुरुदेव) आप मेरे माता और पिता के समान है; आप मेरे भाई और साथी है; आप ही अकेले ज्ञान और धन है. प्रभु, आप सब कुछ हैं|
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
हे प्रभु तुम ही मेरी माँ हो और तुम ही मेरे पिता हो। तुम ही मेरी माँ, पिता और उनके पूर्वज हो। जीवन के आरंभ होने से पहले तो शिशु और माँ एक ही शरीर में निवास करते हैं। शिशु जब बोलना आरंभ करता है तो अधिकांशतः वह पहला शब्द माँ ही बोलता है, क्योंकि उसके लिए माँ, और “मैं” एक ही है। जन्म के समय से चलने, इधर-उधर जाने के लिए दूसरों पर आधारित होता है। परंतु उसकी यह अपेक्षा अन्य लोगों से उसी समय उपजती है, जब उसकी माँ कहीं आस-पास नहीं होती। अन्यथा, सबसे पहले वह माँ से ही यह अपेक्षा करती है कि माँ ही उसे इधर-उधर ले जायेगी। इस तरह शिशु के लिए माँ और आयु बढ़ने पर वयस्क व्यक्ति के लिए भी, माँ अपना स्वयं का ही एक अंग अथवा वह स्वयं माँ का ही एक अंश स्वरूप होती है। हे प्रभु तुम ही माँ को यह सामर्थ्य देते हो कि वह मुझे जीवन दे और माँ के माध्यम से मुझे जीवन दे। इस प्रकार मेरे लिए तुम सर्वप्रथम माँ और जीवन पर्यंत माँ रूपी भगवान् हो। इसी प्रकार जीवन धारण करने के कुछ दिनों बाद, माँ के माध्यम से ही हम पिता के बारे में जानते हैं, तब हे प्रभु आप ही हमारे पिता के रूप में हमारी देख-भाल करते हो। जीवन में हमारे विकास और सुरक्षा का महत्वपूर्ण कार्य तुम मेरे पिता के रूप में करते हो। अतः हे भगवन् मेरे लिए तो सर्वप्रथम तुम ही मेरी माँ हो और तुम ही मेरे पिता हो।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव
हे प्रभु तुम ही मेरे सगे भाई, सौतेले भाई, चचेरे भाई, ममेरे भाई, मौसेरे भाई और फूफेरे भाई अर्थात् मेरे सब प्रकार के सम्बन्धों के भाई हो। इसी प्रकार मेरे मोहल्ले के मित्र, विद्यालय के मित्र, महाविद्यालय के मित्र, कार्यालय के मित्र, समाज के मित्र, पुरुष मित्र और महिला मित्र सभी प्रकार के मित्र हो। इस प्रकार मेरे सभी मित्रों में तुम ही हो।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव
हे प्रभु तुम ही विद्या हो। संस्कृत की विद् धातु का प्रयोग ज्ञान, अनुभव, वाचन, वदन आदि क्रियाओं वाले शब्दों में किया जाता है। ज्ञान के पर्याय विद्या को प्रमुखतः दो भागों में बाँटा जा सकता है। सामान्यतः प्रचलित अर्थ में सभी प्रकार की भौतिक विद्यायें आती है, जैसे भाषा, संगीत, कला, विज्ञान, चिकित्सा, मनोविज्ञान, व्यापार, अर्थ और तकनीकी आदि। इन सभी विद्याओँ को भौतिक विद्या कहा जाता है क्योंकि ये सभी विद्यायें इस सृष्टि के व्यक्त/अभिव्यक्त रूप का ज्ञान कराती हैं। इन सभी भौतिक विद्याओँ से भिन्न विद्या को आध्यात्मिक विद्या कहा जाता है। अध्यात्म का अर्थ है स्वयं का अध्ययन, इस प्रकार यह विद्या अभौतिक जगत् का ज्ञान करवाती है। हे प्रभु तुम भौतिक और अभौतिक दोनों प्रकार की विद्या हो।
द्रविणम् के कई अर्थ होते हैं, सामान्यतः प्रचलित अर्थ में द्रविणम् को द्रव्य अथवा चल सम्पत्ति के रूप में भी जाना जाना जाता है। इसी प्रकार द्रविणम् के कुछ अन्य अर्थ हैं जैसे सार, आधार अथवा शक्ति। प्रभु तुम द्रविणम् के ये सभी अर्थ हो। तुम इस जगत् में द्रव्य हो, इस जीवन का सार हो, तुम ही इसका आधार हो। तुम ही इस जगत् में शक्ति हो।
त्वमेव सर्वम् मम देव देव
देवता जैसे अग्नि, वरुण, वायु, सूर्य, इन्द्र (मेघराज) आदि अपनी इन भिन्न-भिन्न शक्तियों से पृथ्वी पर व्याप्त इस जगत् को आधार देते हैं। यदि इनमें से एक भी देवता अपना कार्य न करे तो सभी प्राणियों का जीवन कुछ ही समय में समाप्त हो जायेगा। इस प्रकार ये सभी देवता अपनी शक्तियाँ का प्रसाद देकर हमारा जीवन यापन करते हैं। हे प्रभु इन सभी देवों को इनकी शक्तियाँ आप ही देते हैं। इस प्रकार इन सभी देवताओं के भी स्वामी हे प्रभु तुम ही मेरे लिए सर्वस्य हो।
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Author - Saroj Jangir
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