अंखियन ऐसी टेव परी भजन
हिलग के पद
अंखियन ऐसी टेव परी।।
कहा करूँ वारिज मुख ऊपर लागत जो भ्रमरी।।1।।
हरख हरख प्रीतम मुख निरखत रहत ना एक घरी।।
ज्यों ज्यों राखत यतनन कर कर त्यों त्यों होत खरी।।2।।
गड कर रही रूप जल निधि में प्रेम पीयूष भरी।
सूरदास गिरिधर नग परसत लूटत निधि सगरी।।3।।
अंखियन ऐसी टेव परी।।
कहा करूँ वारिज मुख ऊपर लागत जो भ्रमरी।।1।।
हरख हरख प्रीतम मुख निरखत रहत ना एक घरी।।
ज्यों ज्यों राखत यतनन कर कर त्यों त्यों होत खरी।।2।।
गड कर रही रूप जल निधि में प्रेम पीयूष भरी।
सूरदास गिरिधर नग परसत लूटत निधि सगरी।।3।।
पुष्टिमार्ग में हिलग के पद शीतकाल में राजभोग दर्शन के समय गाए जाते हैं।
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