कान्हाँ हठ को हठीलों रंग डार गयो री भजन
भर पिचकारी बिहारी, डारी माँर गयो री,
कान्हाँ हठ को हठीलों, रंग डार गयो री,
कर बरजोरी ये बहियाँ मरोड़ी,
बिगाड़ गयो ये चुनरी ये कोरी,
मोरी काया रंगीली कर गई मोरी,
भोली जान के खेलो धट धट होली,
कर होंशियारि हमारी साड़ी फाड़ गयो री,
कान्हाँ हठ को हठीलों, रंग डार गयो री,
कान्हाँ हठ को हठीलों, रंग डार गयो री,
लाल लाल गाल कर मल के गुलाल,
लाल लाल की शर्म से गोपाल नें,
हाल बेहाल कीन्हों नन्द के लाल ने,
मोरी इक ना चाली बांकी हर चाल में,
बन होरी आ री मुरारी रंग डाल गयो रे ,
कान्हाँ हठ को हठीलों, रंग डार गयो री,
कान्हाँ हठ को हठीलों, रंग डार गयो री,
ब्रिजबंद श्रीचंद आनंद मुकंद कंद, छरचंद कीन्हों मेरे चंद ने,
तिलकधारी सुभाष (शुभाष तिलक धारी-गायक ) नन्द को नंदन,
"रमन भैया" (लेखक-रमन चाचा) भी करते सत सत वंदन,
रंग दियो कान्हा ने मोहे झाड़ी पार गयो री,
कान्हाँ हठ को हठीलों, रंग डार गयो री,
कान्हाँ हठ को हठीलों, रंग डार गयो री,
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