सूर्यमंत्र अर्थ और महत्त्व
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं ।।
"जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं। तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरं॥"
अर्थ:- मैं सूर्य देवता को प्रणाम करता हूँ, जो जपाकुसुम (हिबिस्कस) के समान लालिमा वाले, महर्षि कश्यप के पुत्र, महान तेजस्वी, अंधकार के नाशक और सभी पापों को दूर करने वाले हैं। (भगवान्
सूर्य तीनों लोकों के स्वामी हैं और भगवान् सूर्य जपा पुष्प (फूल) के
सामान ही अरुणिमा मई हैं और महान तेज को धारण किये हुए हैं। भगवान् सूर्य
अंधकार और समस्त पापो को नष्ट करने वाले हैं उन्हें नमस्कार है।)
महत्त्व:- यह श्लोक सूर्य देवता की महिमा का वर्णन करता है, जो जीवन के लिए आवश्यक ऊर्जा और प्रकाश प्रदान करते हैं। सूर्य की उपासना से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, और पापों से मुक्ति मिलती है। इस मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं और आध्यात्मिक उन्नति होती है। आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं