भैरवी षष्टकं अर्थ और महत्त्व
काली हैमवती शिवा त्रिनयनी कात्यायनी भैरवी
सावित्री नवयौवना शुभकारी साम्राज्य लक्ष्मी प्रदा
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी
भैरवी मोहिनी देवता त्रिभुवनी ानन्दसन्दायिनी
वाणी पल्लव पानी वेणु मुरली गणप्रिया लोलिनी
कल्याणी उदराजा बिम्बवदना धूम्राक्षसम्हारिणी
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी
भैरवी रौद्रिणि भद्रकाली बगला ज्वालामुखी वैष्णवी
ब्राह्मणी त्रिपुरान्तकी सुरनता देदिप्यमानोज्वला
चामुंडा श्रिता रक्षा पोशजननि दक्षयनि वल्लवी
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी
भैरवी शूलधानु कशानगकुशधरी अर्धेन्दुबिम्बाधरी
वाराही मधुकैटभ प्रशमनी वाणी रामसेविता
मल्लाध्यसुरा मुका दैत्यमथनि माहेश्वरी चाम्बिका
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी
भैरवी सृस्टि विनाश पालनकारी आर्य विसंशोभिता
गायत्री प्रणवाक्षर-अमृतरसः पुर्नानुसन्धि करता
औंकारी विनटसूटार्चितपदा उत्तंदा दैत्यापहा
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी
भैरवी शाश्वत अगमदिविणुता आर्य महादेवता
या ब्रह्मादि पिपीलीकान्तजननि या वई जगन्मोहिनी
या पंचा प्रणवादिरेफजननि या चित्कला मालिनी
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी
Bhairavi Shatakam (Vibrant Chant To Invoke Presense Of Devi)
🌺 प्रथम स्तोत्र
भैरवी शाम्भवी चंद्रमौलिरबला अपर्णा उमा पार्वती ।
काली हैमवती शिवा त्रिनयनी कात्यायनी भैरवी ।
सावित्री नवयौवना शुभकारी साम्राज्य लक्ष्मी प्रदा ।
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी ॥
🪔 हिन्दी अर्थ:
देवी भैरवी, जो भगवान शंकर की शक्ति हैं, जिनके सिर पर चन्द्रमा शोभित है, जो अपर्णा, उमा, पार्वती, काली, हैमवती और शिवा के नाम से जानी जाती हैं, जो तीन नेत्रों वाली हैं, कात्यायनी और सावित्री रूपा हैं, जो सदैव नवयौवना, शुभ फल देने वाली और राजलक्ष्मी (संपन्नता व ऐश्वर्य) प्रदान करने वाली हैं, वे ही चेतन स्वरूपा, परम देवी, भगवती श्री लिंगा भैरवी हैं।
🌺 द्वितीय स्तोत्र
भैरवी मोहिनी देवता त्रिभुवनी आनन्दसन्दायिनी ।
वाणी पल्लव पानी वेणु मुरली गणप्रिया लोलिनी ।
कल्याणी उदराजा बिम्बवदना धूम्राक्षसम्हारिणी ।
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी ॥
🪔 हिन्दी अर्थ:
देवी मोहिनी स्वरूपा हैं, तीनों लोकों में सुख और आनंद देने वाली हैं,
वाणी (सरस्वती) और ललित कला की अधिष्ठात्री हैं,
वेणु (बाँसुरी) और मुरली की मधुर ध्वनि सी कोमल हैं,
कल्याण देने वाली, अरुण (उदयकाल) समान मुख वाली,
और धूम्राक्ष नामक असुर का संहार करने वाली हैं —
वे ही चेतनस्वरूप परमदेवी श्री लिंगा भैरवी हैं।
🌺 तृतीय स्तोत्र
भैरवी रौद्रिणि भद्रकाली बगला ज्वालामुखी वैष्णवी ।
ब्राह्मणी त्रिपुरान्तकी सुरनता देदिप्यमानोज्वला ।
चामुंडा श्रिता रक्षा पोशजननि दक्षयनि वल्लवी ।
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी ॥
🪔 हिन्दी अर्थ:
