जिनि पाया तिनि सूगह गह्या रसना लागी स्वादि मीनिंग
जिनि पाया तिनि सूगह गह्या रसना लागी स्वादि।
रतन निराला पाइयाँ, जगत ढंढौल्या बादि।।
Jini Paaya Tini Soogah Gahya Rasana Laagee Svaadi.
Ratan Niraala Paiyaan, Jagat Dhandhaulya Baadi..
शब्दार्थ : जिनि -जिसने,
सूगह -अच्छी तरह पकडना,
रसना-वाणी,
ढंढोल्या-खोजना,
बादी-व्यर्थ।
दोहे का हिंदी मीनिंग: जिसने राम रतन रूपी धन को प्राप्त कर लिया है, जिसकी जिव्हा पर इसका स्वाद है और वह इससे परिचित हो चूका है, वह जगत में इसे व्यर्थ गवाने से डरता है, कहीं वह सांसारिकता के भंवर में फँस कर राम रतन को खो ना दें। जिसने भी इसे प्राप्त किया है वह इस अमूल्य वस्तु के महत्त्व को पहचान सकता है। जिसे इसका ज्ञान हो गया है वह इसे बहुत ही अच्छे से पकड़ कर रखता है की कहीं वह खो न जाए।कबीर साहेब ने निर्गुण भक्ति को भी मूर्त रूप में समझाने का प्रयत्न किया है। ईश्वर निर्गुण है, सर्वत्र व्याप्त है, लेकिन उसके विषय में समझना भी आवश्यक है। माया से प्रभावित व्यक्ति निर्गुण को समझ नहीं सकता है।
उसे सांसारिकता के सन्दर्भ में ही यदि कुछ बताया जाय तो उसे बेहतर समझ में आता है। इसीलिए कबीर साहेब ने भक्ति रस को हीरे / रतन की संज्ञा दी है और जैसे अमूल्य और कीमती वस्तु के प्रति लगाव होता है वैसे ही भक्ति रस भी जो एक बार चख लेता है उसे ज्ञान हो जाता है की यह रस बहुत ही कीमती है। कीमती होने के कारन ही सांसारिकता से भय लगता है की कहीं यह खो ना जाय। जब व्यक्ति के अंदर प्रकाश पैदा होता है जब उसे ज्ञान होता है की कैसे उसने अपने जीवन को नष्ट किया है। जो जीवन ईश्वर की भक्ति /बंदगी करने के लिए मिला था वह उसने यूँ ही बर्बाद कर दिया है।
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