मन तुम जावोगा हम जानी लिरिक्स Man Tum Javoga Hum Jani Lyrics

मन तुम जावोगा हम जानी लिरिक्स Man Tum Javoga Hum Jani Lyrics

क्या होता अगर "कबीर" साहेब अमेरिका में पैदा होते ? जैसा यहाँ हो रहा है शायद वैसा नहीं होता। हो सकता है यह गौरे लोगों के प्रति सहज आकर्षण है, जो अमेरिका से तुलना करें, लेकिन हो तो यह भी सकता है की शायद हमारे समाज की तुलना में कबीर साहेब को वहाँ न्यायोचित स्थान मिलता। हो सकता है किसी यूनिवर्सिटी में कबीर का ही कोई टॉपिक अनिवार्य हो जाता, कबीर का एक अलग स्वतंत्र विषय रखा हो जिसे पढ़ कर हम स्वंय की जंजीरों / भ्रम को काट पाते। इतना तो साफ़ है की वहां कबीर की मूर्ति बना कर उसकी पूजा शुरू नहीं की जाती। कबीर और कबीर से जुड़े गायन को उच्च स्थान मिलता। 
 
मन तुम जावोगा हम जानी लिरिक्स Man Tum Javoga Hum Jani Lyrics
 
प्रह्लाद सिंह टिपानिया जी के गुरु को देखिये वे किस अवस्था में हैं और उनके ज्ञान को कितना सहेजा गया है, उन्हें कितनी आर्थिक सहायता मिली है, उन्हें समाज में क्या सम्मान मिला। ये हमारे ही समाज का एक पहलू है, 'शीला की जवानी' को खूब पैसे / अवार्ड मिले होंगे, हमारे लोक गायक कहाँ रह जाते हैं हर बार ! सोचने की जरूरत किसे है। तो, चलो जिधर सब चले जा रहे हैं उधर ही हम भी चलते हैं, क्योंकि भेड़ों की तरह चलने में जो ग़फ़लत भरा नशा है वह और कहाँ मिलता है !!
मन तुम जावोगा, हम जानी
मन तुम जावोगा, हम जानी
चंदा भी जाएगा, सूरज जाएगा
जाएगा पवना पानी
जाएगा पवना पानी
मन तुम जावोगा हम जानी
राज करता राजा जाएगा
राज करता राजाजी जाएगा
परदे बैठी रानी, रे संतों
तुम जावोगा, हम जानी
परदे बैठी रानी, रे साधू
तुम जावोगा, हम जानी
जावोगा हम जानी, रे संतों
जावोगा हम जानी
चंदा जाएगा, सूरज जाएगा
चंदा जाएगा, सूरज जाएगा
जाएगा पवना पानी
मन तुम जावोगा, हम जानी
हमें साहिब से मिलना है
हमें सद्गुरु से मिलना है
हमें साहिब से मिलना है
अरे यार, सद्गुरु से मिलना है
मैं तो नशे में खूब यार
मेरे गुरु से मिलना है
मै नशे में हो रहा
मालिक से मिलना है
इस पाप कपट को छोड़ हमें
फ़कीरी लेना है
इस लोभ मोह को छोड़ हमें
फ़कीरी लेना है
इस भवसागर को जीत हमें,
इस भवसागर को जीत हमें,
मैज़त में जाना है
मैं तो नशे में खूब यार
मेरे गुरु से मिलना है
मै नशे में हो रहा
मालिक से मिलना है
साहिब से मिलना है
मालिक से मिलना है
मैं नशे में खूब यार
मेरे गुरु से मिलना है
गुरु रामानंद तुमरी बलिहारी
सर पर ठोकर हमको दीन्ही
सर पर ठोकर ऐसी दीन्ही
इस हद को छोड़ बेहद में जाना है
इस हद को छोड़ बेहद में जाना है
अरे यार बेहद में जाना है
अरे हद को छोड़
बेहद में जाना है

साहिब कबीर बक्शीश कर दो,
यह अगम बानी गाई,
अखियों में लालन छाई
यह अगम बानी गाई,
अखियों में लालन छाई
हमने आधा एक भजन गाया
और आधा दूसरा!
सतगुरु ने भांग पिलाई
अखियों में लालन छाई
साहब ने भांग पिलाई
साहब ने भांग पिलाई
अखियों में लालन छाई
साहब ने भांग पिलाई
पीकर प्याला हुआ दीवाना
घूम रहा जैसे मतवाला

अरे घूम रहा जैसे मतवाला
पीकर प्याला हुआ दीवाना
घूम रहा जैसे मतवाला
अरे घूम रहा जैसे मतवाला
जनम जनम का,
ताला खुल गया!
जनम जनम का ताला खुल गया
ज्योत लगी घट माहि
अखियों में लालन छाई
ज्योत लगी घट माहि
अखियों में लालन छाई
अखियों में लालन छाई
सतगुरु ने भांग पिलाई
अखियों में लालन छाई
झाड़ बिंद और जीव चराचर में
फूल रहा मेरा साईं
फूल रहा है साईं
जहाँ देखूं वां रीता नाहीं
जहाँ देखूं वां रीता नाहीं
सब घट रहा समाई
अखियों में लालन छाई
सब घट रहा समाई
अखियों में लालन छाई
साहिब ने भांग पिलाई
अखियों में लालन छाई
गुरु रामानंद तुमरी बलिहारी
सर पर ठोकर हमको दीन्ही
सर पर ठोकर ऐसी दीन्ही
गुरु रामानंद तुमरी बलिहारी
सर पर ठोकर ऐसी दीन्ही
साहिब कबीर बकसीस कर दो,
या अगम बानी गाई,
अखियों में लालन छाई
या अगम बानी गाई,
अखियों में लालन छाई
सतगुरु ने भांग पिलाई
अखियों में लालन छाई


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मांस सूखता है। सुर लड़खड़ाते हैं। दुनिया की दिलचस्पी कम हो जाती है। हम मजबूत, ताकतवर और चमकते हुए पर ध्यान देते हैं। क्या हम कभी रुककर वृद्धावस्था की सुंदरता को महसूस करते हैं? 2004 की गर्मियों में मालवा के एक दोपहर में, एक अनमोल मुलाकात होती है। इसमें वृद्ध (अब दिवंगत) चेना जी मारू और प्रसिद्ध लोक गायक प्रह्लाद सिंह टिपानिया एक साथ गाते हैं, यादें ताजा करते हैं और कबीर और अन्य संतों के गाने गाते हैं, भूलते भी हैं और याद भी करते हैं! चेना जी मारू मालवा क्षेत्र के पुराने पीढ़ी के कबीर लोक गायकों में से एक थे, जिनसे प्रह्लाद सिंह टिपानिया ने कई गाने सीखे थे। प्रह्लादजी देश के सबसे लोकप्रिय और सम्मानित कबीर लोक गायकों में से एक हैं। 
 
पेशे से एक स्कूल शिक्षक, प्रह्लादजी की जिंदगी तब बदल गई जब उन्होंने पहली बार तंबुरा सुना - यह एक पाँच तार वाला लोक वाद्य यंत्र है। यह उनके लिए कबीर की दुनिया का द्वार बन गया और तब से वे 30 से अधिक वर्षों से ग्रामीण, शहरी और अंतरराष्ट्रीय दर्शकों के साथ कबीर की शक्ति को साझा कर रहे हैं। प्रह्लादजी से संपर्क करें +91-94250-84096। 

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