जो तूं ब्रह्मण ब्राह्मणी का जाया आन बाट काहे नहीं आया
जो तूं ब्रह्मण ब्राह्मणी का जाया
आन बाट काहे नहीं आया
काहे को कीजै पांडे छूत विचार।
छूत ही ते उपजा सब संसार ।।
हमरे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध।
तुम कैसे बाह्मन पांडे, हम कैसे सूद
Jo Toon Brahman Braahmanee Ka Jaaya
Aan Baat Kaahe Nahin Aaya
Kaahe Ko Keejai Paande Chhoot Vichaar.
Chhoot Hee Te Upaja Sab Sansaar ..
Hamare Kaise Lohoo Tumhaare Kaise Doodh.
Tum Kaise Baahman Paande, Ham Kaise Sood दोहे का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Doha: कबीर साहेब ने जातिप्रथा और संप्रदाय उत्पीडन का दंश झेला था जो की उनके विचारों से साफ़ इंगित होता है। दलित और शोषित लोगों के लिए कबीर साहेब किसी मशीहा से कम ना थे। जिस समय तलवार की धार से फैसले होते थे उस समय कबीर साहेब ने शोषित वर्ग की आवाज को उठाया जो उनकी मानवतावादी द्रष्टिकोण का परिचायक है। कबीर 'ब्राह्मणों' के विरोधी नहीं थे, बल्कि ब्राह्मणवाद के विरोधी थे।
बड़ी विडंबना है की कुछ लोग कबीर साहेब को 'ब्राह्मण विरोधी' सिद्ध करने पर तुले रहते हैं, जबकि वास्तविकता में ऐसा बिलकुल भी नहीं है। आप देखिये की कबीर साहेब पर कितने जुल्म हुए, ना केवल मुस्लिमों के द्वारा बल्कि हिन्दुओं के द्वारा भी, लेकिन उनकी वाणी में आपको कहीं भी प्रतिशोध और बदले की भावना नहीं दिखाई देती है। यह एक दीगर विषय है की उन्हें जहाँ पर भी बनावटीपन दिखाई दिया उन्होंने उसका विरोध किया। कबीर साहेब ने जन्म आधारित श्रेष्ठता को सिरे से नकार दिया जो उचित भी है। एक और जहाँ शाश्त्रों और मंदिर तक दलित समाज की पहुँच दूर थी वही पर उन्हें गवार समझ कर उनका शोषण किया जाता था, जो बिलकुल भी उचित नहीं था, कबीर साहेब ने इसी का विरोध किया।
जातिगत आधार पर स्वंय को ब्राह्मण समझ कर अन्य लोगो से श्रेष्ठ होने का दावा करने पर कबीर साहेब ने स्पष्ट किया की यदि तुम हमसे जाती के आधार पर ही श्रेष्ठ हो तो बताओ की तुम वही से क्यों आये जहाँ से हम आयें हैं, यदि वह मार्ग समान है तो कैसे तुम्हारा लहू तो दूध हुआ और हमारा नहीं। तार्किक आधार पर यह समझाने का प्रयत्न किया गया की हम सभी समान हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी आप देखिये की जातिगत और सांप्रदायिक मतभेद और संघर्ष होते रहते हैं, जो आपकी, मेरी और हमारी प्रगति में बाधक हैं। यदि कबीर साहेब के विचारों का यह देश कद्रदान होता तो शायद स्थिति कुछ और होती।
दोहेरे मापदंड देखिये की ऐसे तो उंच नीच का खेल चलता रहता है, लेकिन जब किसी भी तथाकथित श्रेष्ठ जाती के व्यक्ति को हॉस्पिटल में खून की जरुरत पड़ती है तो वह यह नहीं देखता है की खून किस बिरादरी / समाज और धर्म का है ! यदि समय पर खून मिल जाए तो वे भिखारी का भी खून लने को तैयार रहते हैं। खुदा ऐसी नौबत किसी को भी ना दे लेकिन यह एक कडवा सत्य तो जरुर है ही।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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