गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद गुरु मेरा पारब्रह्म

गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद गुरु मेरा पारब्रह्म भजन

 
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद गुरु मेरा पारब्रह्म Guru Meri Puja Guru Govinda Lyrics

गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद
गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,

गुरु मेरा देव अलख अभेव
सरब पूज्य, चरण गुरु सेवूं,
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद
गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,

गुरु बिन अवर नहीं मैं थाओ
अन दिन जपो, गुर गुर नाओ
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद
गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,

गुरु मेरा ज्ञान, गुरु हृदये धयान,
गुरु गोपाल पुरख भगवान,
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद,

गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,
गुरु की सरन रहूँ कर जोर
गुरु बिना मैं नाही होर
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद
गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,

गुरु बोहित तारे भव पार
गुरु सेवा ते यम छुटकार
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद
गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,

अन्धकार में गुरु मन्त्र उजारा
गुरु कै संग सगल निस्तारा
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद
गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,

गुरु पूरा पाईये वड्ड भागी
गुरु की सेवा दुःख ना लागी
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद
गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,

गुरु का सबद ना मेटे कोई
गुरु नानक नानक हर सोए
गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद
गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत


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Guru Meri Pooja Guru Govind - Anup Jalota Bhajan | Bhakti Songs | Shemaroo Bhakti

 
गुरु को गोविंद के समान माना गया है—जो मार्गदर्शक भी हैं, और वही अंतिम लक्ष्य भी। जब कहा जाता है “गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत,” तो यह स्वीकार है कि गुरु वह सेतु हैं जो भटके मन को परम तत्व तक पहुँचा देते हैं। साधक के लिए गुरु का नाम, गुरु का स्मरण ही साधना बन जाता है—जो अंधकार में दीपक जैसा उजाला लाता है। उनकी चरण-शरण में झुकना, स्वयं को मिटा देना नहीं बल्कि अपने भीतर के अहंकार को विलीन करना है। यही समर्पण मनुष्य को सांसारिक बंधनों से विमुक्त करता है।

गुरु की पहचान बाहरी चमत्कारों से नहीं होती, बल्कि उस शांति से होती है जो उनके निकट आने पर भीतर उतरती है। वे वही गोबिंद हैं जो हर युग में किसी रूप में आते हैं, ताकि जीवन का सत्य फिर से याद दिला सकें। उनका वचन कोई साधारण शब्द नहीं—वह जीवन का नाद है जिसे कोई मिटा नहीं सकता। जो इस नाद में खो गया, वह सभी भय, मोह और द्वंद से परे हो गया। इस भाव में गुरु केवल ईश्वर का दूत नहीं, स्वयं ईश्वर का साक्षात् स्वरूप हैं — जिनकी कृपा से साधक को न केवल ज्ञान, बल्कि मुक्ति भी मिलती है। यही “गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद” का मर्म है — हर श्वास, हर भावना और हर कर्म में गुरु का ही वास अनुभव करना।

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