जो उगै सो आथवै फूले सो कुम्हिलाय हिंदी मीनिंग Jo Uge So Aathave Phule So Kumhilaay Hindi Meaning

जो उगै सो आथवै फूले सो कुम्हिलाय हिंदी मीनिंग Jo Uge So Aathave Phule So Kumhilaay Hindi Meaning

जो उगै सो आथवै, फूले सो कुम्हिलाय।
जो चुने सो ढ़हि पड़ै, जनमें सो मरि जाय।।

Jo Ugai So Aathavai, Phoole So Kumhilaay.
Jo Chune So Dhahi Padai, Janamen So Mari Jaay.
 
जो उगै सो आथवै फूले सो कुम्हिलाय हिंदी मीनिंग Jo Uge So Aathave Phule So Kumhilaay Hindi Meaning

दोहे का हिंदी मीनिंग: जिसने भी जन्म लिया है, वह अस्त अवश्य ही होगा और जो फुला हुआ है वह एक रोज कुम्हला जाएगा। जिसका भी निर्माण हुआ है वह एक रोज ढह जाना है और जिसने जन्म लिया है वह मृत्यु को प्राप्त होगा ही, यही इस संसार का नियम है। जीवन मरण तय है और यह मनुष्य का मायाजनित भ्रम है की उसे ऐसा लगता है की वह तो स्थाई रूप से इसी संसार में रहेगा, जबकि ऐसा सत्य नहीं है।

कबीर गाफिल क्यों फिरै क्या सोता घनघोर।
तेरे सिराने जम खड़ा, ज्यूँ अँधियारे चोर।।
Kabeer Gaaphil Kyon Phirai Kya Sota Ghanaghor.
Tere Siraane Jam Khada, Jyoon Andhiyaare Chor..


दोहे का हिंदी मीनिंग: अज्ञान के कारण जीव अपना जीवन सोने में (ईश्वर भक्ति के मार्ग से विमुख) होने में ही व्यतीत कर देता है, लेकिन उसे यह याद रखना चाहिए की उसके सिरहाने पर तो काल खड़ा है जैसे अँधेरे में चोर किसी को दिखाई नहीं देता है। काल बस इसी फिराक में ही रहता है की कब जीव को दबोच लिया जाय जिससे मुक्त होने का एक ही रास्ता है वह है राम नाम का सुमिरण।

जहाँ जुरा मरण व्यापे नहीं, मुवा न सुनिए कोई।
चल कबीर तंह देसडे, जहाँ बैद बिधाता होई।
Jahaan Jura Maran Vyaape Nahin, Muva Na Sunie Koee.
Chal Kabeer Tanh Desade, Jahaan Baid Bidhaata Hoee.


दोहे का हिंदी मीनिंग: ऐसा कौनसा देस होगा जहाँ कोई वृद्ध ना हो और मरण ना हो, जबकि ये तो जीवन के स्वाभाविक पड़ाव हैं। चलो उस देस के लिए चले जहाँ वैद्य स्वंय विधाता (ईश्वर) है, वहां किसी प्रकार का कोई रोग और मृत्यु नहीं है। भाव है की ईश्वर ही मुक्ति का आधार है और वह जीव को समस्त सांसारिक/दैहिक व्याधियों से दूर करने में सक्षम है, ऐसा करना किसी वैद्य के बस में नहीं होता है क्योंकि वैद्य जो सभी दवाओं के विषय में जानता है उसे भी एक रोज स्वाभाविक रूप से मृत्यु को तो प्राप्त होना ही है। जैसे की साहेब की वाणी है की यह सांसारिक देस तो मुर्दों का देस है, जिसमे पीर पगैम्बर राजा-रंक सभी मृत्यु को ही प्राप्त होने वाले हैं ।

साधो ये मुरदों का गाँव,
पीर मरे पैगम्बर मरि हैं
मरि हैं जिन्दा जोगी
राजा मरिहैं परजा मरि है
मरिहैं बैद और रोगी
चंदा मरिहै सूरज मरिहै
मरिहैं धरणि आकासा
चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं
इन्हूं की का आसा
नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं
मरि हैं सहज अठ्ठासी
तैंतीस कोट देवता मरि है
बड़ी काल की बाजी
नाम अनाम अनंत रहत है
दूजा तत्व न होइ
कहत कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो ना कोई

इसलिए साहेब ने स्पष्ट किया की ईश्वर का नाम ही तमाम बन्धनों से मुक्ति दिला सकता है। हरी संगत/सतसंगत ही जीवन की मुक्ति का आधार है। सतसंगत के महत्त्व को परिभाषित करते हुए कबीर साहेब को मृत्यु से भी डर लगने लगा है जो कुछ ऐसा ही जिसमे उन्होंने कहा की मुझे यह संसार छोड़कर जाने का दूध है क्योंकि यदि मैंने यह संसार छोड़ दिया तो मुझे अन्यत्र हरी सुमिरण का सुख प्राप्त नहीं होगा। साहेब कहते हैं की यदि मुक्ति प्राप्त हो जाती है तो मैं हरी सुमिरण के सत्संग से वंचित रह जाऊँगा जो उनके चिंता का विषय है और यह दर्शाता है की सतसंगत कितना आवश्यक हैं।
राम बुलावा देखिके दिया कबीरा रोय।
जो सुख लह सतसंग में सो सुख यहां न होय।।
Raam Bulaava Dekhike Diya Kabeera Roy.
Jo Sukh Lah Satasang Mein So Sukh Yahaan Na Hoy..

मानव के जीवन के अंत को देख करके कबीर साहेब दुखी हो उठते हैं, दुखी होने का एक कारण तो यह है की हम मानव जीवन को स्थाई समझते हैं जो की सत्य नहीं है, एक ऱोज यह शरीर/देह लकड़ी और घास की तरह से जलने वाली है, वक़्त रहते मानव जीवन के उद्देश्य को पूर्ण करना ही इसका सार है।

हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।
सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।

माया सुख नहीं अपितु दुखों की मूल है, जिसे काल के द्वारा समाप्त कर दिया जाएगा।

झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।
Jhoothe Sukh Ko Sukh Kahe, Maanat Hai Man Mod.
Khalak Chabaina Kaal Ka, Kuchh Munh Mein Kuchh God.

मायाजनित सुख वस्तुतः सुख नहीं हैं, ये सभी सुख झूठे हैं, काल का ग्रास ऐसे ही है जैसे कुछ तो उसने खा लिया है और कुछ उसने अपने गोद में रख छोड़ा है। 

का फिरै सिर ऊपरै, हाथों धरी कमान।
कहैं कबीर घु ज्ञान को, छोड़ सकल अभिमान।।
Ka Phirai Sir Ooparai, Haathon Dharee Kamaan.
Kahain Kabeer Ghu Gyaan Ko, Chhod Sakal Abhimaan.
 
काल के विषय में ही साहेब कहते हैं की काल ने सर पर तीर और कमान रख छोड़ी है, ऐसे में सभी विषय वासनाओं को छोडकर गुरु के ज्ञान से ही काल से बचा जा सकता है। इश्वर कण कण में विराजमान है और वह एकेश्वर है, अद्वेत नहीं।

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