बैद मुवा रोगी मुवा मुवा सकल संसार हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

बैद मुवा रोगी मुवा मुवा सकल संसार हिंदी मीनिंग Baid Muva Rogi Muva Sakal Sansaar Meaning

बैद मुवा रोगी मुवा, मुवा सकल संसार।
एक कबीरा ना मुवा, जिनि के राम अधार॥ 

Baid Muva Rogee Muva, Muva Sakal Sansaar.
Ek Kabeera Na Muva, Jini Ke Raam Adhaar. 
 
बैद मुवा रोगी मुवा मुवा सकल संसार हिंदी मीनिंग Baid Muva Rogi Muva Sakal Sansaar Meaning

यह जगत एक रोज समाप्त हो जाना है, रोगी मरता है, भोगी मरता है और एक रोज सभी का इलाज करने वाला वैद्य भी एक रोज मृत्यु को प्राप्त हो ही जाता है लेकिन एक वह व्यक्ति मृत्यु से बच जाता है जो हरी के नाम का सुमिरण करे। इसका आधार राम का नाम है वह कभी भी नहीं मरता है और जीवन मरण के चक्र से पार हो जाता है। 
 
साधो ये मुरदों का गांव
पीर मरे पैगम्बर मरिहैं
मरि हैं जिन्दा जोगी
राजा मरिहैं परजा मरिहै
मरिहैं बैद और रोगी
चंदा मरिहै सूरज मरिहै
मरिहैं धरणि आकासा
चौदां भुवन के चौधरी मरिहैं
इन्हूं की का आसा
नौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैं
मरि हैं सहज अठ्ठासी
तैंतीस कोट देवता मरि हैं
बड़ी काल की बाजी
नाम अनाम अनंत रहत है
दूजा तत्व न होइ
कहत कबीर सुनो भाई साधो
भटक मरो ना कोई 
 
संपटि माँहि समाइया, सो साहिब नहीसीं होइ।
सफल मांड मैं रमि रह्या, साहिब कहिए सोइ॥ 

Sampati Maanhi Samaiya, So Saahib Naheeseen Hoi.
Saphal Maand Main Rami Rahya, Saahib Kahie Soi. 
 
सम्पुट डिबिया में शालिग्राम की छोटी सी डिबिया है लेकिन वह स्वामी हैं। स्वामी तो वही है जो समस्त श्रष्टि में व्याप्त है। भाव है की हमें प्रतीकात्मक भक्ति नहीं करनी चाहिए। ईश्वर वही है जो समस्त श्रृष्टि में व्याप्त है, कण कण में निहीत है, वही जगत का स्वामी है।
रहै निराला माँड थै, सकल माँड ता माँहि।
कबीर सेवै तास कूँ, दूजा कोई नाँहि॥ 

Rahai Niraala Maand Thai, Sakal Maand Ta Maanhi.
Kabeer Sevai Taas Koon, Dooja Koee Naanhi. 
 
ईश्वर समस्त श्रृष्टि में व्याप्त है लेकिन वह श्रृष्टि में निहीत नहीं है। साहेब उसी की भक्ति करते हैं दुसरे की नहीं। भाव है की भक्ति मार्ग में अनेकों मार्ग हैं लेकिन साहेब का मत है की जो पूर्ण ब्रह्म है वह कण कण में व्याप्त है और वही इसी जगत का स्वामी है, साहेब उसी को जगत का स्वामी मानकर उसी को मानते हैं। 

भोलै भूली खसम कै, बहुत किया बिभचार।
सतगुर गुरु बताइया, पूरिबला भरतार॥ 

Bholai Bhoolee Khasam Kai, Bahut Kiya Bibhachaar.
Satagur Guru Bataiya, Pooribala Bharataar. 
 