देवी भैरवी रौद्ररूपिणी हैं, भद्रकाली, बगला, ज्वालामुखी और वैष्णवी के स्वरूप में विराजमान हैं,
वे ब्राह्मणी हैं, जिन्होंने त्रिपुरासुर का नाश किया, देदीप्यमान तेजस्विनी हैं,
चामुंडा रूप में रक्षाकारिणी और पालनहार माता हैं,
जो दक्षकन्या (सती) और वल्लवी (गोपियों की अधिष्ठात्री) रूपा हैं —
वे ही परम चेतना स्वरूपा भगवती श्री लिंगा भैरवी हैं।
🌺 चतुर्थ स्तोत्र
भैरवी शूलधनु कशानगकुशधरी अर्धेन्दुबिम्बाधरी ।
वाराही मधुकैटभ प्रशमनी वाणी रामसेविता ।
मल्लाध्यसुरा मुका दैत्यमथनि माहेश्वरी चाम्बिका ।
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी ॥
🪔 हिन्दी अर्थ:
भैरवी त्रिशूल, धनुष, फंदा, अंकुश आदि अस्त्र धारण करती हैं,
अर्धचन्द्र को अपने मस्तक पर धारण करने वाली हैं,
वाराही रूप में मधु-कैटभ असुरों का संहार करने वाली हैं,
वाणी और श्रीराम द्वारा पूजिता,
मल्ल और अन्य दैत्यों का संहार करने वाली, माहेश्वरी और अंबिका हैं —
ऐसी परमचेतना देवी लिंगा भैरवी को नमस्कार है।
🌺 पञ्चम स्तोत्र
भैरवी सृष्टि विनाश पालनकारी आर्य विसंशोभिता ।
गायत्री प्रणवाक्षर-अमृतरसः पुर्नानुसंधि करता ।
औंकारी विनटसूटार्चितपदा उत्तंदा दैत्यापहा ।
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी ॥
🪔 हिन्दी अर्थ:
देवी भैरवी सृष्टि की रचयिता, पालनहार और संहारकर्ता हैं।
गायत्री और प्रणव (ॐ) के अमृत स्वरूप की अधिष्ठात्री हैं,
पूर्ण एकाग्रता देने वाली हैं, औंकार रूपा हैं,
जिनकी पूजा देवराज और ऋषिगण करते हैं, जो दैत्यों का नाश करने वाली हैं —
वे ही परमचैतन्य रूपा देवी लिंगा भैरवी हैं।
🌺 षष्ठ स्तोत्र
भैरवी शाश्वत अगमदिविणुता आर्य महादेवता ।
या ब्रह्मादि पिपीलीकान्तजननि या वई जगन्मोहिनी ।
या पंचा प्रणवादिरेफजननि या चित्कला मालिनी ।
चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री लिंगा भैरवी ॥
🪔 हिन्दी अर्थ:
देवी भैरवी शाश्वत, अगम्य और दिव्य महादेवी हैं,
जो ब्रह्मा से लेकर सूक्ष्म कीट तक सबकी जननी हैं,
जगत को मोहित करने वाली, पंचप्रणव स्वरूपिणी हैं,
चित्त की कलाओं की माला धारण करने वाली हैं —
वे ही चेतनस्वरूपा परमदेवी, भगवती श्री लिंगा भैरवी हैं।
यह स्तोत्र देवी लिंगा भैरवी की समग्र शक्तियों, स्वरूपों और कार्यों का गान है — वे सृष्टि की रचना, पालन और संहार तीनों करती हैं; वे काली, पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी, वाराही, चामुंडा, त्रिपुरान्तकी जैसी सभी शक्तियों का संगम हैं। उनकी आराधना से संपत्ति, शांति, ज्ञान, विजय, और मोक्ष प्राप्त होता है।
“कालभैरव अष्टकम्” — आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है। यह भगवान काल भैरव की स्तुति है, जो काशी (वाराणसी) के अधिपति एवं शिवजी का रौद्र रूप हैं।
देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥
हिन्दी अर्थ: मैं उस कालभैरव का ध्यान करता हूँ जो काशी के अधिपति हैं,
जिनके पवित्र चरण कमलों की सेवा स्वयं देवराज इन्द्र करते हैं। जो सर्प को यज्ञोपवीत रूप में धारण करते हैं, जिनके मस्तक पर चन्द्रमा शोभित है, जो अनन्त कृपा के सागर हैं और जिन्हें नारद आदि योगीजन वन्दन करते हैं, जो दिगंबर (वस्त्रहीन, केवल आकाशवस्त्र धारी) हैं।
