म्हारो चरखो बोले राम नाम कबीर भजन
म्हारो चरखो बोले राम नाम भजन
पड़ी बूंद समंदर के ओले, पानी में रतन निपाया
एक अचम्भो ऐसो सांभड़्यो, बेटी जायो है बाप
अरजी कावल सुनो हमारी रे
म्हारो चरखो रे बोले राम नाम
भजे तू ही, तू ही, तू ही, तू!
बेटी कहे छे बाप ने म्हारे अनजायो वर ला
अनजायो वर नहीं मिले तो थारे म्हारे घर वास
अरजी कावल सुनो हमारी रे...
चरखो रे म्हारो अजब रंगीलो, पुनियूं लाल गुलाल
कांतन वाली छैल छबीली, आकाश से तार लटकाई
अरजी कावल सुनो हमारी रे...
पिंगण पींजावा मैं गयी थी, सुणो पिंजारा भाई
इस पिंजारे को खा गयी सजनी गुरु गम बताई
अरजी कावल सुनो हमारी रे...
माता भी मर जाए, पिता भी मर जाए, मर जाए घर भरतारा
एक ना मरे यह सजन सूथार, यो चरखा नो गढ़नार
अरजी कावल सुनो हमारी रे...
कहतभणत कबीरा सुन भाई साधू, या चरखो कहवाए
आ चरखा ने जो नर फेरे, जनम मरण मटी जाए
अरजी कावल) सुनो हमारी रे...
म्हारो चरखो बोले राम नाम 'Mhaaro Charkho Bole Raam Naam' by Mooralala Marwada
चरखा, जो राम नाम के साथ चलता है, वह न केवल जीवन को संतुलित करता है, बल्कि आध्यात्मिक सुरक्षा और धैर्य को भी प्रगाढ़ बनाता है। कठिनाइयों के बावजूद, वह स्नेह और करुणा का प्रतीक है जो सदैव मन को स्थिरता देता है और सच्चे सुख की ओर ले जाता है।
यह कबीर भजन पूरी तरह से आध्यात्मिक और रहस्यात्मक (Mystical) है, जिसमें शरीर और आत्मा के नश्वरता और अमरता के गूढ़ सत्य को समझाने के लिए प्रतीकों का उपयोग किया गया है: भजन की शुरुआत में 'बूंद समंदर के ओले, पानी में रतन निपाया' (छोटी बूंद का समुद्र में मिलना और पानी में रत्न का पाया जाना) दर्शाता है कि व्यक्तिगत आत्मा (बूंद) का परमात्मा (समुद्र) में विलय होता है और इसी जीवन/संसार (पानी) में ज्ञानरूपी अनमोल रत्न को प्राप्त किया जा सकता है। इसमें 'चरखा' मानव शरीर का प्रतीक है, जो लगातार 'राम नाम' का जाप कर रहा है, यह दर्शाता है कि यह नश्वर शरीर भी निरंतर परमात्मा के नाम का स्मरण करने के लिए ही बना है; 'बेटी जायो है बाप' और बेटी द्वारा 'अनजायो वर' (अजन्मा/अविनाशी दूल्हा) मांगने का प्रसंग आत्मा की उस स्थिति का वर्णन करता है, जब वह इस नश्वर संसार (पिता/सास-ससुर) से मुक्त होकर अविनाशी परमात्मा (अनजायो वर) से मिलने की इच्छा रखती है। इस प्रक्रिया में माता-पिता (शरीर के सम्बंध), पति (कर्ताभाव) सब नष्ट हो जाते हैं, पर 'चरखा गढ़नार' (शरीर को बनाने वाला) अर्थात परमात्मा और 'सजन सूथार' (गुरु या सच्चा ज्ञान) अमर रहता है, और कबीर कहते हैं कि जो इस चरखे को सही तरीके से घुमाता है, अर्थात इस नश्वर शरीर से राम-नाम का जाप कर लेता है, उसके जन्म-मरण के चक्र (जनम मरण मटी जाए) हमेशा के लिए समाप्त हो जाते हैं।