जीव जगत में आकर माया के भ्रम का शिकार बन जाता है और वह अपने कसम (मालिक) को भूल जाता है तथा कई प्रकार के व्यभिचार करता है। सतगुरु देव की कृपा के परिणामस्वरूप उसे पूर्व के वास्तविक स्वामी (भरतार) के विषय में ज्ञान प्राप्त हो जाता है और वह उसी को स्वामी मानता है।

जाकै मह माथा नहीं, नहीं रूप करूप।
पुहुप बास थैं पतला ऐसा तत अनूप॥
Jaakai Mah Maatha Nahin, Nahin Roopak Roop.
Puhup Baas Thain Patala Aisa Tat Anoop.

पूर्ण निराकार ब्रह्म ही इस जगत का स्वामी है जिसका कोई भी आकार नहीं है, जिसके ना तो मुह माथा है और नाही उसे रूप कुरूप में ही परिभाषित किया जा सकता है। उसे यद्यपि देखा नहीं जा सकता है लेकिन महसूस अवश्य ही किया जा सकता है। वह फूलों की खुशबु की भाँती अत्यंत ही पतला है, ऐसा अनुपम तत्व है। इस दोहे में व्यक्तिरेक अलंकार का उपयोग किया गया है। 

मेरे मन मैं पड़ि गई, ऐसी एक दरार।
फटा फटक पषाँण ज्यूँ, मिल्या न दूजी बार॥
Mere Man Main Padi Gaee, Aisee Ek Daraar.
Phata Phatak Pashaann Jyoon, Milya Na Doojee Baar.

कबीर साहेब का मन माया से विमुख हो चूका है। माया और माया जनित व्यवहार से उनका मन रुष्ट हो गया है अब मन में दरार पड़ गई है। जैसे श्फुटिक पत्थर टूट जाने के उपरान्त दरार पड़ जाती है, दुबारा जुड़ नहीं पाती है। भाव है की जब हरी की लगन लग जाती है तो मन मोह और माया से प्रथक हो जाता है इसके उपरान्त सांसारिक कार्यों में मन नहीं लगता है। 

जीवन मृतक ह्नै रहै, तजै जगत की आस।
तब हरि सेवा आपण करै, मति दुख पावै दास॥
Jeevan Mrtak Hnai Rahai, Tajai Jagat Kee Aas.
Tab Hari Seva Aapan Karai, Mati Dukh Paavai Daas.

जीवन और मरण के चक्र से पार होकर, जीवन मरण से ऊपर उठ कर जीव इस जगत में किसी से भी आशा नहीं रखता है। ऐसे व्यक्ति को जगत से कोई आशा नहीं रहती है और उसे ईश्वर स्वंय संभाल लेते हैं और दुःख नहीं पाने देते हैं। भाव है की जो निर्वाण की स्थिति होती है जब जीव जीवन और मरण से ऊपर उठ जाता है तब व्यक्ति की खैर खबर स्वंय ईश्वर लेते हैं और उसे इस जगत से कोई आशा नहीं रहती है। 

कबीर मन मृतक भया, दुरबल भया सरीर।
तब पैडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर कबीर॥
Kabeer Man Mrtak Bhaya, Durabal Bhaya Sareer.
Tab Paide Laaga Hari Phirai, Kahat Kabeer Kabeer. 
 
जब मन मृतक हो जाता है, मर जाता है, शरीर दुर्बल हो जाता है तब जीव ईश्वर के नाम का सुमिरण करता है। भाव है की हरी की भक्ति में व्यक्ति को शरीर की सुध नहीं रहती है और वह अत्यंत ही दुर्बल हो जाता है, उसे बस हरी के नाम की ही सुध रहती है।

कबीर मरि मड़हट रह्या, तब कोइ न बूझै सार।
हरि आदर आगै लिया, ज्यूँ गउ बछ की लार॥
Kabeer Mari Madahat Rahya, Tab Koi Na Boojhai Saar.
Hari Aadar Aagai Liya, Jyoon Gau Bachh Kee Laar. 
 
