पष ले बूड़ी पृथमीं झूठे कुल की लार मीनिंग Pakh Le Budi Prathmi Meaning : kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Hindi Me
पष ले बूड़ी पृथमीं, झूठे कुल की लार ।
अलष बिसार्यो भेष मैं, बूड़े काली धार ॥
Pakh le Budi Prathami, Jhule Kul Ki Lar,
Aladh Bisaryo Bhesh Me, Bude Kali Dhar.
कबीर इस दोहे में दिखावे और कर्मकांड पर व्यंग्य करते हैं। वे कहते हैं कि इस दुनिया में लोग किसी-न-किसी पक्ष को लेकर, वाद में पड़कर और कुल की परम्पराओं को अपनाकर डूब गए हैं, अमूल्य मानव जीवन को समाप्त कर बैठे हैं। विभिन्न तरह के वेश धारण करके लोग इसे ही भक्ति समझने लगे हैं और उन्होंने सत्य को भुला दिया है।
किसी-न-किसी पक्ष को लेकर, वाद में पड़कर और कुल की परम्पराओं को अपनाकर यह दुनिया डूब गई है। कबीर कहते हैं कि लोग किसी-न-किसी पक्ष के लिए लड़ते रहते हैं। वे वाद-विवाद करते रहते हैं। वे कुल की परम्पराओं को अपनाकर दूसरों से अलग हो जाते हैं। आशय है की इश्वर की भक्ति में सांसारिक कार्यों का कोई महत्त्व नहीं है, इसमें कोई वाद विवाद नहीं है, यह तो अत्यंत ही सहज क्रिया है. अतः पक्ष विपक्ष और संसार का पीछा छोड़कर हमें इश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए.
किसी-न-किसी पक्ष को लेकर, वाद में पड़कर और कुल की परम्पराओं को अपनाकर यह दुनिया डूब गई है। कबीर कहते हैं कि लोग किसी-न-किसी पक्ष के लिए लड़ते रहते हैं। वे वाद-विवाद करते रहते हैं। वे कुल की परम्पराओं को अपनाकर दूसरों से अलग हो जाते हैं। आशय है की इश्वर की भक्ति में सांसारिक कार्यों का कोई महत्त्व नहीं है, इसमें कोई वाद विवाद नहीं है, यह तो अत्यंत ही सहज क्रिया है. अतः पक्ष विपक्ष और संसार का पीछा छोड़कर हमें इश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए.
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