बाहर काईं भटके लिरिक्स हिंदी Bahar Kai Bhatake Lyrics

बाहर काईं भटके लिरिक्स हिंदी Bahar Kai Bhatake Lyrics Hindi  Kabir Bhajan (Gavra Devi) Lyrics Hindi  कबीर भजन मीनिंग हिंदी

 
बाहर काईं भटके लिरिक्स हिंदी Bahar Kai Bhatake Lyrics

चंदा न दीखे चालता, और बढ़ती न दीखे बेल
साधू न दीखे सुमरता, यह कुदरत का खेल
चंदा दीखे चालता, और बढ़ती दीखे बेल
साधू दीखे सुमरता, सुरत शबद का मेल
अरे सुरता रेवो मंदिर रे मांय
बाहर काईं भटके
काईं भटके भाई काईं भटके
बाहर काईं भटके.....बाहर काईं भटके
रेवो मंदिर रे मांयबाहर काईं भटके
हो,..............

आछा धान खेतर मांही निपजे
बिना बायां तो खेती कियां निपजे
बिना बायां तो खेती कियां निपजे
रेवो मंदिर रे मांयबाहर काईं भटके
आछा तेल तिला रे मांही निपजे
आछा तेल तिला रे मांही निपजे
बिना घाणी तेल कीकर निकले
बिना घाणी तेल कीकर निकले
रेवो मंदिर रे मांयबाहर काईं भटके
हो,..............

आछा घृत दही रे माहि निपजे
आछा घृत दही रे माहि निपजे
बिना बिलोया माखण कियां निकले
बिना बिलोया माखण कियां निकले
काईं भटके....................

आछा ज्ञान हिरदय में निपजे
आछा ज्ञान हिरदय में निपजे
बिना गुरुजी ज्ञान कियां उपजे
बिना गुरुजी ज्ञान कियां उपजे
काईं भटके....................

आछा हीरा समुन्दर में निपजे
आछा हीरा समुन्दर में निपजे
बिना जौहरी हीरो कुण परखे
बिना जौहरी हीरो कुण परखे
राम थारे मायीं
काईं भटके....................

आछा नीर गंगा में बेवे
आछा नीर गंगा में बेवे
बिना न्हाया काया कियां सुधरे
बिना न्हाया तो काया कियां सुधरे
राम थारे मायीं
बाहर काईं भटके....................
कहवे कबीर सुणो रे भाई साधू
 साधू.......... साधू.......... साधू..........साधू
कहवे कबीर सुणो रे भाई साधू
बिना भजन पार कियां उतरे
बिना भजन पार कियां उतरे
राम थारे मायीं
बाहर काईं भटके....................
 

जपि जपि रे जीयरा गोब्यंदो, हित चित परमांनंदौ रे।
बिरही जन कौ बाल हौ, सब सुख आनंदकंदौ रे॥टेक॥
धन धन झीखत धन गयौ, सो धन मिल्यौ न आये रे॥
ज्यूँ बन फूली मालती, जन्म अबिरथा जाये रे॥
प्रांणी प्रीति न कीजिये, इहि झूठे संसारी रे॥
धूंवां केरा धौलहर जात न लागै बारी रे॥
माटी केरा पूतला, काहै गरब कराये रे॥
दिवस चार कौ पेखनौ, फिरि माटी मिलि जाये रे॥
कांमीं राम न भावई, भावै विषै बिकारी रे॥
लोह नाव पाहन भरी, बूड़त नांही बारी रे॥
नां मन मूवा न मारि सक्या, नां हरि भजि उतर्‌या पारो रे॥
कबीर कंचन गहि रह्यौ, काच गहै संसार रे॥

नर पछिताहुगे अंधा।
चेति देखि नर जमपुरि जैहै, क्यूँ बिसरौ गोब्यंदा॥टेक॥
गरभ कुंडिनल जब तूँ बसता, उरध ध्याँन ल्यो लाया।
उरध ध्याँन मृत मंडलि आया, नरहरि नांव भुलाया॥
बाल विनोद छहूँ रस भीनाँ, छिन छिन बिन मोह बियापै॥
बिष अमृत पहिचांनन लागौ, पाँच भाँति रस चाखै॥
तरन तेज पर तिय मुख जोवै, सर अपसर नहीं जानैं॥
अति उदमादि महामद मातौ, पाष पुंनि न पिछानै॥
प्यंडर केस कुसुम भये धौला, सेत पलटि गई बांनीं॥
गया क्रोध मन भया जु पावस, कांम पियास मंदाँनीं॥
तूटी गाँठि दया धरम उपज्या, काया कवल कुमिलांनां॥
मरती बेर बिसूरन लागौ, फिरि पीछैं पछितांनां॥
कहै कबीर सुनहुं रे संतौ, धन माया कछू संगि न गया॥
आई तलब गोपाल राइ की, धरती सैन भया॥ 

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