जब जीव मरघट में पहुँच जाता है तो उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं रहता है और उसकी कुशल क्षेम पूछने वाला कोई नहीं रहता है, ऐसी स्थिति में हरी/ईश्वर ही उसका हाल पूछता है जैसे गाय अपने बछड़े के पीछे आती है। भाव है की ईश्वर ही अपने भक्तों की सुध लेता है। 

मरताँ मरताँ जग मुवा, औसर मुवा न कोइ।
कबीर ऐसैं मरि मुवा, ज्यूँ बहूरि न मरना होइ॥
Marataan Marataan Jag Muva, Ausar Muva Na Koi.
Kabeer Aisain Mari Muva, Jyoon Bahoori Na Marana Hoi. 
 
सभी जग इक रोज मर जाता है लेकिन अवसर कभी नहीं मरता है। सभी मरते हैं लेकिन मरना ऐसा होना चाहिए की दुबारा कभी मरना नहीं पड़े। भाव है की हमें ईश्वर की शरण में ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए और उससे विमुख कभी भी नहीं होना चाहिए। इस जीवन और मरण के चक्र से, भव सागर से व्यक्ति तभी पार लग सकता है जब वह हरी के नाम का सुमिरण करे।

मन मार्‌या ममता मुई, अहं गई सब छूटि।
जोगी था सो रमि गया, आसणि रही विभूति॥
Man Maar‌ya Mamata Muee, Ahan Gaee Sab Chhooti.
Jogee Tha So Rami Gaya, Aasani Rahee Vibhooti. 
 
मन को मार देने से ममता स्वतः ही नष्ट हो जाती है जिसके परिणाम स्वरुप सब आशा और तृष्णा के अतिरिक्त अहम् नष्ट हो जाता है। जोगी और साधक तो परमात्मा में लीन हो गया है और अब उसके साधना के स्थल पर केवल भभूती शेष रह गई है। भाव है की आत्मा परमात्मा में लीन हो गई है और अब कुछ भी शेष नहीं रहा है। साधक अपनी देह को छोडकर पूर्ण ब्रह्म में लीन हो गया है। भाव है की जब हरी मिलन की लगन होती है तो साधक अपनी देह को छोड़कर पूर्ण ब्रह्म में समा जाता है। 

जीवन थै मरिबो भलौ, जौ मरि जानै कोइ।
मरनै पहली जे मरे, तौ कलि अजरावर होइ॥
Jeevan Thai Maribo Bhalau, Jau Mari Jaanai Koi.
Maranai Pahalee Je Mare, Tau Kali Ajaraavar Hoi. 
 
इस जीवन में जीने से भला तो मृत्यु ही है, जो कोई मरना जानता है जो कोई मरना जानता हो, मृत्यु से पहले जो मरने की कला को जानता है वह अजर अमर को प्राप्त होता है। इस कलियुग में जो अपनी विषय और वासनाओं पर काबू पा लेता है वह सही अर्थों में अजर अमर बन जाता है। इस जीवन में विषय वासनाओं के कारण जीव दुखी रहता है और कई प्रकार के दुःख उसे घेरे रहते हैं। जब मोह और माया से मुक्ति हो जाती है जो जनम मरण से जीव पार हो जाता है। 

खरी कसौटी राम की, खोटा टिकैं न कोइ।
राम कसौटी सो टिकै, जो जीवन मृतक होइ॥
Kharee Kasautee Raam Kee, Khota Tikain Na Koi.
Raam Kasautee So Tikai, Jo Jeevan Mrtak Hoi. 
 
राम की कसौटी (ईश्वर) खरी है जिसपर कोऊ खौटा व्यक्ति टिक नहीं सकता है। राम की कसौटी पर वही टिक सकता है जो जीवीत होकर भी मरा हुआ हो, जिसने अपने अहम् को शांत कर लिया हो, अहंकार को जीत लिया हो। ऐसा व्यक्ति जिसने अपने अहम् को शांत कर लिया हो वह राम की कसौटी पर खरा उतरता है और भक्ति मार्ग पर खरा उतरता है। भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए अहंकार को शांत करना आवश्यक है।


आपा मेट्या हरि मिलै, हरि मेट्या सब जाइ।
अकथ कहाणी प्रेम की, कह्या न को पत्याइ॥
Aapa Metya Hari Milai, Hari Metya Sab Jai.
Akath Kahaanee Prem Kee, Kahya Na Ko Patyai. 

