ज्ञान तिहारो आधो अधूरो मानो या मत मानो लिरिक्स Gyan Tiharo Adho Adhuro Lyrics
ज्ञान तिहारो आधो अधूरो मानो या मत मानो ,
प्रेम में का आनंद रे उधौ ,प्रेम करो तो जानो,
प्रेम की भाषा न्यारी है ,
ये ढ़ाई अक्षर प्रेम एक सातन पे भारी है,
कहत नहीं आवै सब्दन में ,
जैसे गूँगों गुड़ खाय स्वाद पावै मन ही मन में,
का करें हम ऐसे ईश्वर को ,जो द्वार हमारे आ न सके ,
माखन की चोरी कर न सके ,मुरली की तान सुना न सके,
मन हर न सके ,छल कर न सके ,दुःख दे न सके तरसा न सके,
जो हमरे हृदय लग न सके ,हृदय से हमें लगा न सके।
ऐसो ईश्वर छोड़ हमारे मोहन को पहचानों,
प्रेम में का आनंद रे उधौ ,प्रेम करो तो जानो,
प्रेम की मीठी बाणी है ,खारो है ज्ञान को सिंधु ,
प्रेम जमुना को पानी है। प्रेम -रस बहि रह्यो नस -नस में ,
अरे ,नैन -बैन ,सुख चैन ,रेन दिन ,कछु नाहीं बस में,
ब्रह्म ज्ञान को कछु दिना ,छींके पे धर देओ ,
हम गोपिन संग बैठ के ,प्रेम की शिक्षा लेओ,
भले मानुस बन जाओगे ,जप -जोग ,ज्ञान तप छोड़ ,
प्रेम के ही गुण गाओगे ,निर्गुण को भूल मेरे गुण वारे के गुण गाओगे.
कछु दिन रहि देखो ब्रज में ,है प्रेम ही प्रेम की गंध ,
यहां की प्रेम भरी रज में,
कोई मोहिनी मूरत ,सोहिनी सूरत जादिन जादू कर जाएगी ,
प्रेम की नागिन डस जाएगी ,ये वस्तर होंगे तार -तार,
लट घूंघर सारी बिगर जाएगी।पीर करेजे भर जाएगी,
जब प्रेम की मदिरा चाखोगे ,तो ज्ञान की भाषा तर जाएगी,
ऊधौ जब दशा बिगर जाएगी ,
डगमग -डगमग चाल चलोगे ,लोग कहें दीवानो ,
प्रेम में का आनंद रे ऊधौ ,प्रेम करो तो जानो,
सखा बौराये डोलोगे ,यूं ही पगलाए डोलोगे,
तुम ज्ञान की भाषा छोड़ हमारी बोली बोलेगे,
प्रेम दधि ऊधौ का जानो ,है प्रेम जगत में सार,
हमारे अनुभव की मानो,
दृढ करने को प्रेम पर उद्धव का विश्वास सखियाँ उनको ले चलीं ,
राधाजी के पास। ये ही श्री राधारानी हैं ,
श्रीकृष्ण चन्द के अमर प्रेम की अमिट कहानी हैं,
इन्हें परनाम करो ऊधौ ,कछु धर्म -अर्थ काम और मोक्ष को,
मिल जायेगो सूधो,
ऊधौ जी को मिल गयो ,सांचो प्रेम प्रमाण ,
भरम गया संशय गयो ,जागो सांचो ज्ञान,
राम (कृष्ण )और राधे को संग जो पायो ,
तो आँख खुली और बुद्धि हिरानी ,
ऊधौ बेचारो समझ नहीं पायो ,
के वास्तव क्या है क्या है कहानी,
प्रेम की ऐसी अवस्था जो देखी तो ,
ज्ञान गुमान पे फिर गया पानी,
भगतन के बस में जो भगवन देखे ,
तो प्रेम और भक्ति की महिमा जानी,
प्रेम से भर गया श्रद्धा से भर गयो ,
चरणों में परि गयो ब्रह्म को ग्यानी,