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥
मैं उस कालभैरव की उपासना करता हूँ जिनका तेज करोड़ सूर्यों के समान है, जो संसार-सागर से पार कराने वाले हैं, नीलकण्ठ हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, जो भक्तों की सभी इच्छाएँ पूर्ण करने वाले हैं, काल के भी काल हैं, कमलनयन हैं, त्रिशूलधारी और अक्षर (अविनाशी) हैं।
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥
जिनके हाथों में त्रिशूल, अंकुश, पाश और दण्ड हैं; जो समस्त कारणों के कारण हैं; जिनका शरीर श्यामवर्ण है, जो आदिदेव और निरामय (रोगरहित) हैं; जिनका रूप अत्यंत भीषण और वीर है, और जिन्हें विचित्र ताण्डव नृत्य प्रिय है — ऐसे काशीपति कालभैरव को मैं नमस्कार करता हूँ।
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ४॥
जो भक्ति और मुक्ति दोनों देने वाले हैं, जिनका रूप अत्यंत सुंदर और प्रशंसनीय है,
जो भक्तों के प्रति अत्यंत स्नेहशील हैं, समस्त लोकों में व्याप्त हैं, जिनकी कटी प्रदेश में सुनहरी झंकारती किन्नरी-कमरलड़ी (घुँघरू) शोभित है — मैं उन काशीपति कालभैरव की आराधना करता हूँ।
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥
जो धर्म की मर्यादा की रक्षा करते हैं, अधर्म के मार्ग को नष्ट करते हैं, कर्मजाल से बन्धनमुक्ति देने वाले हैं, और कल्याण प्रदान करने वाले हैं। जिनका शरीर स्वर्णवर्ण के समान दीप्त है और जो सर्पमाला से विभूषित हैं — मैं उन काशीपति कालभैरव को प्रणाम करता हूँ।
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥
जिनके चरण रत्नजटित पादुकाओं से शोभित हैं, जो सदा अद्वितीय, परम पवित्र और प्रिय देवता हैं, जो मृत्यु के गर्व को नष्ट करते हैं, भयंकर दाढ़ों वाले हैं, और जो मोक्ष देने वाले हैं — उन काशीपति कालभैरव की मैं वन्दना करता हूँ।
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥
जिनके प्रचण्ड अट्टहास (हास) से ब्रह्माण्ड के अण्डकोश (सृष्टि के आवरण) फट जाते हैं, जिनकी दृष्टि से सारे पाप विनष्ट हो जाते हैं, जो उग्र शासन करने वाले हैं, आठों सिद्धियाँ देने वाले हैं, और जिनके गले में कपालमाला (खोपड़ियों की माला) शोभती है — ऐसे कालभैरव को मैं नमस्कार करता हूँ।
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥
जो भूतगणों के अधिपति हैं, अपार कीर्ति देने वाले हैं, जो काशीवासियों के पाप-पुण्य का शोधन करते हैं, जो नीति के मार्ग में निपुण हैं, सृष्टि के आदि और पालनकर्ता हैं — उन कालभैरव का मैं निरंतर ध्यान करता हूँ।
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥
जो व्यक्ति इस सुन्दर कालभैरव अष्टक का पाठ करता है, वह ज्ञान और मुक्ति का अधिकारी बनता है, उसके पुण्य बढ़ते हैं, उसके शोक, मोह, दैन्य, लोभ, क्रोध आदि सब नष्ट हो जाते हैं, और वह निश्चय ही भगवान कालभैरव के चरणों की निकटता को प्राप्त करता है।
