
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
कोई सिहांसन चढ़ चले, कोई बंधे ज़ंजीर
माटी कहे कुम्हार से, क्या रोंदे तू मोहे?
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदूंगी तोहे
समरथ नाम कबीर, सतगुरु नाम कबीर
लकड़ी कहे लुहार से, क्या जारे तू मोहे?
एक दिन ऐसा आएगा, मैं जारूंगी तोहे
अब थारो कईं पतियारो, रे परदेसी?
ओ दूरादेसी
मायला ढसी गयी भीत पड़न लागी टाटी
थारी टाटी में मिल गयी माटी, रे परदेसी
अब थारो कईं पतियारो, रे परदेसी?
मायला घाट घड़ी को सांटो रे मीठो
यो तो गांठ गांठ रस न्यारो रे परदेसी
अब थारो कईं पतियारो, रे परदेसी?
मायला जब लग तेल दिया रे मांहि बाती
थारा मंदरिया में होयो उजियारो, रे परदेसी
अब थारो कईं पतियारो, रे परदेसी?
मायला खूटी गयो तेल, बुझन लागी बाती
थारा मंदरिया में होयो अंधियारो, रे परदेसी
अब थारो कईं पतियारो, रे परदेसी?
मायला उठी चलो बणियो, सूनी आ थारी हाठड़ी
इ तो तालो दई गयो ने खूंची लई गयो, रे दूरादेसी
अब थारो कईं पतियारो, रे परदेसी?
मायला कहें हो कबीर साह, सुनो रे भाई साधो
थारो हंसो अमरापुर जासी रे परदेसी
अब थारो कईं पतियारो, रे परदेसी?
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Author - Saroj Jangir
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