बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई मीनिंग
कबीर के दोहे व्याख्या हिंदी में
बिरह भुवंगम तन बसै मन्त्र न लागै कोई।
राम बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होई।।
Birah Bhuvangam Tan Basai Mantr Na Laagai Koee.
Raam Biyogee Na Jivai Jivai To Baura Hoee
बिरह : बिछड़ने का दुःख।
भुवंगम : भुजंग , सांप।
तन बसै : मन में रहता है।
मन्त्र न लागै कोई : कोई उपचार कार्य नहीं करता है।
बौरा: पागल।
इस दोहे का हिंदी मीनिंग : विरह की वेदना (बिछड़ने का दुःख ) जिस प्रकार किसी व्यक्ति को मन ही मन काटती रहती है, उसे कोई मंत्र (उपचार) भी नहीं लगता है, ऐसे ही राम से प्रेम करने वाले व्यक्ति को भी मन ही मन संताप रहता है (मन में विरह का सांप काटता रहता है ) और उसका जीवित रहना सम्भव नहीं होता है, यदि वह जीवित रह भी जाए तो पागल के समान ही रहता है। पागल के समान इसलिए बताया गया है क्योकि यह जगत 'माया ' की भाषा को समझता है, माया के इतर किये गए कार्य और व्यवहार को समाज अव्यवहारिक और असामान्य मानते हुए उस व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर शक करके उसे पागल कहने लगते हैं। वस्तुतः ईश्वर के रंग में रंगा बैरागी सबसे जुदा होता है तभी तो बुल्ले शाह कहते हैं, मैं क्यों ना पांवो में घुंघरू बाँध के मुरशद को मनाऊँ ?
कंजरी बनेया मेरी इज्जत घटदी नाहीं
मैंनू नच के यार मनावण दे
इश्क़ बुल्ला नु नचावे त यार नचना पैंदा ऐ
इश्क़ बुल्ला नु नचावे त यार नचना पैंदा ऐ
जडो मिल जावे….
जडो मिल जावे दिदार तन नचना पेंदा ऐ
जडो मिल जावे दिदार तन नचना पेंदा ऐ
इश्क़ बुल्ला नु नचावे त यार नचना पैंदा ऐ
जडो मिल जावे दिदार तन नचना पेंदा ऐ
जडो मिल जावे दिदार तन नचना पेंदा ऐ
इक्क खडके दुक्कड़ वज्जे गन्दा होय चुला
इक्क खडके दुक्कड़ वज्जे गन्दा होय चुला
फ़क़ीर दे रज्ज रज्ज खावण ते राज़ी होवे बुल्ला
जडो मिल जावे
जडो मिल जावे दिदार तन नाचना पेंदा ऐ
जडो मिल जावे दिदार तन नाचना पेंदा ऐ
जडो सहमने होवे….
जडो सहमने होवे यार त नाचना पेंदा ऐ
जडो मिल जावे दिदार तन नाचना पेंदा ऐ….
इश्क़ बुल्ले दे अन्दर वदया भंबाद अंदर मच्या
झांजर पैरी पा के बुल्ला यार दे वेहड़े नाच्या
जडो मिल जावे
जडो मिल जावे प्यार तन नचना पेंदा ऐ
अदो सहमने होवे यार ते नचना पेंदा ऐ
इश्क़ बुल्ला नु नचावे त यार नचना पैंदा ऐ
जडो मिल जावे दिदार तन नचना पेंदा ऐ….
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