जब मैं था तब गुरु नहीं अब गुरू है हम नाहीँ मीनिंग
जब मैं था तब गुरु नहीं अब गुरू है हम नाहीँ,
प्रेम गली अति साँकरी ता में दो न समांंहि.
Or
जब मैं था तब गुरू नहीं, अब गुरू हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांहि।।
Or
जब मैं था तब गुरु नहीं अब गुरु है हम ना नाही।
प्रेम गली अति सांकरी तामे दो न समाही
Jab Main Tha Tab Guru Nahin Ab Guroo Hai Ham Naaheen
Prem Galee Ati Saankaree Ta Mein Do Na Samaannhi
Or
Jab Main Tha Tab Guru Nahin Ab Guru Hai Ham Na Naahee.
Prem Galee Ati Saankaree Taame Do Na Samaahee
जब मैं था तब गुरु नहीं कबीर दोहे के शब्दार्थ
जब : काल विशेष, when, whilst
मैं : यहाँ मैं से अभिप्राय 'अहम्' स्वंय के होने के अस्तित्व से है। I/ me
गली : lane, street
साँकरी : Narrow, गली संकरी से अभिप्राय है की इश्वर /मालिक के अलावा कोई और नहीं समां सकता है। समांंहि : occupy
जब मैं था तब गुरु नहीं
ईश्वर प्राप्ति में सबसे बड़ा बाधक कौन है ?, अहम् और माया। अहम्, स्वंय के होने का, स्वंय के अस्तित्व का एहसास जब तक किसी में मौजूद रहता है वह ईश्वर के नजदीक नहीं पहुँच सकता है। स्वंय को जब व्यक्ति समाप्त कर लेता है (स्वंय के घमंड को ) जब कहीं जाकर ईश्वर का एहसास मात्र होता है उसे पाना और भी जटिल काम है। एक जगह कबीर साहेब ने भक्ति मार्ग के विषय में कहा है की "कबीर यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहि, सीस उतारे हाथि करि, सो पैसे घर माहि " स्वंय के शीश (अभिमान) को समाप्त करने पर ही घर के अंदर प्रवेश सम्भव है, यह कोई रिश्तेदार का घर नहीं है जहाँ यूँ ही बगैर प्रयत्न किये कोई दाखिल हो जाए। कबीर साहेब के विचारों के सामान ही बाबा बुल्लेशाह की वाणी है।
इस दोहे का भाव स्पष्ट है की अहम भक्ति में सबसे बड़ाबाधक है। जरा इस अहम् की उत्पत्ति के भी विश्लेषण कीजिये की यह उत्पन्न कहाँ से होता है। प्रत्येक जीव में ईश्वर का अंश है। वह कैसे ईश्वर से विमुख हो सकता है। वस्तुतः यह माया है जो हमें इस भरम में डालती है की यहीं हमारा स्थाई घर है। इस भरम में पढ़कर हम ईश्वर से विमुख हो जाते हैं और अधिक से अधिक भौतिक साधन सम्पदा जो जोड़ने के चक्कर में अपनी मंजिल को भुला बैठते हैं। हम भूल जाते हैं की हम तो राही हैं और हमें महज गुजरना है, यह संसार तो बस एक सराय है, और कुछ नहीं।
रब ते तेरे अन्दर वसदा, विच कुरान इशारे
बुल्ले शाह रब ओनु मिलदा, जेडा अपने नफस नु मारे
Rab Te Tere Andar Vasada, Vich Kuraan Ishaare
Bulle Shaah Rab Onu Milada, Jeda Apane Naphas Nu Maare'नफ़स ' खुद के अहंकार को जब तक मारा नहीं तो रब्ब नहीं मिलेगा। रब्ब तेरे ही अंदर रहता है लेकिन जब तक स्वंय के अहम् को समाप्त नहीं किया तब तक रब्ब उसमें समां नहीं सकता है।
पढ़ी नमाज ते रियाज़ न सिखया , तेरिया किस कम पढ़िया नामाजा
ना घर दीठा ना घरवाला दीठा , तेरिया किस कम कितिया नियाज़ा
इल्म पढ़या ते अमल ना कीता ,तेरिया किस कम कितिया काजा
बुल्ले शाह पता तद लगसी जद ,चिड़ी फसी हथ बाजा
ओथे अमला ते होणे ने नाबेड़े , किसे नी तेरी जात पुछणी अभिप्राय है की वहां पर (मालिक के समक्ष ) कोई भी तुम्हारी जाती नहीं पूछेगा, बस तुम्हारे कामों का ही हिसाब होगा।
इस दोहे का मूल भाव है की जब तक स्वंय के अभिमान और अहंकार को समाप्त नहीं किया जाता है तब तक प्रेम (आत्मा की ) की संकरी गली में ईश्वर और अहंकार दोनों एक साथ समां नहीं सकते हैं।
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