पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार हिंदी मीनिंग Paahan Puje Hari Mile Hindi Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
या
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
या
कबीर पाथर पूजे हरि मिलै, तो मैं पूजूँ पहार।
घर की चाकी कोउ न पूजै, जा पीस खाए संसार।।
Paahan Pooje Hari Mile, To Main Poojoon Pahaar.
Taate Ye Chaakee Bhalee, Pees Khaay Sansaar.
Or
Kabeer Paathar Pooje Hari Milai, To Main Poojoon Pahaar.
Ghar Kee Chaakee Kou Na Poojai, Ja Pees Khae Sansaar..
दोहे के शब्दार्थ-Taate Ye Chaakee Bhalee, Pees Khaay Sansaar.
Or
Kabeer Paathar Pooje Hari Milai, To Main Poojoon Pahaar.
Ghar Kee Chaakee Kou Na Poojai, Ja Pees Khae Sansaar..
पाहन /पाथर: पत्थर Stone پتھر
पूजे हरी मिले : पत्थर को इश्वर मान कर पूजना
पुजू पहार: मैं पहाड़ को पुजू जो की बहुत बड़ा पत्थर है।
ताते : बनिस्पत जिसके
घर की चाकी: घर में रखी अनाज पीसने के चाकी। grinder, handmill, millstone چکی
पूजे : उपयोग को समझना devotion, worship, respect پوجا
पीस खाए संसार :पत्थर की बनी चाकी से अनाज पीस कर लोग खाते हैं।
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग / Hindi Meaning of Kabir Doha: स्वंय को प्रतीकात्मक भक्ति में व्यस्त करने के बजाय व्यक्ति को मन से निर्गुण परम ब्रह्म की उपासना करनी चाहिए। मूर्ति में भगवान् है ऐसा मान कर केवल मूर्ति की ही पूजा करना और अपने आचरण में शुद्धता नहीं लाना, भक्ति नहीं है। यदि पत्थर को नहीं पूजना है तो इश्वर है कहाँ ? इश्वर विश्वास और श्रद्धा में है, सत्य आचरण में है, जो सत्य है वही ईश्वर है। मन की शुद्धता के बगैर पत्थर को पूजने से कोई लाभ नहीं होने वाला।
वस्तुतः कबीर साहेब अंधविश्वास पर चोट कर रहे हैं की क्या ईश्वर मूर्ति में है, नहीं वो तो कण कण में व्याप्त है वो ना तो तीरथ में है और नाही ही किसी अन्य स्थान विशेष में, और यदि है तो हर जगह है। कबीर के समय कुछ लोगों ने धर्म के 'टेंडर' ले रखे थे। आम जन को ये स्वयंभू धर्म के ठेकेदार बात बात पर लुटते थे। क्रियाकर्म, वृहद धार्मिक आयोजन, बलि प्रथा, आदि से आम जन का जीवन दूभर हो चूका था और ऊपर से संस्कृत भाषा में लिखे धार्मिक ग्रन्थ। कबीर साहेब ने इसका जमकर विरोध किया और धर्म के नाम पर शोषित आम जनता को एक सरल राह दिखाई की ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उन्हें ना तो मूर्ति पूजा की आवश्यकता है, नाही किसी एजेंट की और नाही भारीभरकम धार्मिक ग्रंथों की। शुद्ध हृदय, आचरण शुद्धता, नेक राह और सद्कर्म करके कहीं भी ईश्वर को याद किया जाय तो यह ईश्वर की उपासना ही है।
मूलतः इस दोहे में मूर्तिपूजा के नाम पर आम जन के बौद्धिक और आर्थिक उत्पीड़न के प्रति भी सन्देश है। ईश्वर निराकार है वह समस्त ब्रह्माण्ड का निर्माता है लेकिन वह उसका नहीं है, और उसी में है भी। वह कण कण में है, घट घट में है लेकिन उसे जानने पहचानने के लिए हमें सद्मार्ग का अनुसरण करते हुए सत्य का प्रकाश पैदा करना होता है, तब हमें उससे वास्तविक पहचान करने का अधिकार प्राप्त होता है।
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