चुन चुन माटी महल बनाया भजन
नहीं घर मेरा नहीं घर तेरा, है जगत में भेरा
खाक में खप जाना रे बंदा, माटी से मिल जाना
नहीं करो अभिमान, एक दिन पवन सा उड़ जाना
जाड़ा पहरो झीणा पहरो, पहरो मलमल साचा
रुपिया पावल मशरू पहरो, तोए मरण केरी आसा
खाक में खप जाना रे बंदा, माटी से मिल जाना
सोना पहरो रूपा पहरो, पहरो हीरला साचा
वार वार मोतीड़ा पहरो, तोए मरण केरी आसा
खाक में खप जाना रे बंदा, माटी से मिल जाना
माता रोए छे जनमों जनम ने, बहनी रोए बारह मासा
घर केरी नारी तेर दिन रोवे, करे बया केरी आसा
खाक में खप जाना रे बंदा, माटी से मिल जाना
एक दिन जीयो, दो दिन जीयो, जीयो वरस पचासा
कहत कबीरा सुनो मेरे साधो, तोए मरण केरी आसा
खाक में खप जाना रे बंदा, माटी से मिल जाना
Nahin Karo Abhiman, Ek Din Pawan Se Ud Jana | Kabir Bhajan | Jashn-e-Rekhta
इंसान अपने घर, धन और आभूषणों को स्थायी मान बैठता है, परंतु समय हर वस्तु को मिट्टी में मिला देता है। यह अनुपम स्मरण है कि जो शरीर हमें मिला है, वह भी उसी मिट्टी का बना हुआ है—जिससे धरती बनी है, और अंततः वहीं लौट जाना है। जब तक सांस है, अहंकार और स्वामित्व का मोह हमें बाँधे रहता है। लेकिन एक क्षण आता है जब यह सब छूट जाता है—वह घर जिसे “मेरा” कहा, वह भी पराया हो जाता है, और जिसे खोने के भय से चिपके रहे, वही वस्तु व्यर्थ सिद्ध होती है। जीवन का संदेश यहाँ यही है कि जो अस्थायी है, उसमें अपने अस्तित्व की खोज मत करो। सच्चा जीवन वह है जिसमें मनुष्य अपने भीतर की नम्रता को पहचानता है। रूप, वस्त्र, गहना, नाम—ये सब केवल आवरण हैं। अंत में धरती वही स्वीकार करती है जो विनम्र होकर लौटा हो। माता, बहन, पत्नी का शोक भले ही कुछ दिन रहे, पर अंत में सब उसी शांति में विलीन हो जाते हैं जहाँ कोई भेद नहीं, कोई अहंकार नहीं। मन जब यह जान लेता है कि “माटी से मिल जाना” ही अंतिम सत्य है, तब हर दिन नया हो उठता है—न लोभ रहता है, न घमंड। यही जाग्रत दृष्टि जीवन को पूर्णता देती है।
चाहे हम मलमल के महीन कपड़े पहनें, या सोने, चाँदी और हीरे-मोती की बहुमूल्य वस्तुएँ धारण करें, यह सब कुछ हमें मृत्यु से बचा नहीं सकता। यह चेतावनी हमें बताती है कि जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि हमारे जाने के बाद ये वस्तुएँ और यहाँ तक कि हमारे घनिष्ठ संबंध भी नश्वर सिद्ध होते हैं। माता का दुःख तो गहन और लम्बा हो सकता है, बहन का प्रेम भी वर्ष भर आँसू बहाता है, लेकिन जिससे हम सबसे अधिक आसक्ति रखते हैं—वह पत्नी भी तेरह दिनों के बाद आगे की योजनाएँ बनाने लगती है। इसलिए, हमें इस असली सच्चाई को पहचानना चाहिए कि हमारा जीवन चाहे एक दिन का हो या पचास साल का, अंततः हमें उस परम सत्य की ओर लौटना है और मिट्टी में मिल जाना है।
यह भजन भी देखिये
|
Author - Saroj Jangir
इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें। |
