सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै हिंदी मीनिंग Sukhiya Sab Sansaar Hai Khaye Aru SoveHindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
कबीर के दोहे व्याख्या हिंदी में
सुखिया सब संसार है खाए अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।।
Sukhiya Sab Sansaar Hai Khae Aru Sovai.
Dukhiya Daas Kabeer Hai Jaage Aru Rovai.
Dukhiya Daas Kabeer Hai Jaage Aru Rovai.
दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Doha Hindi
खाए अरु सोवे : माया में डूबे रहना। खा पीकर माया के अंधकार में सोना।
जागे और रोवे : माया से विरक्ति उपरान्त जागना और व्यर्थ गँवाए समय के लिए / दूसरों को सोता हुआ देख कर रोना।
इस दोहे का हिंदी मीनिंग: लोग माया जनित अंधकार के वश में आकर खाना पीना और सोना को ही जीवन का उद्देश्य समझकर ग़लतफ़हमी में मस्त हैं। कबीर साहेब माया के बंधन को काट कर जाग गएँ हैं और गाफिल/बेफिक्र होकर सोये लोगों को देखकर उन्हें दुःख होता है (रोवे). जो अमूल्य जीवन मालिक के सुमिरन के लिए मिला था उसको बेहद सस्ते और हल्के में लेकर जीवन का अमूल्य वक़्त बर्बाद कर रहे हैं, इसे देखकर कबीर को मन ही मन दुःख होता है क्योंकि वे जाग चुके हैं।
इस दोहे का मूल भाव है की जीवन मात्र खाने पीने और मौज उड़ाने के लिए तो नहीं मिला है। इसके प्रत्येक पल का आदर करते हुए मालिक का सुमिरण करना चाहिए। लोग गाफिल हैं, अपने अहम् में डूबे हुए हैं। जब वक़्त हाथ से निकल जाता है तो सिर्फ पछतावे के कुछ हाथ में नहीं रहता है। जैसे एक अन्य स्थान पर कबीर साहेब कहते हैं की बचपन खेल खेल में गवां दिया, जवानी दम्भ में और अंत में बुढ़ापे में वात, कफ्फ और पित्त ने घेरा।
कबीर सूता क्या करै, जागि न जपै मुरारि।
एक दिनाँ भी सोवणाँ, लंबे पाँव पसारि॥
माया तजूँ तजी नहीं जाइ, फिर फिर माया मोहे लपटाइ॥
माया आदर माया मान, माया नहीं तहाँ ब्रह्म गियाँन॥
माया रस माया कर जाँन, माया करनि ततै परान॥
माया जप तप माया जोग, माया बाँधे सबही लोग॥
माया जल थलि माया आकासि, माया व्यापि रही चहुँ पासि॥
माया माता माया पिता, असि माया अस्तरी सुता॥
माया मारि करै व्यौहार, कहैं कबीर मेरे राम अधार॥
एक दिनाँ भी सोवणाँ, लंबे पाँव पसारि॥
माया तजूँ तजी नहीं जाइ, फिर फिर माया मोहे लपटाइ॥
माया आदर माया मान, माया नहीं तहाँ ब्रह्म गियाँन॥
माया रस माया कर जाँन, माया करनि ततै परान॥
माया जप तप माया जोग, माया बाँधे सबही लोग॥
माया जल थलि माया आकासि, माया व्यापि रही चहुँ पासि॥
माया माता माया पिता, असि माया अस्तरी सुता॥
माया मारि करै व्यौहार, कहैं कबीर मेरे राम अधार॥