माला तिलक लगाय के भक्ति न आई हाथ हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

माला तिलक लगाय के भक्ति न आई हाथ हिंदी मीनिंग Mala Tilak Lagay Ke Bhakti Na Aayi Haath Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning कबीर दोहे व्याख्या हिंदी

माला तिलक लगाय के, भक्ति न आई हाथ।
दाढ़ी मूंछ मुंडाय के चले चुनी के साथ।।
 
Kaamee Amee Na Bhaavee, Vish Ko Leve  Shodh.
Kubuddhi Na Bhaaje Jeev Kee, Bhaavai Jyon Paramod. 
 
माला तिलक लगाय के भक्ति न आई हाथ हिंदी मीनिंग Mala Tilak Lagay Ke Bhakti Na Aayi Haath Hindi Meaning

माला तिलक लगाय के भक्ति न आई हाथ हिंदी मीनिंग Mala Tilak Lagay Ke Bhakti Na Aayi Haath Hindi Meaning

दोहे का हिंदी मीनिंग: यह धार्मिक आडंबर ही है जिसमे माला को गले में डाल करके तिलक लगा करके सांकेतिक रूप से भक्ति और सदाचरण का ढोंग किया जाता है। दाढ़ी मूछ बढ़ा करके कुछ लोगों के साथ चल पड़ने से भक्ति पूर्ण नहीं हो जाती है। भक्ति तभी सम्भव है जब मन से की जाय। अन्य स्थान पर कबीर साहेब की वाणी है की 'जोगी मन नहीं रंगाया, रंगाया कपड़ा ' मन से भक्ति नहीं की केवल जगत को दिखाने मात्र के लिए आडंबर रच लिया है। दाढ़ी बढ़ाने को लेकर साहेब ने कहा की जंगल के रींछ बाल बढ़ाते हैं, क्या वे अमरपुर जाते हैं, कुछ लोग मुंड निकलवा करके भक्ति करने का आडंबर करते हैं जिस पर साहेब कहते हैं की भेड़ हर कुछ समय बाद अपने बाल कटवाती है तो क्या वो अमरापुर में जाने के योग्य हैं।
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