श्री महालक्ष्मी स्तवम् लिरिक्स Mahalakshmi Stavan Ke Fayde
महालक्ष्मी स्तवन के लाभ : महालक्ष्मी स्तवन एक दिव्य महालक्ष्मी की स्तुति है जिससे समस्त धन सबंधी बाधाएं दूर होती है। यदि जातक नियमित रूप से अपने कर्तव्य पथ का पालन करते हुए लक्ष्मी मन्त्र और महालक्ष्मी स्तवन का पाठ करे तो निश्चित ही मनवांछित परिणाम प्राप्त होते हैं। इस स्तवन के पाठ से आप नियमित रूप से माँ लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त कर सकेंगे। आप किसी भी ज्योतिषी से संपर्क करें और जो भी बाधाएँ आती हैं उन्हें विधिवत दूर करने का जतन करें।
मयि कुरु मङ्गलमंबुजवासिनि मंगलदायिनि मञ्जुगते,
मतिमलहारिणि मञ्जुलभाषिणि मन्मथतातविनोदरते।
मुनिजनपालिनि मौक्तिकमालिनि सद्गुणवर्षिणि साधुनुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥१॥
कलिमलहारिणि कामितदायिनि कान्तिविधायिनि कान्तहिते,
कमलदलोपमकम्रपदद्वय शिञ्जितनूपुरनादयुते।
कमलसुमालिनि काञ्चनहारिणी लोकसुखैषिणि कामिनुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥२॥
कुवलयमेचकनेत्रकृपापरिपालित संश्रित भक्तकुले,
गुरुवर शंकर सन्नुतितुष्टिसुवृष्टसुहेममयामलके।
रविकुलवारिधि चन्द्रसमादरमन्त्रगृहीतसुपाणितले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥३॥
कुलललनाकुल लालितलोलविलोचनपूर्णकृपाकमले,
चलदलकावलि वारिदमध्यगचन्द्रसुनिर्मल फालतले।
मणिमयभासुरकर्णविभूषण कान्तिपरिष्कृतगण्डतले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥४॥
सुरगण दानवमण्डललोडित सागरसंभवदिव्यतनो,
सकलसुरासुरदेवमुनीनतिहाय च दोषदृशा हि रमे।
गुणगणवारिधिनाथमहोरसि दत्तसुमावलि जातमुदे,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥५॥
कनकघटोपमकुंकुमशोभितहारसुरञ्जित दिव्यकुचे,
कमलजपूजितकुंकुमपङ्किल कान्तपदद्वय तामरसे।
करधृतकञ्जसुमे कटिवीतदुकूलमनोहरकान्तिवृते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥६॥
सुरपतिपूजनदत्तमनोहरचन्दनकुङ्कुमसंवलिते,
सुरयुवतीकृतवादननर्तन वीजनवन्दन संमुदिते।
निजरमणारुणपादसरोरुहमर्द्दनकल्पन तोषयुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥७॥
दिनमणिसन्निभदीपसुदीपितरत्नसमावृतदिव्यगृहे,
सुतधनधान्यमुखाभिध लक्ष्म्य़भिसंवृतकान्त गृहीतकरे।
निजवनपूजन दिव्यसमर्चन वन्दन कल्पित भर्तृमुदे,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥८॥
अनवधिमङ्गलमार्तिविनाशनमच्युतसेवनमम्ब रमे,
निखिल कलामति मास्तिकसंगममिन्द्रियपाटवमर्पय मे।
अमितमहोदयमिष्टसमागममष्टसुसंपदमाशु मम,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥९॥
करतलशुक्लसुमावलिनिर्मितहारगजीवृतपार्श्वतले,
कमलनिवासिनि शोकविनाशिनि दैव सुवासिनि लक्ष्म्यभिधे ।
निजरमणारुणचन्दनचर्चितचंपकहारसुचारुगले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥१०॥
अनघमनन्तपदान्वितरामसुदीक्षित सत्कृतपद्यमिदं,
पठति शृणोति च भक्तियुतो यदि भाग्यसमृद्धिमथो लभते ।
द्विजवरदेशिकसन्नुतितुष्टरमे परिपालयलोकमिमं,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥११॥
मतिमलहारिणि मञ्जुलभाषिणि मन्मथतातविनोदरते।
मुनिजनपालिनि मौक्तिकमालिनि सद्गुणवर्षिणि साधुनुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥१॥
कलिमलहारिणि कामितदायिनि कान्तिविधायिनि कान्तहिते,
कमलदलोपमकम्रपदद्वय शिञ्जितनूपुरनादयुते।
कमलसुमालिनि काञ्चनहारिणी लोकसुखैषिणि कामिनुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥२॥
कुवलयमेचकनेत्रकृपापरिपालित संश्रित भक्तकुले,
गुरुवर शंकर सन्नुतितुष्टिसुवृष्टसुहेममयामलके।
रविकुलवारिधि चन्द्रसमादरमन्त्रगृहीतसुपाणितले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥३॥
कुलललनाकुल लालितलोलविलोचनपूर्णकृपाकमले,
चलदलकावलि वारिदमध्यगचन्द्रसुनिर्मल फालतले।
मणिमयभासुरकर्णविभूषण कान्तिपरिष्कृतगण्डतले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥४॥
सुरगण दानवमण्डललोडित सागरसंभवदिव्यतनो,
सकलसुरासुरदेवमुनीनतिहाय च दोषदृशा हि रमे।
गुणगणवारिधिनाथमहोरसि दत्तसुमावलि जातमुदे,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥५॥
कनकघटोपमकुंकुमशोभितहारसुरञ्जित दिव्यकुचे,
कमलजपूजितकुंकुमपङ्किल कान्तपदद्वय तामरसे।
करधृतकञ्जसुमे कटिवीतदुकूलमनोहरकान्तिवृते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥६॥
सुरपतिपूजनदत्तमनोहरचन्दनकुङ्कुमसंवलिते,
सुरयुवतीकृतवादननर्तन वीजनवन्दन संमुदिते।
निजरमणारुणपादसरोरुहमर्द्दनकल्पन तोषयुते,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥७॥
दिनमणिसन्निभदीपसुदीपितरत्नसमावृतदिव्यगृहे,
सुतधनधान्यमुखाभिध लक्ष्म्य़भिसंवृतकान्त गृहीतकरे।
निजवनपूजन दिव्यसमर्चन वन्दन कल्पित भर्तृमुदे,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥८॥
अनवधिमङ्गलमार्तिविनाशनमच्युतसेवनमम्ब रमे,
निखिल कलामति मास्तिकसंगममिन्द्रियपाटवमर्पय मे।
अमितमहोदयमिष्टसमागममष्टसुसंपदमाशु मम,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥९॥
करतलशुक्लसुमावलिनिर्मितहारगजीवृतपार्श्वतले,
कमलनिवासिनि शोकविनाशिनि दैव सुवासिनि लक्ष्म्यभिधे ।
निजरमणारुणचन्दनचर्चितचंपकहारसुचारुगले,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥१०॥
अनघमनन्तपदान्वितरामसुदीक्षित सत्कृतपद्यमिदं,
पठति शृणोति च भक्तियुतो यदि भाग्यसमृद्धिमथो लभते ।
द्विजवरदेशिकसन्नुतितुष्टरमे परिपालयलोकमिमं,
जय जय हे मधुसूदनमोहिनि मोदविधायिनि वेदनुते ॥११॥
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Author - Saroj Jangir
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