साईं सूँ सब होत है बंदे थै कछु नाहिं हिंदी मीनिंग Saai Su Sab Hot Hai Hindi Meaning
साईं सूँ सब होत है, बंदे थै कछु नाहिं।
राई थैं परबत करै, परबत राई माहिं॥
राई थैं परबत करै, परबत राई माहिं॥
Saeen Soon Sab Hot Hai, Bande Thai Kachhu Naahin.
Raee Thain Parabat Karai, Parabat Raee Maahin.
ईश्वर ही समस्त कार्यों को पूर्ण करता है, मनुष्य के हाथ में कुछ भी नहीं है। ईश्वर राई को परबत बना सकता है और परबत को भी राइ के अन्दर समा सकता है, राई को बड़ा बना सकता है। भाव है की मनुष्य मात्र विचार कर सकता है की मैंने अमुक कार्य किया, मैंने यह प्राप्त किया, मैंने वह किया लेकिन सत्यता यही है की जीव के हाथ में कुछ भी नहीं होता है। करने वाला वह परमात्मा ही है। व्यक्ति तो माध्यम मात्र बनता है। इस दोहे में लोकोप्ती अलंकार का उपयोग हुआ है।
अणी सुहेली सेल की, पड़ताँ लेइ उसास।
चोट सहारै सबद की, तास गुरु मैं दास॥
Anee Suhelee Sel Kee, Padataan Lei Usaas.
Chot Sahaarai Sabad Kee, Taas Guru Main Daas.
कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग :- भाले की चोट सहन करना ज्यादा कठिन नहीं होता है और जिसको लगती है वह उच्छ्वास लेता है लेकिन शब्द की चोट अधिक पीडादायक होती है। कटु वचन सहने की क्षमता संत में ही होती है और जो कटु वचनों को सहन कर लेता है वह ही मेरा गुरु है। भाव है की संत जन कटु वचनों को भी सहन कर लेता है। इस दोहे में व्यक्तिरेक अलंकार का उपयोग हुआ है।
अणी सुहेली सेल की, पड़ताँ लेइ उसास।
चोट सहारै सबद की, तास गुरु मैं दास॥
Anee Suhelee Sel Kee, Padataan Lei Usaas.
Chot Sahaarai Sabad Kee, Taas Guru Main Daas.
कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग :- भाले की चोट सहन करना ज्यादा कठिन नहीं होता है और जिसको लगती है वह उच्छ्वास लेता है लेकिन शब्द की चोट अधिक पीडादायक होती है। कटु वचन सहने की क्षमता संत में ही होती है और जो कटु वचनों को सहन कर लेता है वह ही मेरा गुरु है। भाव है की संत जन कटु वचनों को भी सहन कर लेता है। इस दोहे में व्यक्तिरेक अलंकार का उपयोग हुआ है।
खूंदन तौं धरती सहै, बाढ़ सहै बनराइ।
कुसबद तो हरिजन सहै, दूजै सह्या ना जाइ॥
khoondan to dharatee sahai, baadh sahai banarai.
kusabad to harijan sahai, doojai sahya na jai.
खनन को धरती सहन करती है और बाढ़ और वनों की कटाई/बाढ़ को वन सहन करते हैं। भगवान् के भगत कुशब्द को भी सहन कर लेते हैं। जिन्होंने अपना ध्यान ईश्वर में नहीं लगाया है वह कटु वचनों को सहन नहीं कर पाता है। भाव है की हरी के भक्त, हरिजन कटु वचनों को सहन कर लेते हैं क्योंकि उनका अहम् इसके आड़े नहीं आता है। सामान्य लोग कटु वचनों का अन्य कटु वचनों से ही उत्तर देते हैं, जबकि संतजन का कटु वचनों से कोई विशेष असर नहीं पड़ता है और वे शांत ही बने रहते हैं, वस्तुतः वे सभी को हरी के चरणों में अर्पित कर देते हैं।
पष छाड़ै निरपष रहै, सबद न दूष्या जाइ॥
Seetalata Tab Jaanie, Samita Rahe Samai.
