रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय हिंदी मीनिंग Raat Gavaai Soy Ke Diwas Gavaya Khaay Hindi Meaning

रात गंवाई सोय के दिवस गंवाया खाय हिंदी मीनिंग Raat Gavaai Soy Ke Diwas Gavaya Khaay Hindi Meaning

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय॥
Raat Ganvaee Soy Ke, Divas Ganvaaya Khaay.
Heera Janm Amol Sa, Kodee Badale Jaay.
Or
Raat Gavayi Soy Ke, Diwas Gawaya Khaay,
Heera Janam Anmol Sa, Koudi Badale Jaay.

 
हम आलस्य में और माया के भ्रम जाल में फँसकर अपने अमूल्य जीवन को समाप्त कर देते हैं जैसे कोइ अज्ञानी व्यक्ति हीरे को कौड़ी में बदल कर रख देता है। भाव है की यह जीवन हीरे के समान अमूल्य है, जिसका महत्त्व समझना चाहिए इसे यूँ ही बर्बाद नहीं करना चाहिए। इस दोहे का भावार्थ है की हमें यह जीवन किस लिए मिला है, करोड़ों जतन के उपरान्त, असंख्य योनियों में भटकने के उपरान्त यह मानव देह मिली है तो इसे बर्बाद क्यों किया जाए। इसका उद्देश्य क्या है, हरी भजन। ईश्वर की भक्ति, स्तुति और वंदन करते हुए नेक राह का चयन करना ही इस जीवन का मूल उद्देशय है। माया के भ्रम को समझे की कैसे यह हरी मार्ग से जीव को विमुख करती है।

Meaning in English : We destroy our valuable lives by idling and getting trapped in the illusion of Maya. We do it like some ignorant person turns a diamond into a penny. The feeling that this life is as priceless as a diamond, You should understand the importance of Manav Jivan, it should not be wasted like this. we find human body After, after wandering in innumerable yonies, so why should it be ruined. What is its purpose, Chanting Hari Nama. Choosing the right path while doing devotion, praise and worship to God is the basic objective of this life. Understand the illusion of maya also, how this alienates the organism from the green path.

कबीर साहेब के अन्य विचार / Other Valuable Thouthts of Sant Kabir Das
 
कबीर गाफ़िल क्यों फिरे, क्या सोता घनघोर
तेरे सिराने जम खड़ा, ज्यों अंधियारे चोर।
Kabeer Gaafil Kyon Phire, Kya Sota Ghanaghor
Tere Siraane Jam Khada, Jyon Andhiyaare Chor.

 शाब्दिक अर्थ है की आलस्य में अमूल्य जीवन को बर्बाद करना मुर्खता है, सिरहाने पर जम खड़ा है, जैसे अन्धकार में चोर खड़ा है। भाव है की जीवन अल्प है और इसका कोई स्थायित्व नहीं है, यह कभी समाप्त हो सकता है। गाफिल होने से कुछ लाभ नहीं होने वाला है, हरी सुमिरण ही इस जीवन का आधार है।

कबीरा घोड़ा प्रेम का, चेतनी चढ़ी अवसार।
ज्ञान खड़ग गहि काल सीरी, भली मचाई मार।
Kabeera Ghoda Prem Ka, Chetanee Chadhee Avasaar.
Gyaan Khadag Gahi Kaal Seeree, Bhalee Machaee Maar.

 
प्रेम रूपी घोड़े पर चेतन पुरुष सवार होकर हाथ में ज्ञान की तलवार लेकर काल का सर धड से अलग कर देता है और मारकाट मचा देता है। भाव है की काल से यदि जितना है तो चेतन अवस्था में आना होगा और ज्ञान को धारण करना होगा फिर काल जो दूसरों को अपना शिकार बना लेता है, उसका भी शिकार कर पाना संभव है।

मेरे संगी दोई जरग , एक वैष्णो एक राम।
वो है दाता मुक्ति का , वो सुमिरावै नाम।।
Mere Sangee Doee Jarag , Ek Vaishno Ek Raam.
Vo Hai Daata Mukti Ka , Vo Sumiraavai Naam.

