तुम सुणो जी म्हारो अरजी लिरिक्स Tum Suno Ji Mharo Arji Lyrics
तुम सुणो जी म्हारो अरजी।
भवसागर में बही जात हूँ काढ़ो तो थारी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई सांचा सगा रघुबरजी।।
मात-पिता और कुटम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगावो थारी मरजी।।
भवसागर में बही जात हूँ काढ़ो तो थारी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई सांचा सगा रघुबरजी।।
मात-पिता और कुटम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगावो थारी मरजी।।
Tum Suno Jee Mhaaro Arajee.
Bhavasaagar Mein Bahee Jaat Hoon Kaadho To Thaaree Marajee.
In Sansaar Sago Nahin Koee Saancha Saga Raghubarajee..
Maat-pita Aur Kutam Kabeelo Sab Matalab Ke Garajee.
Meera Kee Prabhu Arajee Sun Lo Charan Lagaavo Thaaree Marajee..
(राग-मांड) साँवरिया म्हारी अर्जी सुणो गिरधारी - दिनेश भट्ट मालपुरा। Arji suno girdhari- Dinesh Bhatt
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तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥
भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो तो थारी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी॥
मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी मरजी॥
स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो।
या भवसागर मंझधार में थे ही निभावण हो॥
म्हाने औगण घणा रहै प्रभुजी थे ही सहो तो सहो।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी लाज बिरद की बहो॥
पिया मोहि दरसण दीजै हो।
बेर बेर मैं टेरहूं, या किरपा कीजै हो॥
जेठ महीने जल बिना पंछी दुख होई हो।
मोर असाढ़ा कुरलहे घन चात्रा सोई हो॥
सावण में झड़ लागियो, सखि तीजां खेलै हो।
भादरवै नदियां वहै दूरी जिन मेलै हो॥
सीप स्वाति ही झलती आसोजां सोई हो।
देव काती में पूजहे मेरे तुम होई हो॥
मंगसर ठंड बहोती पड़ै मोहि बेगि सम्हालो हो।
पोस महीं पाला घणा,अबही तुम न्हालो हो॥
महा महीं बसंत पंचमी फागां सब गावै हो।
फागुण फागां खेलहैं बणराय जरावै हो॥
चैत चित्त में ऊपजी दरसण तुम दीजै हो।
बैसाख बणराइ फूलवै कोमल कुरलीजै हो॥
काग उड़ावत दिन गया बूझूं पंडित जोसी हो।
मीरा बिरहण व्याकुली दरसण कद होसी हो॥
भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो तो थारी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी॥
मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी मरजी॥
स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो।
या भवसागर मंझधार में थे ही निभावण हो॥
म्हाने औगण घणा रहै प्रभुजी थे ही सहो तो सहो।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी लाज बिरद की बहो॥
पिया मोहि दरसण दीजै हो।
बेर बेर मैं टेरहूं, या किरपा कीजै हो॥
जेठ महीने जल बिना पंछी दुख होई हो।
मोर असाढ़ा कुरलहे घन चात्रा सोई हो॥
सावण में झड़ लागियो, सखि तीजां खेलै हो।
भादरवै नदियां वहै दूरी जिन मेलै हो॥
सीप स्वाति ही झलती आसोजां सोई हो।
देव काती में पूजहे मेरे तुम होई हो॥
मंगसर ठंड बहोती पड़ै मोहि बेगि सम्हालो हो।
पोस महीं पाला घणा,अबही तुम न्हालो हो॥
महा महीं बसंत पंचमी फागां सब गावै हो।
फागुण फागां खेलहैं बणराय जरावै हो॥
चैत चित्त में ऊपजी दरसण तुम दीजै हो।
बैसाख बणराइ फूलवै कोमल कुरलीजै हो॥
काग उड़ावत दिन गया बूझूं पंडित जोसी हो।
मीरा बिरहण व्याकुली दरसण कद होसी हो॥