निर्गुण गलियां निर्गुण गालियां सांकरी भजन

निर्गुण गलियां Nirgun Galiya Kabir Bhajan

 

कवि धरमदास
साहिब तेरी साहिबी हर घट रही समाए
जैसे मेहंदी के पात में लाली लखी ना जाए
लाली मेरे लाल की, मैं जब देखूं तब लाल
लाली देखन मैं गयी, तो मैं हो गयी लालम लाल
काठ के बीच में अग्नि जैसे, ऐसे तिल में तेल निवास है
दूध के बीच में घी जैसे, ऐसे फूलन के बीच में बास है
निर्गुण गालियां सांकरी म्हारी हेली
वहाँ चढ़यो नहीं जाए
वहाँ चढ़े तो पिया मिले म्हारी हेली
(थारो) आवा गमन मिट जाए
(यो तो पाछो जनम नहीं आये)
म्हारी हेली वो चालो गुराजी रा (हमारा) देस
म्हारे लाग्या भजन (शबद) वाला बाण म्हारी हेली
चालो हमारा देस
कहाँ उगे कहाँ आसते, म्हारी हेली
कहाँ उजाला होय?
यहीं उगे ने यहीं आसते, म्हारी हेली
यहीं उजाला होय
म्हारी हेली वो चालो हमारा देस…
कहाँ गरजे ने कहाँ बरसे, म्हारी हेली
कहाँ सूखा का हरिया होय?
यहीं गरजे ने यहीं बरसे, म्हारी हेली
यहीं सूखा का हरिया होय
म्हारी हेली वो चालो हमारा देस…
निर्गुण का बाज़ार में म्हारी हेली
हीरा को होवे व्यापार
सुगुरा मानव तो सौदो करे म्हारी हेली
ई तो नुगुरा मूल गंवाए
म्हारी हेली वो चालो हमारा देस…
अनहद का मैदान में म्हारी हेली
म्हारा साहिब जी की सेज
कहे कबीर धर्मदास से म्हारी हेली
न तो मरे न बूढ़ा होय
म्हारी हेली वो चालो हमारा देस…
 

 

'Nirgun Galiyaan' by Arun Goyal

Nirgun Galiyaan
POET Dharamdas
Saahib teri saahibi har ghat rahi samaaye
Jaise mehndi ke paat mein laali lakhi na jaaye
Laali mere laal ki, mein jab dekhun tab laal
Laali dekhan mein gayi, to main ho gayi laalam laal
Kaathh ke beech mein agni jaise, aise til mein tel nivaas hai
Doodh ke beech mein ghee jaise, aise phoolan ke beech mein baas hai
Nirgun gaaliyan saankri, mhaari heli
Vahaan chadhhyo nahin jaaye
Vahaan chadhhe to piya mile, mhaari heli
(Thaaro) aava gaman mit jaaye
(Yo to paachho janam nahin aaye)
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