गुरु गम का सागर तमने लाख वंदन Guru Gam Ka Sagar Tamane Lakh Vandan
एजी ध्यान मुलम गुरु मूर्ति, मंत्र मुलम गुरु वाक्यम, मोक्ष मुलम गुरु कृपा, गुरु बिन ज्ञान ना उपजे, गुरु बिना मिले ना मोक्ष, गुरु बिना लखे कोई सत को, गुरु बिन मिटे ना दोष।
ए लाख लाख वंदन तमने कोटि कोटि वंदन गुरु गम का सागर तमने लाख लाख वंदन अज्ञान जिवोडो गुरु जी शरण में आयो ए ज्ञान को दीपक गुरु जी जनाए हो दीजो गुरु गम का सागर तमने लाख लाख वंदन अज्ञानी जीवडो चरणों चरणों में आयो ज्ञान को दीपक गुरूजी, जलाई हो दियो, गुरु गम का सागर तमने, लाख लाख वंदन।
लख़ हो चौरासी जिवडो भटक ने आयो, अबकी चौरासी गुरूजी, म्हारी चौरासी गुरूजी, छुड़ा हो दीज्यो, गुरु गम का सागर तमने, लाख लाख वंदन।
अब को जीवन हो गुरूजी, म्हारो अबको जीवन, संवार हो दीज्यो, गुरु गम का सागर तमने, लाख लाख वंदन।
इना हो सेवक की अरज गुसाई, ए आवागमन को बंधन, म्हारो आवागमन को बंधन, छुड़ाई हो दीज्यो, गुरु गम का सागर तमने, लाख लाख वंदन।
एजी ध्यान मुलम गुरु मूर्ति, मंत्र मुलम गुरु वाक्यम, मोक्ष मुलम गुरु कृपा, गुरु बिन ज्ञान ना उपजे, गुरु बिना मिले ना मोक्ष, गुरु बिना लखे कोई सत को, गुरु बिन मिटे ना दोष।
प्रह्लाद सिंह टिपानिया प्रसिद्ध लोक गायक और संगीतकार हैं। उनका जन्म 1 जनवरी, 1954 को भारत के मध्य प्रदेश के देवास जिले के तिपनिया गाँव में हुआ था। वह एक कबीर भजन गायक हैं, और उनका संगीत मध्य प्रदेश की लोक परंपराओं में गहराई से निहित है। प्रह्लाद सिंह टिपानिया 15वीं शताब्दी के भारतीय रहस्यवादी कवि कबीर की कविताओं के भावपूर्ण गायन के लिए जाने जाते हैं। वह मालवी लोक शैली में गाते हैं और उनके संगीत की विशेषता सरल और देहाती धुन है। उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगीत समारोहों में प्रदर्शन किया है और भारतीय संगीत में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार जीते हैं। प्रह्लाद सिंह टिपानिया का संगीत भारत और दुनिया भर में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। कबीर की कविताओं की उनकी भावपूर्ण प्रस्तुतियाँ लाखों लोगों के दिलों को प्रेरित और छूती रहती हैं।
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