नवरात्री के पथम दिवस पर माता शैलपुत्री के मंत्र
नवरात्रा के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा बड़े ही विधान से की जाती है। नवरात्रा के पहले ही रोज घर में माता जी की स्थापना होती है। देवी माता दुर्गा के नो रूपों में माता शैलपुत्री प्रथम स्वरुप माना गया है। इस रोज पूजा करने से चन्द्र दोष से मुक्ति मिलती है।
क्यों कहते हैं माता रानी को 'शैलपुत्री' : माता दुर्गा के प्रथम स्वरुप को हम नवरात्रा में शैलपुत्री माता जी की पूजा करके नवरात्रों की शुरुआत करते हैं। माता जी का नाम शैलपुत्री पड़ने के पीछे कारन है की हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारन माता जी का नाम शैलपुत्री पड़ा। मान्यता के अनुसार एक बार दक्षप्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में सभी देवताओं को तो आमंत्रित किया मगर भगवान शिव को नहीं बुलाया। भगवान शिव ने बिना निमंत्रण यज्ञ में जाने से मना किया लेकिन सती के आग्रह पर वे भी यज्ञ में आ गए लेकिन जब उन्होंने देखा की वहां पर सती का अपमान हो रहा है। सती भी इससे दुखी हो गयी और स्वंय को को यज्ञाग्नि में भस्म कर लिया। इस पर भगवान शिव ने क्रोधित हो गये और यज्ञ को तहस नहस कर दिया। वही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। काशी में इनका स्थान मढिया घाट बताया गया है। निचे दिए गए मात्र का उच्चारण आप माता शैलपुत्री की पूजा के दौरान करें।
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
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