मुझे तूने बाबा सब कुछ दिया है भजन
मुझे कौन जानता था तेरी बंदगी से पहले
मेरी जिन्दगी में क्या था तेरी बंदगी से पहले
मेरी जिन्दगी थी ऐसी जैसे खाली होती सीपी
मेरी कीमत बढ़ गयी है तूने भर दिए हैं मोती
में जब तक बेगाना था तो कोई पूछता न था
तूने खरीद कर मुझे अनमोल कर दिया
मुझे तूने बाबा सब कुछ दिया है
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है
ना मिलते इस जीवन में
ये दर्शन जो तेरे
तो क्या थी जमाने में ओकात मेरी
ये बन्दा तुम्हारे सहारे जिया है
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है
जिस घड़ी से हमें दर तुम्हारा मिला
बे सहारे थे हमको सहारा मिला
पहले डर था हमें नींद आती न थी
बेकरारी गमे दिल से जाती ना थी
चैन से सेज पर अब तो सोने लगे
जब से उल्फत का तेरी इशारा मिला
अब मुझे रास आ गया है तेरे
दर पर सर झुकाना
मुझे मिल गया अब ठिकाना
तेरा शुक्रिया है तेरा शुक्रिया है
यह कथा उस दिव्यता का परिचायक है जहाँ त्याग को देवत्व का वरदान प्राप्त होता है। बर्बरीक, जिन्हें आज खाटू श्याम जी के नाम से जाना जाता है, केवल वीरता के प्रतीक नहीं, बल्कि करुणा और समर्पण के जीवंत स्वरूप हैं। महाभारत के युद्ध से पूर्व जब श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि वे किस पक्ष का साथ देंगे, तो बर्बरीक ने कहा—“जिस पक्ष की हार होती दिखेगी, मैं उसका साथ दूँगा।” उनके इस निष्पक्ष संकल्प से कृष्ण समझ गए कि यह युद्ध समाप्त ही नहीं हो पाएगा। तब उन्होंने भविष्य के कल्याण के लिए उनके शीश का दान माँगा। बर्बरीक ने हँसते हुए अपना शीश अर्पित कर दिया, और भगवान ने उन्हें यह वरदान दिया कि कलियुग में वे “श्याम” नाम से पूजे जाएँगे, और उनके नाम का स्मरण ही श्रद्धालु के जीवन का कल्याण करेगा।
यह प्रसंग केवल एक कथा नहीं, बल्कि विश्वास और समर्पण की पराकाष्ठा है। श्याम बाबा का स्वरूप इस बात का प्रमाण है कि ईश्वर केवल उन में नहीं रहते जो ज्ञान या वैभव से सम्पन्न हों, बल्कि उन में बसते हैं जो अपने अस्तित्व को प्रेम और दया में विलीन कर देते हैं। उनकी कृपा का स्वरूप इतना व्यापक है कि कोई चाहे दुःख में पुकारे या आनंद में, वे हर रूप में अपने नाम से प्रकट होकर संरक्षण कर लेते हैं। यही कारण है कि खाटू धाम में “श्याम श्याम” की गूंज केवल भक्ति नहीं, बल्कि जीवों की आस्था की प्रतिध्वनि है—जहाँ हर हृदय कृष्ण से जुड़ा है, और हर दुआमें बर्बरीक का त्याग गूँजता है।
Sadhvi Purnima Ji (भजन गायक )