स्वंय को मिटा देने पर, अहम् को नष्ट कर देने पर हरी की प्राप्ति होती है लेकिन यदि किसी ने हरी को ही भुला दिया है तो उसका सब कुछ नष्ट हो जाता है। हरी प्रेम की कहानी अकथ है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है, यदि कहा भी जाए तो कोई उस पर विशवास नहीं करेगा। भाव है भक्ति के लिए स्वंय के अहम् को पहले नष्ट करना पड़ता है तब जाकर भक्ति के मार्ग पर चला जा सकता है। अहम् की नष्ट हो जाने पर विषय विकार स्वंय ही नष्ट हो जाते हैं। 

निगु साँवाँ वहि जायगा, जाकै थाघी नहीं कोइ।
दीन गरीबी बंदिगी, करता होइ सु होइ॥
Nigu Saanvaan Vahi Jaayaga, Jaakai Thaaghee Nahin Koi.
Deen Gareebee Bandigee, Karata Hoi Su Hoi. 
 
जो जीव हरी की भक्ति नहीं करता है वह भव सागर में बह जाएगा, उसका सहारा (थाघी-सहारा देने वाली लकड़ी) कोई नहीं होता है। जो व्यक्ति दीन हीन बनकर हरी की भक्ति करता है वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है। भाव है की जो अहम् का शिकार होकर अपने मन की करता है वह मोह माया और भ्रम का शिकार होकर रह जाता है। जो व्यक्ति अपने अहम् को शांत कर देता है वह मोह और माया के भ्रम से दूर हो जाता है और अपना मन भक्ति में लगाकर सब कुछ प्राप्त कर लेता है।

दीन गरीबी दीन कौ, दुँदर को अभिमान।
दुँदर दिल विष सूँ भरी, दीन गरीबी राम॥
Deen Gareebee Deen Kau, Dundar Ko Abhimaan.
Dundar Dil Vish Soon Bharee, Deen Gareebee Raam. 
 
गरीब और दीन व्यक्ति के लिए दीनता ही सब कुछ होती है लेकिन अभिमान तो उसी को होता है जो अहम् के वश द्वन्द में रहता है। भ्रम में पड़े हुए व्यक्ति का मन तो विष से भरा हुआ रहता है। जहाँ दीनता और गरीबी होती है वहां राम का वास होता है। भाव है की ईश्वर की भक्ति के लिए अहम् को छोडकर हरी के चरणों में दीनता का भाव आवश्यक है, जहाँ दीनता होती है वहीँ राम का वास होता है। 

कबीर चेरा संत का, दासिन का परदास।
कबीर ऐसे ह्नै रह्या, ज्यूँ पांऊँ तलि घास॥
Kabeer Chera Sant Ka, Daasin Ka Paradaas.
Kabeer Aise Hnai Rahya, Jyoon Paanoon Tali Ghaas. 

कबीर साहेब तो ऐसे व्यक्ति के चेले हैं जो संत हैं, और हरी के चेलों का भी चेला है। साहेब तो ऐसे रह रहे हैं जैसे पैरों तले की घास होती है। भक्ति मार्ग में अहम् को शांत करने की अति आवश्यकता होती है। जो अपना अहम् छोड़ कर हरी के चरणों में अपना ध्यान लगाता है और ईश्वर को सब कुछ मानता है वह अवश्य ही भव सागर से मुक्ति पाता है।
 
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1 टिप्पणी

  1. कुछ लोग कहते हैं के कबीर जी नास्तिक थे क्योंकि उनके दोहों में विरोधाभाष नजर आता है लेकिन कहीं कहीं पे उन्होंने राम ,हरि का भक्ति अंश भी प्रस्तुत किया है क्या कोई स्पष्टता मिल सकती है