Pash Chhaadai Nirapash Rahai, Sabad Na Dooshya Jai.
जब जीव में समता का भाव समाहित हो जाए, तभी उसे शीतल स्वभाव का समझना चाहिए। जब वह निरपेक्ष हो जाता है तो उसे कोई भी शबद परेशान नहीं कर पाते हैं। भाव है की शीतलता व्यवहार में तभी आती है जब व्यक्ति निरपेक्ष हो जाता है।
कबीर सीतलता भई, पाया ब्रह्म गियान।
जिहिं बैसंदर जग जल्या, सो मेरे उदिक समान॥
Kabeer Seetalata Bhee, Paaya Brahm Giyaan.
Jihin Baisandar Jag Jalya, So Mere Udik Samaan.
सम भाव आने के उपरान्त शीतलता आ गई है और अब ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो गयी है। जिस माया के कारण सारा संसार दग्ध है वह मेरे लिए शीतल जल के समान है। भाव है की जब व्यक्ति ईश्वर से अपनी रूह को जोड़ लेता है तो उसे सांसारिक दग्ध करने वाले विषय भी शीतल जान पड़ते हैं।
कबीर सबद सरीर मैं, बिनि गुण बाजै तंति।
बाहरि भीतरि भरि रह्या, ताथैं छूटि भरंति॥
Kabeer Sabad Sareer Main, Bini Gun Baajai Tanti.
Baahari Bheetari Bhari Rahya, Taathain Chhooti Bharanti.
कबीर साहेब की वाणी है की अनाहत नाद भीतरि तारों को बजाता है। ऐसा शब्द बाहर और भीतर भरा रहता है और इसी से सारी भ्रांतियां छुट जाती हैं। भाव है की ईश्वर में ध्यान लगाने से बाहर और भीतर से व्यक्ति निरपेक्ष हो जाता है और उसे सांसारिक पीडाएं दग्ध नहीं कर पाती हैं।
सती संतोषी सावधान, सबद भेद सुबिचार।
सतगुर के प्रसाद थैं, सहज सील मत सार॥
Satee Santoshee Saavadhaan, Sabad Bhed Subichaar.
Satagur Ke Prasaad Thain, Sahaj Seel Mat Saar.
कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग :-सत्यनिष्ठ और संतोषी व्यक्ति सावधानी पूर्वक विचार करता है, सतगुरु की कृपा से सहज और शीलवन्त का सार बन जाता है। वह समस्त मतों को सहज रूप से स्वीकार कर लेता है और समस्त सारतत्वों का अधिकारी बन जाता है।
सतगुर ऐसा चाहिए, जैसा सिकलीगर होइ।
सबद मसकला फेरि करि, देह द्रपन करे सोइ॥
Satagur Aisa Chaahie, Jaisa Sikaleegar Hoi.
Sabad Masakala Pheri Kari, Deh Drapan Kare Soi.
गुरु ऐसा होना चाहिए जो चाक़ू और तलवार पर धार को लगाने वाला होता है, जो शब्दों के मस्कले पर रगड़कर देह को दर्पण की तरह से चमकदार बना देता है। इस दोहे में उपमा और रूपक अलंकार का उपयोग किया गया है।
सतगुर साँचा सूरिवाँ, सबद जु बाह्या एक।
लागत ही में मिलि गया, पड़ा कलेजे छेक॥
Satagur Saancha Soorivaan, Sabad Ju Baahya Ek.
Laagat Hee Mein Mili Gaya, Pada Kaleje Chhek.
सद्गुरु देव सच्चे सूरमा हैं जिन्होंने एक शबद का प्रहार किया और इनके प्रहार से कलेजे में छेद हो गया है। भाव है की साहेब के ज्ञान के बाण से साधक घायल हो गया है।
हरि रस जे जन बेधिया, सतगुण सी गणि नाहि।
लागी चोट सरीर में, करक कलेजे माँहि॥
Hari Ras Je Jan Bedhiya, Satagun See Gani Naahi.
