कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि मीनिंग
कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढ़ूँढ़ै बन माहि।
ऐसे घटी घटी राम हैं दुनिया देखै नाँहि॥
Kastooree Kundalee Basai Mrg Dhoondhai Ban Maahi.
Aise Ghatee Ghatee Raam Hain Duniya Dekhai Naanhi.
दोहे के शब्दार्थ Word Meaning
कस्तूरी : شکتی कस्तूरी एक सुगन्धित जैलिनुमा प्रदार्थ (सूखने के बाद सख्त काले रंग का ) होता है जो की हिरणों के विशेष प्रजाति "कस्तूरी मृग"की नाभि से प्राप्त किया जाता है। यह नर कस्तूरी हिरण के नाभि (गुदा के पास एक ग्रंथि ) में होता है। हिरण से निकाल कर इसे सुखाने के बाद सुगन्धित प्रदार्थों और शराब आदि बनाने में कार्य में लिया जाता रहा है। चीन की प्राचीन चिकित्सा पद्धति में इससे कई प्रकार की ओषधियों का निर्माण भी होता है।
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कुण्डली : नाभी
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बसै : रहना।
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मृग: हिरण।
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बन : जंगल।
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माहि: के अंदर।
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घटी घटी : हृदय में।
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दोहे का हिंदी मीनिंग : ईश्वर कहाँ है ? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसे शास्त्रों और विद्वानों के द्वारा बड़े ही जटिल शब्दों में प्रदर्शित किया जाता रहा है जिसे समझना एक साधारण आदमी के लिए बहुत ही मुश्किल प्रतीत होता है। कबीर साहेब ने इसे बड़े ही साधारण शब्दों में समझाते हुए कहा की जैसे कस्तूरी हिरण की नाभि में ही होता है, लेकिन वह उसे जंगल में जगह जगह ढूंढता फिरता है, वैसे ही हमारे अंदर ही /आत्मा के अंदर ईश्वर का वाश है लेकिन उसे समझने के अभाव में हम उसे, मंदिर मस्जिद, तीर्थ, एकांत, तप और ना जाने कहाँ कहाँ ढूंढते हैं। सत्य आचरण, मानव के मूल गुणों को अपनाकर हम ईश्वर के नजदीक जा सकते हैं, जैसे की कबीर साहेब की एक अन्य वाणी में उल्लेख है -
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे
मै तो तेरे पास में
ना तीरथ में ना मूरत में
ना एकांत निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
ना में जप में ना में तप में
ना में बरत उपास में
ना में क्रिया करम में रहता
नहिं जोग संन्यास में
ना ब्रह्माण्ड आकाश में
ना में प्रकृति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसो की स्वांस में
खोजि होए तुरत मिल जाऊं
इक पल की तालास में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मै तो हूँ विश्वास में
कुछ इसी तरह बाबा बुल्लेशाह भी समझाते हैं की मंदिर और मस्जिद में क्या रखा है, कभी खुद के अंदर भी उसे ढूंढो। आसमान में कौन है ? इसकी बजाय उसे ढूंढे जो घर पर ही है।
पढ़ पढ़ आलम फाज़ल होयां,
कदीं अपने आप नु पढ़याऍ ना
जा जा वडदा मंदर मसीते,
कदी मन अपने विच वडयाऍ ना
एवैएन रोज़ शैतान नाल लड़दान हे,
कदी नफस अपने नाल लड़याऍ ना
बुल्ले शाह अस्मानी उड़याँ फडदा हे,
जेडा घर बैठा ओन्नु फडयाऍ ना
मक्का गयां गल मुकदी नाहीं,
भावें सो सो जुम्मे पढ़ आएं
गंगा गयां गल मुकदी नाहीं,
भावें सो सो गोते खाएं
गया गयां गल मुकदी नाहीं,
भावें सो सो पंड पढ़ आएं
बुल्ले शाह गल त्यों मुकदी,
जद "मैं" नु दिलों गवाएँ
मस्जिद ढा दे मंदिर ढा दे,
ढा दे जो कुछ दिसदा
एक बन्दे दा दिल न ढाइन,
क्यूंकि रब दिलां विच रेहेंदा
रब रब करदे बुड्ढे हो गए,
मुल्ला पंडित सारे
रब दा खोज खरा न लब्बा,
सजदे कर कर हारे
रब ते तेरे अन्दर वसदा,
विच कुरान इशारे
बुल्ले शाह रब ओनु मिलदा,
जेडा अपने नफस नु मारे
जे रब मिलदा नहातेयां धोतयां,
ते रब मिलदा ददुआन मछलियाँ
जे रब मिलदा जंगल बेले,
ते मिलदा गायां वछियाँ
जे रब मिलदा विच मसीतीं,
ते मिलदा चम्चडकियाँ
ओ बुल्ले शाह रब ओन्नु मिलदा,
तय नीयत जिंना दीयां सचियां
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Author - Saroj Jangir
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