कामी अमी न भावई विष को लेवे शोध हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

कामी अमी न भावई विष को लेवे  शोध हिंदी मीनिंग Kami Ami Na bhavai Vish Ko Leve Sodh

 
कामी अमी न भावई, विष को लेवे  शोध।
कुबुद्धि न भाजे जीव की, भावै ज्यों परमोद।।
 
Kaamee Amee Na Bhaavee, Vish Ko Leve  Shodh.
Kubuddhi Na Bhaaje Jeev Kee, Bhaavai Jyon Paramod 
 
कामी अमी न भावई विष को लेवे  शोध हिंदी मीनिंग Kami Ami Na bhavai Vish Ko Leve Sodh

दोहे का हिंदी मीनिंग:वासनाओं से घिरे हुए कामी व्यक्ति को राम नाम का अमृत भावता नहीं है / अच्छा नहीं लगता है। ऐसे जीव की कुबुद्धि दूर नहीं होती है और उसे परमोद ही अच्छा लेता है जिसके लिए वह विष को खोजता रहता है। वह अमृत को छोड़कर विष की तलाश में रहता है। मन की चंचलता उसकी बुद्धि को नष्ट कर देती है और वह नए नए उपायों से वासना में ही लिप्त रहने की जुगत में लगा रहता है। 
 
माया मुई न मन मुवा, मरि-मरि गया सरीर ।
आसा त्रिष्णां ना मुई, यों कहि गया `कबीर’ ॥

त्रिसणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ ।
जवासा के रूष ज्यूं, घण मेहां कुमिलाइ ॥

कबीर जग की को कहै, भौजलि, बुड़ै दास ।
पारब्रह्म पति छाँड़ि करि, करैं मानि की आस ॥

`कबीर’ इस संसार का, झूठा माया मोह ।
जिहि घरि जिता बधावणा, तिहिं घरि तिता अंदोह ॥

बुगली नीर बिटालिया, सायर चढ्या कलंक ।
और पखेरू पी गये , हंस न बोवे चंच ॥

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