 
मेरे दो ही साथी हैं, एक राम और दुसरे वैष्णव (अनुयाई) जो की मुझे सुमिरण के लिए याद दिलाते हैं की राम ही मुक्ति का दाता है।
 
संत न बंधे गाठ्दी , पेट समाता तेई।
साईं सू सन्मुख रही , जहा मांगे तह देई।।
Sant Na Bandhe Gaathdee , Pet Samaata Teee.
Saeen Soo Sanmukh Rahee , Jaha Maange Tah Deee.

संतजन और साधुजन कभी भी संग्रह भाव नहीं रखते हैं। वे अपने उदर पूर्ति योग्य ही माया / सांसारिक भौतिक वस्तुओं का संग्रह करते हैं। उनका आधार ईश्वर होता है जहाँ उनको जरूरत होती है वह उनको मांगने पर देता है। भाव है की संतजनों को माया से दूर ही रहना चाहिए और ईश्वर को ही आधार मान कर चलना चाहिए। संतजन को संग्रह की प्रवृति से दूर रहकर हरी का सुमिरण करना चाहिए।

जिस मरने यह जग डरे , सो मेरे आनंद।
कब महिहू कब देखिहू , पूरण परमानन्द।।
Jis Marane Yah Jag Dare , So Mere Aanand.
Kab Mahihoo Kab Dekhihoo , Pooran Paramaanand.

काल / मृत्यु से सभी को डर लगता है, उससे ज्ञानी व्यक्ति आनंद समझता है, भाव है की मृत्यु का डर ज्ञानी व्यक्ति के लिए कोई चिंता का विषय नहीं होता है, वह निर्भीक होकर इसका आनंद लेता है क्योंकि उसे यह समझ में आ जाता है की मृत्यु ही जीवन का सत्य है। जो माया के भ्रम जाल में पड़ा है उसे अवश्य काल से डर लगता है क्योंकि वह इस संसार को ही अपना स्थाई घर समझ बैठता है जबकि ज्ञानी जन काल को पूर्ण आनंद समझता है।

हिन्‍दू कहें मो‍हि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना।
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मरे, मरम न जाना कोई।।
Hin‍doo Kahen Mo‍hi Raam Piyaara, Turk Kahen Rahamaana.
Aapas Mein Dou Ladee-ladee Mare, Maram Na Jaana Koee.

हिंदी और मुस्लिम दोनों ही अपने ईश्वर को सर्वोच्च और श्रेष्ठ मानते हैं । हिन्दू राम को तो मुस्लिम जन रहमान को सर्वोच्च मानते हैं, आपस में दोनों लड़ते हैं लेकिन मर्म किसी ने नहीं जाना है। भाव है की ईश्वर एक है, जग के कण कण में व्याप्त है उसे हमने अपनी सुविधा के अनुसार कई नाम दे दिए हैं।

कबीर हरी सब को भजे , हरी को भजै न कोई।
जब लग आस सरीर की , तब लग दास न होई।।
Kabeer Haree Sab Ko Bhaje , Haree Ko Bhajai Na Koee.
Jab Lag Aas Sareer Kee , Tab Lag Daas Na Hoee.

ईश्वर सभी को याद रखता है लेकिन हम ही ईश्वर का सुमिरण नहीं करते हैं। जब तक जीव शरीर की आशा, तृष्णा से ग्रसित रहता है तब तक वह सच्चा दास नहीं बन सकता है। भाव है की सांसारिक दैहिक और भौतिक इच्छाओं से मुक्त होकर ही प्रभु चरणों की भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है।

क्या मुख ली बिनती करो , लाज आवत है मोहि।
तुम देखत ओगुन करो , कैसे भावो तोही।।
Kya Mukh Lee Binatee Karo , Laaj Aavat Hai Mohi.
Tum Dekhat Ogun Karo , Kaise Bhaavo Tohee.

ईश्वर से किस मुख से विनती करूँ ? मुझे तो लाज / शर्म आती है क्योंकि यह शरीर तमाम तरह के अवगुणों से भरा हुआ है। भाव है की व्यक्ति को अपने अवगुणों को दूर करके हरी का सुमिरण करना चाहिए।

सब काहू का लीजिये , साचा असद निहार।
पछ्पात ना कीजिये कहै कबीर विचार।।
Sab Kaahoo Ka Leejiye , Saacha Asad Nihaar.
Pachhpaat Na Keejiye Kahai Kabeer Vichaar.

