बलिहारी गुर आपणै द्यौं हाड़ी के बार हिंदी मीनिंग Balihari Guru Aapne Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning
बलिहारी गुर आपणै, द्यौं हाड़ी के बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार ।।
or
बलिहारी गुर आपणें, द्योहाड़ी कै बार।
जिनि मानिष तें देवता, करत न लागी बार
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार ।।
or
बलिहारी गुर आपणें, द्योहाड़ी कै बार।
जिनि मानिष तें देवता, करत न लागी बार
Balihaaree Gur Aapanai, Dyaun Haadee Ke Baar.
Jini Maanish Tain Devata, Karat Na Laagee Baa.
Or
Balihari Guru Aapne Dyo Hadi Ke Baar,
Jini Maanish Te Devta, Karat Na Lagi Baar.
बलिहारी गुर आपणै द्यौं हाड़ी के बार शब्दार्थ Balihari Guru Aapne Dyo Hadi Ke Baar Word Meaning
बलिहारी-समर्पित होना, आपणे -आप पर/आप को, द्यौं हाड़ी = दिन में, बार =देर लगना/समय का लगना। जिनि-जिसने, मानिश - मनुष्य, ते-से, देवता-गुणवान, करत -करते हुए, ना लागि बार-देर नहीं लगी।
बलिहारी गुर आपणै दोहे का मीनिंग : जिस गुरु ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान से मुझे मनुष्य से देवता बना दिया. उसे ऐसा करने में तनिक भी समय नहीं लगा. ऐसे गुरु को मैं दिन में बारम्बार बलिहारी (आदर पूर्वक झुकना ) जाता हूँ.
भाव है की सतगुरु ने अपने आशीष से अपने ज्ञान का उपयोग करके मुझे मानव से देवता तुल्य बना दिया है, मेरे अवगुणों को नष्ट कर दिया है. गुरु के सानिध्य में आने पर ही शिष्य को वास्तविक ज्ञान से अवगत करवाता है. गुरु ज्ञान के अभाव में वह माया के भ्रम में पड़ा रहता है जैसे अग्नि में पतंगा पड़ता है. गुरु शिष्य के अवगुणों को दूर करके उसे देवता तुल्य, जिसमे कोई अवगुण नहीं हो, दुर्बलता नहीं हो, बना देता है. कबीर साहेब ने इस साखी में गुरु की महत्ता को स्थापित किया है और बताया ही की गुरु के सानिध्य में आने के उपरान्त ही अवगुण नष्ट हो पाते हैं. कबीर साहेब के मतानुसार वह गुरु ही है जो गोविन्द से मिलन करवाता है।
वस्तुतः साहेब ने अनेकों स्थान पर गुरु की महिमा को स्थापित किया है। बिना गुरु के चरणों में स्थान पाए साधक सत्य को समझ नहीं पाता है। वह माया के भरम में ही पड़ा रहता है। विभिन्न तरह के मत, धर्म और धार्मिक विचार धारा उसे मार्ग से विमुख करती रहती हैं। ऐसे में सतगुरु ही उसे एक मार्ग दिखाते हैं जो साधक को जीवन का उद्देश्य समझा पाने में समर्थ होता है। मानव अवगुणों से भरा पड़ा रहता है, यह अवगुण अज्ञान के अँधेरे से उत्पन्न होते हैं, ऐसे में साहेब के मतानुसार भ्रमित जीव विभिन्न मार्गों में भटक कर रह जाता है। सतगुरु ही उसे एक निश्चित राह दिखाते हैं।
कबीर की इस साखी में विशेष :-
बलिहारी गुर आपणै दोहे का मीनिंग : जिस गुरु ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान से मुझे मनुष्य से देवता बना दिया. उसे ऐसा करने में तनिक भी समय नहीं लगा. ऐसे गुरु को मैं दिन में बारम्बार बलिहारी (आदर पूर्वक झुकना ) जाता हूँ.
भाव है की सतगुरु ने अपने आशीष से अपने ज्ञान का उपयोग करके मुझे मानव से देवता तुल्य बना दिया है, मेरे अवगुणों को नष्ट कर दिया है. गुरु के सानिध्य में आने पर ही शिष्य को वास्तविक ज्ञान से अवगत करवाता है. गुरु ज्ञान के अभाव में वह माया के भ्रम में पड़ा रहता है जैसे अग्नि में पतंगा पड़ता है. गुरु शिष्य के अवगुणों को दूर करके उसे देवता तुल्य, जिसमे कोई अवगुण नहीं हो, दुर्बलता नहीं हो, बना देता है. कबीर साहेब ने इस साखी में गुरु की महत्ता को स्थापित किया है और बताया ही की गुरु के सानिध्य में आने के उपरान्त ही अवगुण नष्ट हो पाते हैं. कबीर साहेब के मतानुसार वह गुरु ही है जो गोविन्द से मिलन करवाता है।
वस्तुतः साहेब ने अनेकों स्थान पर गुरु की महिमा को स्थापित किया है। बिना गुरु के चरणों में स्थान पाए साधक सत्य को समझ नहीं पाता है। वह माया के भरम में ही पड़ा रहता है। विभिन्न तरह के मत, धर्म और धार्मिक विचार धारा उसे मार्ग से विमुख करती रहती हैं। ऐसे में सतगुरु ही उसे एक मार्ग दिखाते हैं जो साधक को जीवन का उद्देश्य समझा पाने में समर्थ होता है। मानव अवगुणों से भरा पड़ा रहता है, यह अवगुण अज्ञान के अँधेरे से उत्पन्न होते हैं, ऐसे में साहेब के मतानुसार भ्रमित जीव विभिन्न मार्गों में भटक कर रह जाता है। सतगुरु ही उसे एक निश्चित राह दिखाते हैं।
कबीर की इस साखी में विशेष :-
- बार-बार में यमक अलंकार का उपयोग हुआ है.
- गुरु अपने ज्ञान के माध्यम से साधारण मानव को भी देवता के तुल्य बना सकने में समर्थ है।
- गुरु की महिमा को स्थापित किया गया है.
कई स्थानों पर यह साखी ऐसे भी प्राप्त होती है-
बलिहारी गुरु आपकी, घरी घरी सौ बार ।
मानुष तैं देवता किया, करत न लागी बार ।।
मानुष तैं देवता किया, करत न लागी बार ।।
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