प्रेम में का आनंद रे उधौ ,प्रेम करो तो जानो,
प्रेम की भाषा न्यारी है ,
ये ढ़ाई अक्षर प्रेम एक सातन पे भारी है,
कहत नहीं आवै सब्दन में ,
जैसे गूँगों गुड़ खाय स्वाद पावै मन ही मन में,
का करें हम ऐसे ईश्वर को ,जो द्वार हमारे आ न सके ,
माखन की चोरी कर न सके ,मुरली की तान सुना न सके,
मन हर न सके ,छल कर न सके ,दुःख दे न सके तरसा न सके,
जो हमरे हृदय लग न सके ,हृदय से हमें लगा न सके।
ऐसो ईश्वर छोड़ हमारे मोहन को पहचानों,
प्रेम में का आनंद रे उधौ ,प्रेम करो तो जानो,
प्रेम की मीठी बाणी है ,खारो है ज्ञान को सिंधु ,
प्रेम जमुना को पानी है। प्रेम -रस बहि रह्यो नस -नस में ,
अरे ,नैन -बैन ,सुख चैन ,रेन दिन ,कछु नाहीं बस में,
ब्रह्म ज्ञान को कछु दिना ,छींके पे धर देओ ,
हम गोपिन संग बैठ के ,प्रेम की शिक्षा लेओ,
भले मानुस बन जाओगे ,जप -जोग ,ज्ञान तप छोड़ ,
प्रेम के ही गुण गाओगे ,निर्गुण को भूल मेरे गुण वारे के गुण गाओगे.
कछु दिन रहि देखो ब्रज में ,है प्रेम ही प्रेम की गंध ,
यहां की प्रेम भरी रज में,
कोई मोहिनी मूरत ,सोहिनी सूरत जादिन जादू कर जाएगी ,
प्रेम की नागिन डस जाएगी ,ये वस्तर होंगे तार -तार,
लट घूंघर सारी बिगर जाएगी।पीर करेजे भर जाएगी,
जब प्रेम की मदिरा चाखोगे ,तो ज्ञान की भाषा तर जाएगी,
ऊधौ जब दशा बिगर जाएगी ,
डगमग -डगमग चाल चलोगे ,लोग कहें दीवानो ,
प्रेम में का आनंद रे ऊधौ ,प्रेम करो तो जानो,
सखा बौराये डोलोगे ,यूं ही पगलाए डोलोगे,
तुम ज्ञान की भाषा छोड़ हमारी बोली बोलेगे,
प्रेम दधि ऊधौ का जानो ,है प्रेम जगत में सार,
हमारे अनुभव की मानो,
दृढ करने को प्रेम पर उद्धव का विश्वास सखियाँ उनको ले चलीं ,
राधाजी के पास। ये ही श्री राधारानी हैं ,
श्रीकृष्ण चन्द के अमर प्रेम की अमिट कहानी हैं,
इन्हें परनाम करो ऊधौ ,कछु धर्म -अर्थ काम और मोक्ष को,
मिल जायेगो सूधो,
ऊधौ जी को मिल गयो ,सांचो प्रेम प्रमाण ,
भरम गया संशय गयो ,जागो सांचो ज्ञान,
राम (कृष्ण )और राधे को संग जो पायो ,
तो आँख खुली और बुद्धि हिरानी ,
ऊधौ बेचारो समझ नहीं पायो ,
के वास्तव क्या है क्या है कहानी,
प्रेम की ऐसी अवस्था जो देखी तो ,
ज्ञान गुमान पे फिर गया पानी,
भगतन के बस में जो भगवन देखे ,
तो प्रेम और भक्ति की महिमा जानी,
प्रेम से भर गया श्रद्धा से भर गयो ,
चरणों में परि गयो ब्रह्म को ग्यानी,
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Author - Saroj Jangir
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