विधना तेरे लेख किसी के, समझ न आते है, जन जन के प्रिय राम लखन सिया, वन को जाते है, जन जन के प्रिय राम लखन सिया, वन को जाते है, विधना तेरे लेख किसी के, समझ न आते है, जन जन के प्रिय राम लखन सिया, वन को जाते है,
एक राजा के राज दुलारे वन-वन फिरते मारे-मारे, एक राजा के राज दुलारे वन-वन फिरते मारे-मारे, भूनी हो कर रहे कर्म गति टरे नहीं काहू के टारे, सबके कष्ट मिटाने वाले कष्ट उठा ते हैं, जन जन के प्रिये राम लखन सिया वन को जाते है, विधना तेरे लेख किसी के, समझ न आते है, पग से बहे लहू की धारा हरी चरणों से गंगा जैसे, पग से बहे लहू की धारा हरी चरणों से गंगा जैसे, संकट सहज भाव से सहते, और मुकाते है, जन जन के प्रिये राम लखन सिया वन को जाते है, विधना तेरे लेख किसी के, समझ न आते है,
Vidhna Tere Lekh Kisi Ki Samajh Na Aate Hai | Ravindra Jain | Ravindra Jain's
Ram Bhajans