सभी व्यक्तियों से अच्छे गुणों को ले लेना चाहिए और उसमे किसी प्रकार की कोताही नहीं करनी चाहिए, पछतावा नहीं करना चाहिए यही साहेब का सन्देश है।

कुमति कीच चेला भरा , गुरु ज्ञान जल होय।
जनम जनम का मोर्चा , पल में दारे धोय।।
Kumati Keech Chela Bhara , Guru Gyaan Jal Hoy.
Janam Janam Ka Morcha , Pal Mein Daare Dhoy.

शिष्य तो कुमति के कीचड़ से भरा हुआ है, गुरु ज्ञान रूपी जल है जो अवगुणों को दूर कर देता है। जनम जनम के अवगुण को गुरु पल में ही दूर कर देता है।

गुरु सामान दाता नहीं , याचक सीश सामान।
तीन लोक की सम्पदा , सो गुरु दीन्ही दान।।
Guru Saamaan Daata Nahin , Yaachak Seesh Saamaan.
Teen Lok Kee Sampada , So Guru Deenhee Daan.

गुरु के समान कोई दाता नहीं है और शिष्य के समान कोई याचक नहीं है। तीनों लोको की संपदा को गुरु ने दान कर दिया है।

पाहन पूजे हरि मिले , तो मैं पूजूं पहार।
याते चाकी भली जो पीस खाए संसार।।
Paahan Pooje Hari Mile , To Main Poojoon Pahaar.
Yaate Chaakee Bhalee Jo Pees Khae Sansaar.

यदि पत्थर को पूजने से हरी का मिलन होता हो तो क्यों नहीं पहाड़ को ही पूज लिया जाए। यहाँ पर मूर्ति पूजा पर व्यंग्य है जो व्यक्ति अपने आचरण में भक्ति को शामिल नहीं करते हैं और दिखावे के लिए पूजा करते हैं उन पर व्यंग्य है। पत्थर को पूजने के स्थान पर तो पत्थर की चक्की है भली है जिसको पीस कर समस्त जन खाते हैं।

लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल।
लाली देखन मै गई मै भी हो गयी लाल।।
Laalee Mere Laal Kee Jit Dekhoon Tit Laal.
Laalee Dekhan Mai Gaee Mai Bhee Ho Gayee Laal.

समस्त ब्रह्माण्ड में हरी का निवास है, कण कण में परमब्रह्म है, जो भी ईश्वर की खोज करता है वह स्वंय भी उसी में समां जाता है। चारों तरफ उसी लाल की लाली व्याप्त है।

आए हैं तो जायेंगे राजा रंक फ़कीर।
एक सिंघासन चढ़ चले एक बंधे जंजीर।।
Aae Hain To Jaayenge Raaja Rank Fakeer.
Ek Singhaasan Chadh Chale Ek Bandhe Janjeer.

जिसकी उत्पत्ति हुई है उसे एक रोज यह संसार छोड़ कर जाना है, कर्मों की मुताबिक़ व्यक्ति अपने अंत को निश्चित करता है, एक सिंघासन पर बैठता है वहीँ दूसरा जंजीर में बंधता है। जो जीवन में हरी का सुमिरण करता है वह आगे चलकर सम्मानित होता है (यम के दरबार में ) वहीं दूसरी तरफ जो व्यक्ति हरी को विस्मृत करके अनैतिक कार्यों में लिप्त रहता है, माया के भ्रम में पड़ा रहता है वह यम राज के दवार पर जंजीरों से बाँध दिया जाता है।

माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर।
करका मनका डार दे , मन का मनका फेर।।
Mālā Phērata Juga Bhayā, Phirā Na Mana Kā Phēra.
Karakā Manakā Ḍāra Dē, Mana Kā Manakā Phēra.

बाह्य आडम्बरों के फेर में पड़कर जीव स्वंय के अन्दर नहीं देखता है, आत्मविश्लेषण नहीं करता है। हाथों में माला को लेकर वह भक्ति का आडम्बर करता है और सोचता है की उसे हरी के दर्शन हो जायेंगे लेकिन यह सत्य नहीं है जब तक वह मन के मनके को नहीं फेरता है उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।

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