किस धुन में बैठा बावरे किस मद में मस्ताना है सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है हरी बोल
क्या लेकर के आया था जग में फिर क्या लेकर जाएगा मुठी बांधे आया जग में हाथ पसारे जाना है सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है
कोई आज गया कोई कल गया कोई चंद रोज में जाएगा जिसकी घर से निकल गया पंछी उस घर में फिर नहीं आना है सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है सूत मात पिता बांधव नारी धन धान यही रह जायेगा यह चंद रोज की यारी है फिर अपना कौन बेगाना है सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है कहे देवेंद्र हरी नाम जपो फिर ऐसा समय ना आएगा पाकर कंचन सी काया को हाथ मसल पछताना है
सोने वाले जाग जा संसार मुसाफिर खाना है
Sansaar Musafir Khana Hai मनुष्य के जीवन की दर्द भरी सच्चाई Devendra Pathak Ji Ambey Bhakti
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