Laagee Chot Sareer Mein, Karak Kaleje Maanhi.
कुसबद तो हरिजन सहै, दूजै सह्या ना जाइ॥
khoondan to dharatee sahai, baadh sahai banarai.
kusabad to harijan sahai, doojai sahya na jai.
खनन को धरती सहन करती है और बाढ़ और वनों की कटाई/बाढ़ को वन सहन करते हैं। भगवान् के भगत कुशब्द को भी सहन कर लेते हैं। जिन्होंने अपना ध्यान ईश्वर में नहीं लगाया है वह कटु वचनों को सहन नहीं कर पाता है। भाव है की हरी के भक्त, हरिजन कटु वचनों को सहन कर लेते हैं क्योंकि उनका अहम् इसके आड़े नहीं आता है। सामान्य लोग कटु वचनों का अन्य कटु वचनों से ही उत्तर देते हैं, जबकि संतजन का कटु वचनों से कोई विशेष असर नहीं पड़ता है और वे शांत ही बने रहते हैं, वस्तुतः वे सभी को हरी के चरणों में अर्पित कर देते हैं।
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पष छाड़ै निरपष रहै, सबद न दूष्या जाइ॥
Seetalata Tab Jaanie, Samita Rahe Samai.
Pash Chhaadai Nirapash Rahai, Sabad Na Dooshya Jai.
जब जीव में समता का भाव समाहित हो जाए, तभी उसे शीतल स्वभाव का समझना चाहिए। जब वह निरपेक्ष हो जाता है तो उसे कोई भी शबद परेशान नहीं कर पाते हैं। भाव है की शीतलता व्यवहार में तभी आती है जब व्यक्ति निरपेक्ष हो जाता है।
कबीर सीतलता भई, पाया ब्रह्म गियान।
जिहिं बैसंदर जग जल्या, सो मेरे उदिक समान॥
Kabeer Seetalata Bhee, Paaya Brahm Giyaan.
Jihin Baisandar Jag Jalya, So Mere Udik Samaan.
सम भाव आने के उपरान्त शीतलता आ गई है और अब ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो गयी है। जिस माया के कारण सारा संसार दग्ध है वह मेरे लिए शीतल जल के समान है। भाव है की जब व्यक्ति ईश्वर से अपनी रूह को जोड़ लेता है तो उसे सांसारिक दग्ध करने वाले विषय भी शीतल जान पड़ते हैं।
कबीर सबद सरीर मैं, बिनि गुण बाजै तंति।
बाहरि भीतरि भरि रह्या, ताथैं छूटि भरंति॥
Kabeer Sabad Sareer Main, Bini Gun Baajai Tanti.
Baahari Bheetari Bhari Rahya, Taathain Chhooti Bharanti.
कबीर साहेब की वाणी है की अनाहत नाद भीतरि तारों को बजाता है। ऐसा शब्द बाहर और भीतर भरा रहता है और इसी से सारी भ्रांतियां छुट जाती हैं। भाव है की ईश्वर में ध्यान लगाने से बाहर और भीतर से व्यक्ति निरपेक्ष हो जाता है और उसे सांसारिक पीडाएं दग्ध नहीं कर पाती हैं।
सती संतोषी सावधान, सबद भेद सुबिचार।
सतगुर के प्रसाद थैं, सहज सील मत सार॥
Satee Santoshee Saavadhaan, Sabad Bhed Subichaar.
Satagur Ke Prasaad Thain, Sahaj Seel Mat Saar.
कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग :-सत्यनिष्ठ और संतोषी व्यक्ति सावधानी पूर्वक विचार करता है, सतगुरु की कृपा से सहज और शीलवन्त का सार बन जाता है। वह समस्त मतों को सहज रूप से स्वीकार कर लेता है और समस्त सारतत्वों का अधिकारी बन जाता है।
सतगुर ऐसा चाहिए, जैसा सिकलीगर होइ।
सबद मसकला फेरि करि, देह द्रपन करे सोइ॥
Satagur Aisa Chaahie, Jaisa Sikaleegar Hoi.
Sabad Masakala Pheri Kari, Deh Drapan Kare Soi.
गुरु ऐसा होना चाहिए जो चाक़ू और तलवार पर धार को लगाने वाला होता है, जो शब्दों के मस्कले पर रगड़कर देह को दर्पण की तरह से चमकदार बना देता है। इस दोहे में उपमा और रूपक अलंकार का उपयोग किया गया है।
सतगुर साँचा सूरिवाँ, सबद जु बाह्या एक।
लागत ही में मिलि गया, पड़ा कलेजे छेक॥
Satagur Saancha Soorivaan, Sabad Ju Baahya Ek.
Laagat Hee Mein Mili Gaya, Pada Kaleje Chhek.
सद्गुरु देव सच्चे सूरमा हैं जिन्होंने एक शबद का प्रहार किया और इनके प्रहार से कलेजे में छेद हो गया है। भाव है की साहेब के ज्ञान के बाण से साधक घायल हो गया है।
हरि रस जे जन बेधिया, सतगुण सी गणि नाहि।
लागी चोट सरीर में, करक कलेजे माँहि॥
Hari Ras Je Jan Bedhiya, Satagun See Gani Naahi.
Laagee Chot Sareer Mein, Karak Kaleje Maanhi.
हरी रस / भक्ति रस से जिनका मन रुद्ध है / घायल है वह सात रस्सियों के धनुष से भी अधिक घायल होता है। भाव है की ऐसी मार सात रस्सियों वाली धनुष भी नहीं कर सकती है जितना असर भक्ति रस के वार से होता है। जहाँ तीर से घायल व्यक्ति शरीर की पीड़ा से आहत होता है वहीँ पर भक्ति और ज्ञान के वांण से घायल व्यक्ति के कलेजे में पीड़ा होती है। भाव है की उसे अंदर से पीड़ा होती है।
ज्यूँ ज्यूँ हरिगुण साभलूँ, त्यूँ त्यूँ लागै तीर।
साँठी साँठी झड़ि पड़ि, झलका रह्या सरीर॥
Jyūm̐ jyūm̐ hariguṇa sābhalūm̐, tyūm̐ tyūm̐ lāgai tīra.
Sām̐ṭhī sām̐ṭhī jhaṛi paṛi, jhalakā rahyā sarīra.
कोई साधक जैसे जैसे हरी के गुणों को प्राप्त करता है, उनसे भेंट करता है वैसे वैसे उसे प्रेम का बाण अन्दर तक बेधता जाता है। इन ज्ञान के तीरों का पिछला हिस्सा झड पड़ा है और तीर अन्दर ही रह गया है जो अधिक पीड़ा उत्पन्न करता है। भाव है की जिसे ज्ञान के तीर लग जाए वह अन्दर ही अन्दर व्याकुल रहता है और अधिक ज्ञान प्राप्ति के लिए अग्रसर रहता है।
सारा बहुत पुकारिया, पीड़ पुकारै और।
लागी चोट सबद की, रह्या कबीरा ठौर॥
Saara Bahut Pukaariya, Peed Pukaarai Aur.
Laagee Chot Sabad Kee, Rahya Kabeera Thaur.
पुकारने में अंतर होता है पुकारते तो सभी हैं लेकिन जिन्हें पीड़ा होती है वे भिन्न तरह से पुकारते हैं । कबीर साहेब को ऐसी चोट लगी है की वह जहाँ है वहीँ पर स्थिर हो गया है, जडवत हो गया है। भाव है की गुरु के ज्ञान से उत्पन्न हरी मिलन की पीड़ा अत्यंत ही विषमय करने वाली होती है।
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