जो भजे हरि को सदा सो ही परम पद पावेगा भजन
जो भजे हरि को सदा,
सो ही परम पद पावेगा (पायेगा),
देही के माला, तिलक,
और छाप नहीं किसी के,
प्रेम भक्ति के नाथ के मन भायेगा,
जो भजे हरि को सदा,
सो ही परम पद पावेगा,
दिल के दर्पण को सफ़ा कर,
दूर कर अभिमान को,
साथ हो गुरु के चरणों का,
जनम नहीं आयेगा
जो भजें हरि को सदा,
सो ही परम पद पावेगा,
छोड़कर दुनिया के मजे सब,
बैठकर एकान्त में ध्यान धर,
हरि के चरण का,
जनम नहीं आयेगा ,
जो भजे हरि को सदा,
सो ही परम पद पावेगा,
ढृढ़ भरोसा मन में करके,
जो जपें हरि नाम को,
कहता हे ब्रम्हानन्द ,
बीच समायेगा,
जो भजे हरि को सदा,
सो ही परम पद पावेगा,
यह एक निर्गुण भजन है जिसमें भक्ति के सबंध में बताया गया है और कहा है की तिलक, माला, छाप आदि सभी आडंबर है जो देह (मानव शरीर) के लिए हैं और इनका भक्ति से कोई लेना देना नहीं है, जैसे बिहारी जी ने (बिहारी सतसई) कहा है की जप माला छापै तिलक, सैर न एकौ काम, मन काँचे नाचै बृथा , साचै राँचे रामु। यानी जब तक मन से भक्ति नहीं की जाती है भक्ति का कोई लाभ नहीं होगा। हृदय के अभिमान को समाप्त करने पर भक्ति भाव प्राप्त हो पाता है। दिल के दर्पण को साफ़ करने से आशय है की स्वंय के होने का अभिमान समाप्त करना। अशीरखुदा हमको ऐसी खुदाई ना दे, के अपने सिवा कुछ दिखाई ना दे बद्र साहेब ने कहा है की। यह अभिमान जब तक समाप्त नहीं कुछ प्राप्त नहीं हो पायेगा। ईश्वर को क्या पसन्द है ? सत्य। दुनियादारी को छोड़कर जब व्यक्ति ईश्वर को याद करता है तभी मालिक की प्राप्ति सम्भव हो सकती है और तभी परम पद (ईश्वर का सानिध्य) प्राप्त हो सकेगा।
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