कबीर भग की प्रीतड़ी केते गए गड़ंत मीनिंग Kabir Bhag Ki Preetadi Kete Meaning

कबीर भग की प्रीतड़ी केते गए गड़ंत मीनिंग Kabir Bhag Ki Preetadi Kete Meaning, Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Meaning

कबीर भग की प्रीतड़ी, केते गए गड़ंत।
केते अजहूँ जायसी, नरकि हसंत हसंत॥
Kabir Bhag Ki Preetadi, Kete Gae Gadant,
Kete Ajahu Jayasi, Naraki Hasant Hasant.

कबीर भग की प्रीतड़ी : नारी से स्नेह रखने वाले, प्रेम करने वाले, नारी के प्रति आसक्ति रखने वाले.
केते गए गड़ंत : कितने ही कब्रों में गाड़े गए हैं.
केते अजहूँ जायसी : कितने ही अभी जाने हैं.
नरकि हसंत हसंत : नरक में हँसते हँसते.
भग की : कामुक नारी की, स्त्री की.
प्रीतड़ी : प्रीत स्नेह.
केते गए : कितने ही चले गए हैं.
गड़ंत : कब्र में गड गए हैं, नष्ट हो गए हैं.
केते : कितने ही.
अजहूँ : अभी भी.
जायसी : जाने हैं (नष्ट हो जाने हैं.)
नरकि : नरक में.
हसंत हसंत : हँसते हँसते (गाफिल होकर)
कबीर साहेब की वाणी है की नारी के प्रति प्रेम, स्नेह और आसक्ति हर तरह से विनाश का कारण है. नारी से आसक्ति रखकर बहुत से गाड़े गए हैं (कब्र में गाड़े गए हैं), विनाश को प्राप्त हो गए हैं. ऐसे ही न जाने कितने अन्य को भी नष्ट हो जाना है. माया का ही रूप कनक और कामिनी है जिनको देखने मात्र से जहर/विष चढ़ता है. यदि कोई इनसे आसक्ति लगा बैठे तो उसे अवश्य ही नष्ट हो जाना है.
अतः भक्ति मार्ग में नारी और माया बाधक हैं, जीवात्मा को अवश्य ही इनसे बचकर अपनी भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए. अन्यथा कामिनी के प्रभाव में पडकर वह गाफिल अवस्था में हँसते हँसते हुए कब्र को प्राप्त हो जाना है, नष्ट हो जाना है.
स्पष्ट है की यदि कोई नारी से स्नेह रखता है तो वह अवश्य ही सांसारिक विषय विकारों में अधिक उलझता है और भक्ति से दूर हटता चला जाता है। इसलिए साहेब के मतानुसार साधक को माया और कामिनी दोनों से ही पृथक रहना चाहिए।
 

एक टिप्पणी भेजें