तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ भजन
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ भजन
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
यार मेरा दिलदार मेरा,
यमुना दे किनारे वसदा है,
ओ मुरली वजावे कदम तले,
ते मैं नच नच पैला पेंदी हाँ,
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
मेनू दीन धर्म सब भूल गए,
तेरे इश्क़ दे दर आज खुल गए,
मैं जप तप धर्म ते पूजा कूं तेरे
उत्तों घोल मौकेंदी हाँ,
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
तेरे इश्क़ दी मदिरा तां पी गई हाँ,
मैं तां तेरी दीवानी थी गई हाँ,
तेरे कदम विच थोड़ी जगह मिले,
मैं न मरदी न जीनी आ,
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
यार मेरा दिलदार मेरा यमुना
दे किनारे वसदा है,
ओ मुरली वजावे कदम तले,
ते मैं नच नच पैला पौंनी हाँ,
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
यार मेरा दिलदार मेरा,
यमुना दे किनारे वसदा है,
ओ मुरली वजावे कदम तले,
ते मैं नच नच पैला पेंदी हाँ,
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
मेनू दीन धर्म सब भूल गए,
तेरे इश्क़ दे दर आज खुल गए,
मैं जप तप धर्म ते पूजा कूं तेरे
उत्तों घोल मौकेंदी हाँ,
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
तेरे इश्क़ दी मदिरा तां पी गई हाँ,
मैं तां तेरी दीवानी थी गई हाँ,
तेरे कदम विच थोड़ी जगह मिले,
मैं न मरदी न जीनी आ,
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
यार मेरा दिलदार मेरा यमुना
दे किनारे वसदा है,
ओ मुरली वजावे कदम तले,
ते मैं नच नच पैला पौंनी हाँ,
तेरे इश्क़ दी रीत निभेदी हाँ,
वे मैं श्याम तो सदके रहंदी हाँ।
multani bhajan-Tedhe Ishq di Reet - Poonam Didi Patiala Wale
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संसार के धर्म, जप, तप और पूजा सब उसके लिए महत्वहीन हो जाते हैं क्योंकि उसका धर्म अब केवल प्रेम बन गया है। यह प्रेम कोई सीमित भावना नहीं, बल्कि ऐसी डूब है जहाँ अहंकार मिट जाता है और केवल समर्पण रह जाता है। श्याम के इश्क़ में वह अपना सर्वस्व अर्पित करती है, दर्द और आनंद दोनों को एक समान स्वीकारती है, क्योंकि उसके लिए प्रेम ही साधना है और श्याम ही परम सत्य।
श्याम वह अनंत प्रेमस्वरूप हैं जो यमुना तट पर वंशी बजाकर सृष्टि को मोहित करते हैं। उनका हर सुर आत्मा को भीतर तक छूता है, जैसे ईश्वर स्वयं प्रेम का संगीत बन गए हों। वे केवल राधा या किसी एक प्रेमिका के नहीं, बल्कि हर उस हृदय के आराध्य हैं जिसमें निष्कपटता और समर्पण बसता है। उनके चरणों में झुकना मानो अपने अस्तित्व को शांति के सागर में विसर्जित कर देना है।
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Author - Saroj Jangir
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